कांग्रेस को एक किये बिना गोविंद के लिए आसान नहीं चुनाव खड़ा करना, हताश कार्यकर्ताओं को कैसे करेंगे सक्रिय
आरएनई,बीकानेर।
बीकानेर संसदीय सीट पर अब केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल व विधानसभा चुनाव हारे पूर्व मंत्री गोविंद मेघवाल के मध्य होना तय है। कांग्रेस लगातार चार बार ये सीट हारी है और हर बार नया उम्मीदवार उतार उसने प्रयोग किया है। अर्जुनराम के सामने भी तीनों बार नये चेहरे लाये गये मगर वे नाकामयाब रहे। हर बार जीत का अंतर बढ़ता ही गया।इस बार कांग्रेस ने खाजूवाला से विधानसभा चुनाव हारे गोविंद पर किस्मत आजमाई है। यूं तो विधानसभा चुनाव में बीकानेर संभाग की बात करें तो कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली। मगर वो सफलता श्रीगंगानगर व चूरू में अधिक थी। बीकानेर जिले में तो कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। जिले की 7 विधानसभा सीटें है और उसमें से 6 कांग्रेस हारी है। उसके हिस्से केवल केवल एक नोखा की सीट आई है। जो किसान नेता और वर्तमान में गम्भीर रूप से अस्वस्थ रामेश्वर डूडी के प्रभाव वाली सीट है। जो 6 सीटें कांग्रेस ने हारी उसमें एक हार कांग्रेस प्रत्याशी की भी है।बीकानेर जिले से गहलोत मंत्रिमंडल में दो काबीना व एक स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री थे, डॉ बी डी कल्ला, गोविंद मेघवाल व भंवर सिंह भाटी। तीनों ही चुनाव हार गये और हार का अंतर भी कम नहीं था, अधिक ही था। बाकी जो तीन सीटें लूणकरणसर, श्रीडूंगरगढ़ व बीकानेर पूर्व कांग्रेस हारी, उसमें भी भाजपा अच्छी तरह से आगे रही। कांग्रेस केवल नोखा सीट जीत पाई और वो भी रामेश्वर डूडी के प्रति सहानुभूति के कारण। उनके अस्वस्थ होने के कारण उनकी पत्नी सुशीला डूडी ने चुनाव लड़ा था। संसदीय सीट में नये बने अनूपगढ़ जिले की सीट भी शामिल है और वो कांग्रेस ने जीती है। मगर उसके पीछे भी भाजपा के बागी का खड़ा होना कारण है।इस सुरते हाल में कांग्रेस के गोविंद मेघवाल अपना चुनाव कैसे खड़ा करेंगे, ये राजनीतिक कौतूहल का विषय है। क्योंकि जो विधानसभा चुनाव हारे, वे नेता उसके बाद से सक्रिय नहीं है। इसके साथ ही कार्यकर्ता भी हार से अभी तक हताश है, उसकी हताशा को गोविंद दूर किये बिना चुनाव खड़ा नहीं कर पायेंगे। तीसरा बड़ा कारण है कांग्रेस की गुटबाजी। बीकानेर कांग्रेस गुटबाजी का दंश सदा से झेल रही है। उसे दूर किये बिना बात बनाना सम्भव भी नहीं। ये भी तथ्य है कि इस सीट पर कांग्रेस का वोट बैंक है मगर वो गुटबाजी, नेताओं की टकराहट का भी शिकार है।दूसरी तरह भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल के पक्ष में ये बड़ी बात है कि उनके 6 विधायक है और वे राज्य में पार्टी की सरकार आने के बाद से सक्रिय भी है। कार्यकर्ता जोश में है और संगठन का पूरा तंत्र भी खड़ा है। अब विधायको व सांसद के बीच दूरियां भी नहीं है। इन राजनीतिक स्थितियों के मध्य से कांग्रेस अपनी जगह कैसे बनाती है ये तो समय बतायेगा। हां, कांग्रेस उम्मीदवार अपने बयानों से अवश्य चुनाव को गर्म रखेंगे।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘