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हे माननीयों ! इस पर क्या कहेंगे आप- बिना राजस्थानी क्यांरो राजस्थान !! कुछ तो सोचो, शर्म करो !!

“खाली धड़ री कद हुवै, चैरे बिना पिछाण
मायड़ भासा रे बिना, क्यांरो राजस्थान”

RNE, STATE BUREAU .

हे माननीयों। राज्य के मुख्यमंत्री जी। मंत्री महोदय। राज्य के 25 लोकसभा सदस्यों। राज्य के 10 राज्यसभा सदस्यों। राज्य के 200 विधायकों। राज्य की जनता के माननीयों। आप किसी भी राजनीतिक दल के होंगे। कभी न कभी तो आप सत्ता में रहे हैं। सत्ता के साथ रहे हैं। ये उपरोक्त नारा जो प्रदेश के निवासी देते हैं, सुना तो होगा ही। अगर नहीं सुना है तो ज्यादा अफसोस की बात है।

अगर ये सुना है तो क्या कभी सोचा नहीं इसके बारे में, इसके भाव को नहीं समझा क्या। इस उक्ति के पीछे के हर राजस्थानी के दर्द को महसूस नहीं किया क्या। दशकों से अपनी भाषा की मान्यता को तरस रहे प्रदेशवासियों के क्रंदन की आवाजें आपके कानों को भेदकर मन तक नहीं पहुंची क्या। प्रदेश, देश व दुनिया मे रहने वाले राजस्थानियो की मातृभाषा की पुकार आप ने सुनी नहीं या सुनना नहीं चाहा। मायड़ भाषा के प्रेमियों की ईमानदारी, आवाज में कहां कमी रह गई, बताओ तो सही।

हे माननीयों! शर्म आ रही है इस बात का जिक्र करते हुए मगर मातृभाषा के लिए जिक्र करना पड़ रहा है। आप जब वोट की भीख मांगने जाते हैं तो इसी भाषा मे ही क्यों वोट मांगते हैं। अपने लुभावने नारे इसी भाषा में क्यों लगवाते हैं। अपने झूठे – सच्चे वादे इसी भाषा में बोलकर क्यों करते हैं। उस समय तो आपको राजस्थानियो की भाषा, इस भाषा के मुहावरे, कहावतें याद आ जाते हैं। बोलने में भी झिझक नहीं करते। राम राम सा का सम्बोधन भी करते हैं। किसी का मोरिया बुलवाते हैं, किसी का कटका कढवाते हैं। क्यों जाते हैं तब मायड़ भाषा राजस्थानी की शरण में।

अफसोस की बात है माननीयों ! जब जीतकर आप लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा में जाते हैं तो अपनी इस मां बोली राजस्थानी को, अपनी पहचान को कैसे भूल जाते हैं। एक दो विधायकों को छोड़कर कोई भी शपथ राजस्थानी में लेने के लिए नहीं अडता। चुपचाप मान लेते हैं कि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं है।

मान्यता तो अंग्रेजी को भी नहीं है, उसमें कैसे शपथ ली जाती है। छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी को मान्यता नहीं, पर इस भाषा में विधायक शपथ ले सकता है। इस आधार पर तो सदन में अपनी मां बोली का हक प्राप्त करो। हे माननीयों ! अब भी अवसर है, अपनी मातृभाषा के लिए जागो और प्रयास करो, इतिहास आपको याद रखेगा।

नहीं तो जिस दिन हर राजस्थानी अपनी भाषा के लिए उठ खड़ा हुआ तो आपके पास सामने आने का भी अवसर नहीं बचेगा। अपने को बचाओ, राजस्थानी को मान्यता दिलाओ।


मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘