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कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है

 
आरएनई, बीकानेर। माथै पर टीका, कानों में कुंडल-बाळियां, नाक में नथनी, बाहों पर बाजूबंद, हाथों में चूड़ला, गले में नवलखा हार, कमर पर कंदोळा, पांवों में पायल सहित नख-शिख सोने के गहनों और कीमती कपड़ों से सजी-धजी गणगौर को ज्योंहि हवेली से बाहर लाया गया वहां मौजूद सैकड़ों लोगों ने जयकारे लगाने शुरू कर दिये। इसके साथ ही गूंजने लगे गवर के गीत। चौक के पाटे पर गवरमाता का दरबार सजते ही धोक-परिक्रमा लगाने वालों का तांता लग गया। कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है इसके साथ ही शुरू हो गया घूमर का दौर। हर महिला, युवती इस गणगौर के आगे घूमर की रस्म निभाती नजर आई। इन सबके बावजूद किसी को गवर के नजदीक जाने की इजाजत नहीं दी गई। कड़ा पुलिस पहरा लगाया गया। यह नजारा है बीकानेर के ढढ्ढा चौक का जहां गुरूवार देर शाम प्रसिद्ध ‘चांदमल ढढ्ढा की गवर‘ का दरबार सजा। मेला लग गया और दूर-दूर से श्रद्धालु, महिलाएं धोक लगाने पहुंचने लगी। देर शाम शुरू हुआ यह दौर, अगले दिन चौथ को भी जारी रहेगा। कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है क्यूं खास है ये गवर: नख-शिख सोने के गहनों से श्रृंगारित इस गणगौर के गहनों की कीमत करोड़ों में हैं। इसकी कहानी भी लगभग 150 साल पुरानी और दिलचस्प है। कहानी से इससे पहले यह जान लेना जरूरी है कि संभवतया देश में सबसे महंगे गहनों से सजी इस गवर के पांव के पूरे पंजे बने हुए हैं। आमतौर पर गणगौर के पांव के पंजे नहीं बनाये जाते। हर साल दो दिन के लिए इस गवर का दरबार सजता है और महिलाओं को इन दो दिनों का इंतजार रहता है। जिस ढढ्ढा परिवार की हवेली से यह गवर निकलती है वह परिवार अब बीकानेर में नहीं रहता लेकिन इस मौके पर खासतौर पर देश-दुनिया से इस परिवार के सदस्य बीकानेर पहुंचते हैं। कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है क्या है ढढ्ढों की गवर की कहानी: लगभग डेढ़ सौ साल पहले सेठ उदयमल के पुत्र नहीं था। उनकी पत्नी ने राज परिवार से गणगौर पूजन की इजाजत मांगी। राजा की गवर पूजने पर एक साल में पुत्र हो गया। बेटे का नाम रखा-चांदमल। इसके साथ ही ढढ्ढा परिवार ने राजपरिवार से गवर को मांग लिया। इसके साथ ही इस गवर का नाम हो गया चांदमल ढढ्ढा की गवर। गवर माता के लिए उस जमाने में लाखों की लागत के सोने, कुंदन से जड़े गहने बनाये जो आज तक इन्हें पहनाये जाते हैं। कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है पुत्रदाता-सौभाग्य दाता गणगौर: आमतौर पर गणगौर का पूजन कुंआरी कन्याएं अच्छा वर पाने और विवाहिताएं अखंड सुहाग के लिए करती हैं। ढढ्ढों की गवर के बारे में मान्यता यह है कि वरन, सुहाग के साथ ही पुत्रदाता और समृद्धि दाता है। इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र के साथ ही समृद्धि भी मिलती है। कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है कहते हैं इस गवर के आगे घूमर करने से पुत्र प्राप्ति होती है, दूर-दूर से महिलाएं आकर घूमर करती है