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गहलोत ने फिर साबित किया वर्चस्व, पायलट अपना कुनबा बढ़ाने में लगे

आरएनई,बीकानेर।
आलाकमान ने जाट व एससी को साधने के लिए गोविंद डोटासरा को पीसीसी अध्यक्ष पद से नहीं हटाया और नेता प्रतिपक्ष पर भी चकित करने वाला निर्णय लेकर टीकाराम जूली को कमान सौंपी है। सदन में जूली अशोक गहलोत, सचिन पायलट, गोविंद डोटासरा, शांति धारीवाल, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, राजेन्द्र पारीक के नेता है। जाट व एससी वर्ग को जोड़ने की कवायद इस निर्णय से हुई है। मगर अब भी एसटी, ब्राह्मण वर्ग को जोड़ना बाकी है। शायद सदन में अन्य पद देकर ये कमी पूरी की जाये।

इस निर्णय से भले ही पार्टी ने कोर वोटर को जोड़े रखने का प्रयास किया है। मगर संदेश तो यही गया है कि गहलोत की ही चली है। पीसीसी चीफ डोटासरा ने हालांकि अपनी चतुर व आक्रामक राजनीति से अलग पहचान बनाई है मगर वो गहलोत के ही साथी माने जाते हैं। उनको अध्यक्ष पद तक वही लाये थे। हालांकि चुनाव हारने के बाद डोटासरा ने कई मौकों पर पायलट की भी जमकर तारीफ की है और अपनी जाट नेता के रूप में अलग पहचान भी दिखाई है।

टीकाराम जूली गहलोत मंत्रिमंडल में थे और उनके कुछ चहेते मंत्रियों में से एक थे। जब पायलट व गहलोत की टकराहट हुई तब भी वे गहलोत के साथ मजबूती से खड़े दिखे थे। इस कारण ये माना जा रहा है कि उनको यहां तक लाने में भी गहलोत की कुछ न कुछ तो भूमिका है। अब जूली दोनों गुटों के विधायकों को कैसे साथ लेकर चलते हैं, ये देखने की बात है। क्योंकि पायलट समर्थकों की सदन में संख्या कम नहीं है।

मगर सचिन भी दलीय संतुलन में सक्रिय है। इस बार जीतकर आये कुछ लोगों को वे अपने साथ लाने में कामयाब रहे हैं। इस बार उनके समर्थक विधायकों की संख्या पिछली बार से अधिक है। वे अपने कुनबे को बढ़ा भी रहे हैं। उनकी नजर 2028 पर है, ये तो उनकी एक्टिविटी से साबित हो रहा है।

लोकसभा चुनाव कांग्रेस में गहलोत व पायलट की कसौटी है, उसके परिणाम ही साबित करेंगे कि कौन आगे निकला और कौन पीछे रहा। फिलहाल तो डोटासरा व जूली, दोनों के सामने दोनों गुटों को साथ लेकर चलने की बड़ी टास्क है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘