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धधकते अंगारों पर थिरकते सिद्धों के जसनाथी जयकारों के साथ ऊंट उत्सव विदा

Camel Festival 2024 : दहकते अंगारों को रसगुल्ले की तरह मुंह में रखा, बॉल की तरह खेला

आरएनई,बीकानेर।

  • Fire Dance : अंगारों पर घूमर ऐसे, नर्म घास बिछी ही जैसे
  • दिन: 14 जनवरी की सर्द रात
  • स्थान: बीकानेर शहर से सटते रायसर गांव में दूर तक पसरे रेत के टीबे
  • अवसर: ऊंट उत्सव\

ठंड इतनी कि खुले मैदान में रजाई ओढ़कर बैठ जाएं तब भी कंपकंपी नहीं रूकती। मैदान में एक घेरा जिसमें लकड़ियां रखी। यज्ञ की तरह कुछ मंत्रोच्चार होते हैं इन लकड़ियों को होलिका की तरह फूंक दिया जाता है। कुछ ही देर में लपटें शांत। अब बिछे हैं अंगारे जिन्हें राजस्थानी मे कहते हैं ‘खीरे’।

ये ‘बळते खीरे’ दिखने में ही ऐसे कि आम आदमी को छू भर जाएं तो महीनों जलन नहीं जाती। अचानक ढोलक बजने लगते है। साथ ही मंजीरों की ताल मिलती है। एक गान शुरू होता है जिसे जस-गान कहते हैं। यह एक तरह से सिद्ध समाज के जसनाथजी महाराज की स्तुति है। सफेद धोती-कुर्ता ओर सिर पर पगड़ी बांधे कुछ लोग नंगे पांव अग्नि के इर्द-गिर्द घूमने लगते हैं। यह परिक्रमा धीरे-धीरे घूमर में बदल जाती है। मतलब यह कि अग्नि के फेरे भी हो रहे हैं और अपनी जगह भी चकरी की तरह घूमते हैं। कुछ ऐसा कि जैसे अपनी धुरी पर घूमते हुए ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते है। अचानक जयकारे लगते हैं ‘जसनाथजी महाराज की-जय’ ‘गोरखनाथजी महाराज की-जय’।

अग्नि की परिक्रमा करते-करते अचानक एक शख्स दहकते अंगारों पर उतर जाता है। नृत्य करता है। एक-एक कर सारे इस अग्निकुंड से यूं ही गुजरने लगते हैं। देखने वालो की आंखें हैरानी से फटी रह जाती है। एक क्षण को भूल ही जाते हैं कि उन्हें दाद के लिए तालियां बजाती है। फिर तालियां बजती है, जयकारे लगते हैं।

अग्निनृत्य के बीच रोमांच तब कई गुना बढ़ जाता है जब एक नृतक अंगारों को अंजुलियों मे भर आसमान की ओर उछाल देता है। मानो बॉल से खेल रहे हो। वे वापस नीचे गिरते हुए उसके चेहरे के आगे से गुजरते हैं। कुछ छूकर भी निकलते हैं। कभी कोई नृतक दहकते अंगारे को उठाकर यूं मुंह में रख लेता है जैसे रसगुल्ला हो।ढोल बजते जाते हैं। जसनाथजी का जयगान चलता जाता है। नृतक अंगारों पर थिरकते जाते हैं और धीरे-धीरे अंगारों की ऊर्जा कम होने लगती है। मानो, आस्था के तेज के सामने अग्नि का ताप मंदा पड़ गया हो। जयकारों के साथ जसगान और अग्निनृत्य पर भी विराम लगता है। इसके साथ ही बीकानेर से विदा होता है ऊंट उत्सव-2024, जोश, खुशी और उत्साह की यादों के साथ। अगले साल फिर मिलने के अनकहे वादे के साथ।