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आरएलपी लोकसभा चुनाव में भी बिगाड़ेगी कई सीटों का समीकरण, भाजपा को मिलेगा फायदा

आरएनई,बीकानेर।

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अब शतरंज की बाजी लग चुकी है और बड़ी तेजी से राज्यों में इस चुनाव को लेकर समीकरण बनने लगे हैं। विपक्षी गठबंधन इंडिया बिखरने के साथ ही भाजपा व एनडीए के हौसले बुलंद हो गये और उसे कई राज्यों में नये साथी मिलने लग गये हैं। साथ ही कुछ पुराने साथी जो छोड़ गये थे, वे भी निकट आने लग गये हैं। भाजपा ने इस चुनाव में हर राज्य के लिए अलग रणनीति बनाई है ताकि सफलता का प्रतिशत पिछली बार से अधिक हो।भाजपा जिन राज्यों में क्लीन स्वीप करना चाहती है, उसमें राजस्थान भी शामिल है। भाजपा की ये ईच्छा गैरवाजिब भी नहीं है, क्योंकि 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने राजस्थान में क्लीन स्वीप किया हुआ है। हाल ही में उसने विधानसभा चुनाव जीत के यहां सरकार भी बनाई है। 2019 के चुनाव में क्लीन स्वीप किया तब उसने हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा से समझौता किया था। 24 सीटों पर भाजपा लड़ी थी और नागौर की एक सीट रालोपा को दी थी। जहां से खुद बेनीवाल चुनाव जीते थे। मगर बाद में किसान बिलों का विरोध करते हुए वे एनडीए से अलग हो गये थे। इस विधानसभा चुनाव में वे अपने बूते लड़े और केवल खुद बेनीवाल खींवसर विधानसभा सीट जीत सके। मगर उनके उम्मीदवारों के कारण भाजपा को कई सीटों पर फायदा हुआ।इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भाजपा फिर से बेनीवाल को साथ लेने का मानस बनाये हुए है। उसकी वजह भी है। कांग्रेस में उनके धुर विरोधी हरीश चौधरी व सचिन पायलट है, जिनके कारण कांग्रेस से तालमेल हो पाना कठिन है। विधानसभा में भी ये ही रास्ते में आये थे। अब इनका वर्चस्व कांग्रेस में बढ़ा भी है। इसलिए रालोपा के सामने बड़ा विकल्प भाजपा ही है। रालोपा का पश्चिमी राजस्थान की सीटों पर प्रभाव भी है और अपना वोट बैंक भी है। ये वोट बैंक जीत या हार पर असर भी डालने वाला है। जाट बाहुल्य सीटों को कुछ कुछ रालोपा प्रभावित भी करती है। जिनमें नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर शामिल है। इन सीटों की गणित रालोपा से प्रभावित होती है, बेनीवाल ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी यहां प्रभाव डाला था। सूत्र बताते हैं कि विधानसभा में रालोपा के पिछली बार 3 विधायक थे जो अब घटकर 1 रह गया है। इस सूरत में वे दो लोकसभा सीट पर दावा कर सकते हैं। नागौर व बाड़मेर सीटों पर उनका दावा हो सकता है। यदि रालोपा भाजपा के साथ जाती है तो भाजपा उनको कितनी सीट देती है, ये देखने की बात होगी। मगर रालोपा को लेकर दोनों ही दलों में एक मंथन तो आरम्भ हो ही चुका है। रालोपा ने अभी अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। राजस्थान की चुनावी बिसात में रालोपा को इग्नोर नहीं किया जा सकता, ये तो सच है। अब वो किसके साथ जाते हैं, ये तय होने में अभी कुछ समय लगेगा।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘