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राष्ट्रीय पक्षी नहीं बनाना मुर्गे के साथ नाइंसाफी, न्याय दिलाने एकजुट होना होगा

मंगत बादल

प्रातः काल मुर्गे की बांग सुनकर मेरी आँखे खुली की खुली ही रह गई। मैं सोच में डूब गया कि न जाने कब, किसने यह घोषणा कर दी कि मोर राष्ट्रीय पक्षी है। उस समय उसका ध्यान मुर्गे की ओर क्यों नहीं गया ? मुझे तो मुर्गे को मुकाबले मोर को राष्ट्रीय पक्षी मानने का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा। जहाँ तक सौन्दर्य का प्रश्न है, मुर्गा किसी भी माने में मोर से कम नहीं है। सिर पर लाल कलगी, दृढ़ चोंच, मजबूत डैने और शत्रु को पकड़ लेने में सक्षम, तीक्ष्ण पंजों सहित मजबूत टाँगे और बुलन्द आवाज ! मर्दानगी का प्रतीक है मुर्गा !

मोर से कम नहीं है मुर्गा : 

मेरी तो यह मान्यता है कि मुर्गा अपने गुणों व रूप में मोर से किसी भी माने में कम नहीं है। मुर्गे को राष्ट्रीय पक्षी नहीं कहा जाना, उसके गुणों की अवमानना है।हमारा कृषि प्रधान देश आज भी वर्षा पर ही निर्भर हैं। खेतों की हरियाली के लिए आज भी हम आकाश की ओर ताकते हैं। मोर भी ताकता है। घटाएँ देखकर हमारा ‘मन मयूर’ भी मोर के साथ-साथ नाचने लगता है। शायद इसी कारण किसी ने मोर के राष्ट्रीय पक्षी होने की घोषणा कर दी। लेकिन यह कारण तो काफी नहीं। ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर मुर्गा जब बांग देता है तो पण्डित पूजा के लिए मन्दिर की ओर, मौलवी अजान के लिए मस्जिद की ओर तथा किसान खेत की ओर चल पड़ता है। जिस जमाने में घड़ियाँ नहीं हुआ करती थीं बेचारा मुर्गा ही अलार्म का काम देता था। सुबह-सुबह उठकर मुर्गा जब बांग देता है तो हमें आगामी दिन के स्वागत की सूचना मिल जाती है। जोर से बांग देना र्कोइ आसान काम नहीं, केवल नया मुल्ला ही जोर से बांग दे सकता है।

साहित्य में मुर्गे का योगदान :

साहित्य को भी मुर्गे ने अमूल्य योगदान दिया है। कबीर तक ने मुर्गे की ‘‘बांग’’ का उपमान लेकर ढोंगी मुल्लाओं के ढोंग पर प्रहार किया- ता चढ़ मुल्ला बांग दे, कि बहरा हुआ खुदाय। मुर्गा अपने गुणों में किसी से कम नहीं है। आज भी भोजन गूष्टियों में मुर्गे की अनुपस्थिति पिछड़ेपन की निशानी मानी जाती है। मुर्गे का आकर्षण बड़े-बड़े  नेताओं और साहित्यकारों को गोष्ठियों की रौनक बढ़ाने के लिये विवश कर सकता है।

मुर्गा बनना पढ़ाई की पहली सीढ़ी : 

साभार : सोशल मीडिया

विद्यालय में बालक का सजा के रूप में सर्वप्रथम जिस विध्ाि से परिचय होता है वह है मुर्गा बनना ! मुर्गा बनने के भय से छात्र कितने अनुशासित रहते हैं तथा लगन से पढ़ाई करते हैं ! इस दृष्टि से मुर्गे का शिक्षा-जगत् को अमूल्य योगदान है। हमारी भारतीय पुलिस तो हत्थे चढ़ने पर बेकसूर को भी मुर्गा बना देती है। भारतीय पुलिस और शिक्षा विभाग मुर्गे के ऋणी हैं। मुर्गे ने आदमी की शानो-शौकत के लिए बड़े-बडे़ बलिदान दिए है। अपने मालिक की मूंछें नीची न हो इसके लिए अपनी जान पर खेल जाते थे। आदमी तो अपनी हिंसावृत्ति के पोषण के लिये ही मुर्गे लड़ाया करता था (आज भी लड़ाता है)  किन्तु मुर्गे उनकी नमक हरामी नहीं करते थे।

मुर्गे लड़ाने की कलात्मक अभिरुचि : 

मुगल सम्राज्य के पतन के बाद भारतीय नवाबों, राजाओं ने, मुर्गों, बटेरों, तीतरों को लड़वा-लड़वा कर अपनी कलात्मक अभिरुचि का परिचय दिया। भारतीय इतिहास के बहुत से अलिखित अंशों में मुर्गे के बलिदान की कथाएँ भी अंकित की जा सकती हैं। मुर्गा भड़काने पर दूसरे मुर्गे अर्थात् अपनी ही बिरादरी से जूझ मरता है। प्रतिशोध में अंधा होकर वह अपनी जान की भी परवाह नहीं करता। हम भारतियों ने इस दिशा में मुर्गों से बहुत कुछ सीखा है। आपस में लड़ना, बदला लेना, भाई-भाई का रक्त बहाने में हमने कभी कोताही नहीं बरती। तब हम देश और धर्म को ताक में रख कर मुर्गे की भांति प्रतिशोध में अंधे होकर लड़ते है। इस माने में मुर्गा हमारा पथ प्रदर्शक रहा है और रहेगा भी।

शाकाहारी अंडे से लेकर मुर्गे की टांग तक का उपयोग : 

वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि कृत्रिम तरीके से उत्पन्न किए जाने वाले मुर्गी के अंडे शाकाहार के अन्तर्गत ही आते हैं। इन्हे सफेद आलू कहा जाता है। आप यदि भारतीय तंत्रविद्या से परिचित नहीं हैं तो मुर्गे के महत्त्व को पूर्णतः नहीं समझ पायेंगे। काली, चण्डी, भैरव, आदि देवी-देवताओं की पूजा में मुर्गे की बलि दी जाती है। मुर्गे की टांग और दारू के योग से तो बडे़ से बड़ा लक्ष्य सिद्ध किया जा सकता है। बडे़-बडे़ अधिकारी और मंत्रिगण जब दारू के साथ-साथ मुर्गे की टांग चबाते हैं तो बडे़ से बडे़ वरदान मुक्त हृदय से दे देते हैं। बडे़-बड़े ठेकेदार, व्यापारी इसी तंत्र के माध्यम से अपना कार्य सिद्ध करते हैं। मुर्गा अपना बलिदान देकर भी मानव की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। धन्य है मुर्गा ! ‘‘मुर्गमुसल्लम’’ का नाम सुनकर सामिष भोजी लोगों के मुँह में पानी भर आता है। किस माने में कम है मुर्गा ! जो इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा नहीं दिया जाता। मेरे विचार में हमें एकजुट होकर इस पक्षी को न्याय दिलवाना चाहिए।