संस्कृति मानव चित्त की खेती है : डाॅ. अर्जुनदेव चारण
RNE, JODHPUR .
राजस्थानी भासा-साहित्य में भणाई : दसा अर दिसा ‘ विषय पर एक दिवसीय परिसंवाद
मातृभाषा से ही संस्कृति संरक्षित होती है। अगर मातृभाषा खत्म हो गई तो संस्कृति नष्ट हो जायेगी। संस्कृति मानव के अन्तर्मन को परिवर्तित और सुपोषित करती है क्योकि संस्कृति मानव चित्त की खेती है। यह विचार प्रोफेसर ( डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी अर जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित ‘ राजस्थानी भासा-साहित्य में भणाई : दसा अर दिसा ‘ विषयक राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद में व्यक्त किये किए। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में शिक्षा आनुष्ठानिक कर्म नहीं है । शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वो विद्यार्थी के चरित्र का निर्माण करे क्योंकि चरित्र विहीन शिक्षा से अच्छे समाज और राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है ।
राजस्थानी परिसंवाद के संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि उदघाटन सत्र में प्रोफेसर (डाॅ.) कल्याणसिंह शेखावत ने कहा कि राजस्थानी भाषा संवैधानिक मान्यता की हकदार है मगर अभी राजस्थानी भाषा संवैधानिक संकट के दौर से गुजर रही है क्योंकि नई शिक्षा नीति के तहत राजस्थान में अभी तक राजस्थानी भाषा को यहां की मातृभाषा का दर्जा नहीं है, जिसका खामियाजा प्रदेश के दस करोड़ प्रदेशवासी भुगत रहे है । उन्होंने कहा जिस राजस्थानी भाषा को अमेरिका और नेपाल जैसे देशों में मान्यता है मगर राजनैतिक उदासीनता के कारण हमारे देश में अभी तक राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल सकी। राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद संयोजक एवं विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने सभी अतिथियों का स्वागत कर स्वागत उदबोधन दिया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया । गीतकार अनूप पुरोहित ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की ।
तकनीकि सत्र – परिसंवाद के विभिन्न तकनीकि सत्रों में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ. सुरेश कुमार सालवी एवं जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित की अध्यक्षता में डाॅ. इन्द्रदान चारण, डाॅ.रामरतन लटियाल, डाॅ. जितेन्द्रसिंह साठिका, डाॅ.अमित गहलोत आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किया ।
प्रथम दिन का समापन समारोह – प्रथम दिन के समापन समारोह में मुख्य अतिथि राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. देव कोठारी ने कहा कि राजस्थानी भाषा हमारे प्रदेश की अस्मिता से जुड़ी हुई है । यह हमारी संस्कृति का मूल आधार है, इसका विशाल साहित्य भंडार है । उन्होंने राजस्थान सरकार से मांग की कि वर्तमान नई शिक्षा नीति के तहत राजस्थानी भाषा को प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिए। समारोह के अध्यक्ष एवं राजस्थानी रचनाकार डाॅ. प्रकाश अमरावत ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि प्रदेश के विद्यार्थी राजस्थानी भाषा-साहित्य में अध्ययन करना चाहते है मगर दुर्भाग्य से विद्यालयों में समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण वो अपनी मातृभाषा राजस्थानी में शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते है ।
ये रहे मौजूद :
इस अवसर पर प्रोफेसर के.एल. रैगर, प्रोफेसर के. एन. उपाध्याय, प्रतिष्ठित रचनाकार मधु आचार्य आशावादी, माधव हाडा, मीठेश निर्मोही, भंवरलाल सुथार, चांदकौर जोशी, बसंती पंवार, लक्ष्मणदान कविया, डाॅ. मंगत बादल, डाॅ. किरण बादल, प्रगती गुप्ता, डाॅ. धनंजया अमरावत, डाॅ मीनाक्षी बोराणा, संतोष चौधरी, किरण राजपुरोहित, सुशील कुमार, महेश माथुर, चनणसिंह इंदा, एस. आर. जाखड़, भवानी सिंह पातावत, सुखदेव राव, अशोक गहलोत, डाॅ.भींवसिंह राठौड, डाॅ.कप्तान बोरावड़, सवाईसिंह चारण, राम किशोर फिड़ोदा, अनिरुद्ध सिंह आसिया, कप्तान बोरावड़, कैलाशदान लालस, राजेन्द्र बारहट, शंकरदान, श्रवण दान, डॉ.रामस्वरूप बिश्नोई, विष्णु शंकर, जगदीश मेघवाल, नीतू राजपुरोहित, वर्षा सेजू, माधो सिंह, आरती भार्गव, मीनाक्षी रावल सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, शिक्षक, शोध-छात्र एवं मातृभाषा प्रेमी मौजूद रहे ।
29 मार्च को आयोजित होने वाले राजस्थानी परिसंवाद में ‘ मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य : इतिहास अर साहित्य का अंतरसंबंध ‘ पर विश्वविद्यालय के केन्द्रीय परिसर स्थित बृहस्पति सभागार में प्रातः 10 : 30 बजे से शाम 05 : 00 सम्पन होगा I इस परिसंवाद में उद्घाटन समारोह राजस्थानी भाषा-साहित्य के ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर ( डाॅ.) अर्जुनदेव चारण की अध्यक्षता एवं प्रतिष्ठित कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) माधव हाडा के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न होगा। इस परिसंवाद के विभिन्न तकनीकि सत्रों में साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत प्रतिष्ठित रचनाकार डाॅ.मंगत बादल एवं मधु आचार्य आशावादी की अध्यक्षता में डाॅ. धनंजया अमरावत, डाॅ. दिनेश चारण, डाॅ. मीनाक्षी बोराणा एवं डाॅ. प्रकाश दान चारण आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। समापन समारोह राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ.भंवरसिंह सामौर के मुख्य आतिथ्य एवं राजस्थानी के मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर (डाॅ.) सोहनदान चारण की अध्यक्षता में सम्पन्न होगा।