स्मृति शेष : सुरजीत पातर कविता को लिखते नहीं, जीते थे
- Surjit Patar का चले जाना केवल पंजाबी कविता की नहीं, भारतीय साहित्य की बड़ी क्षति
- किसी ने बोला- पंजाबी कविता का पर्याय, कोई बोला- साहित्य का ऋषि, हर कोई बोला – यारों का यार
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
‘ कविता लिखी नहीं जाती, जी जाती है। शब्द तलाशे नहीं जाते, स्वतः कागज पर उतरते हैं। दुनिया में चाहे विज्ञान कितनी ही तरक्की कर ले, मन के भावों की कविता नहीं लिख सकता। ‘ एआई ‘ आर्टिफिशियल इंटलीजेंस से डरने की जरूरत ही नहीं, उसमें कवि की तरह संवेदना नही होती। भाव नहीं होते। इस सूरत में वो कोरे शब्द होते हैं। जिनका मोल पत्थर से अधिक नहीं। ‘
ये शब्द अभी मार्च के महीनें में दुनिया के सबसे बड़े साहित्योत्सव, नई दिल्ली में कहने वाले पंजाबी के कवि सुरजीत पातर का चले जाना केवल पंजाबी कविता की नहीं, भारतीय साहित्य का बड़ी क्षति है।
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के इस उत्सव में एक सत्र ‘ कविता का भविष्य ‘ पर था जिसकी अध्यक्षता पातर कर रहे थे। उस सत्र में ब्रजरतन जोशी, मनजिंदर सिंह सहित कई विद्वान थे। सत्र में ‘ एआई ‘ पर काफी कुछ कहा गया। तब अपने संबोधन में सुरजीत पातर ने कहा कि कविता के संवेदना की जरूरत होती है और शब्द उसी से गुजर कर बाहर आते हैं, ये काम एआई नहीं कर सकता। इससे घबराने की जरूरत नहीं, कवि और कविता हर काल में, हर दौर में, हर स्थिति में जिंदा रहेंगे। जिंदा थे, जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे।
सत्र के बाद जब पातर, डॉ अर्जुन देव चारण, रवैल सिंह, मनजिंदर, ब्रजरतन सहित हम कई लोग चर्चा कर रहे थे तो उन्होंने कहा कि कविता भीतर से निकलती है और भीतर बहुत विशाल है, जो विशालता अध्ययन, अनुभव से बनता है। उसकी बराबरी एआई नहीं कर सकता।
कविता को हर पल जीने वाले सुरजीत के बारे में कहा जाता है कि उनकी कविता सुनने व पढ़ने वाले के भीतरी मन को छूती है और एक भाव का कोमल सा झरना उसमें प्रवाहित कर देती है। उन्होंने छंद व छंदमुक्त, दोनों तरह की कविताएं लिखी। पंजाब ही नहीं देश के हर कोने में लोग उनकी कविता के दीवाने थे। उनकी कविताओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है, इसी वजह से हर भाषा का कवि और पाठक उनके काव्य कौशल से परिचित है।
राजस्थानी कवि डॉ अर्जुन देव चारण के अभिन्न मित्र थे सुरजीत पातर। इसी वजह से मेरा भी उनसे 10 साल से सम्पर्क था। एक नहीं अनेक राष्ट्रीय, साहित्य अकादमी के आयोजनों में उनके साथ रहा। उनसे कविता, साहित्य व कविता की दशा और भविष्य पर बहुत चर्चा का अवसर मिला। हर बार कविता पर कुछ जानने को मिलता। एक बार तो युवा कविता पर डॉ अर्जुन देव चारण की उपस्थिति में उनसे मैंने व संजय पुरोहित ने लंबी बात की।
पंजाबी लेखक रवैल सिंह के साथ उनसे अनेक बार आत्मीय बात का अवसर मिला। उनका सहज व सरल स्वभाव ही बताता था कि वे कितने बड़े कवि थे। दो बार साहित्य अकादमी के आयोजन में अमृतसर जाने का मौका मिला। वनीता मनचंदा जी, रवैल सिंह, मनजिंदर सिंह आदि से उनके बारे में बहुत जाना। पंजाब के आम लोगों से उनकी कई बातें जानी। आश्चर्य हुआ कि पंजाब का साहित्यकार ही नहीं, दुकानदार, रिक्शा चलाने वाला, व्यापारी, शिक्षक, आम आदमी भी सुरजीत पातर व उनकी कविता के बारे में विस्तार से जानता था।
पंजाब में शायद ही कोई हो जिसे सुरजीत पातर के बारे में जानकारी न हो। उनको पदमश्री मिलना, सरस्वती सम्मान मिलना, साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलना, शायद इसीलिए सफल है क्योंकि वो पंजाब के जन जन का कवि था। हिंदी के वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित ने फेसबुक पर उनके बारे में जो लिखा वो अक्षरसः सही है। वे सच में बड़े कवि थे।
उनकी मृत्यु पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद शवयात्रा में गये, कांधा दिया। सीएम ने उनके नाम से युवा पुरस्कार की घोषणा की। बड़ी बात है। ये होता है सरकार की तरफ से एक कवि, साहित्यकार का सम्मान। हिंदी, राजस्थानी भाषा के साहित्यकारों को भी क्या कभी कोई सरकार इस तरह मान देगी ??
पातर के साथ एक युग का अवसान हुआ। हर शब्दकर्मी व्याकुल है। उनका लिखा साहित्य सदा उनकी याद को जिंदा रखेगा।