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हरीश भादानी स्मृति : काल का हुआ ईशारा, लोग हो गये गोरधन, जय जय गोरधन….

आरएनई,बीकानेर। 

रोटी नाम सत है
खाये सो मुगत है
बाजरी के पिंड और दाल की वैतरणी
थाळी में परोस ले, हथाळी में परोस ले
दाता जी के हाथ मरोड़ कर परोस ले
राज के धरमराज यही तेरा व्रत है
रोटी नाम सत है, खाये सो मुगत है ‘

ये जन गीत गाता हुआ हर गली – मोहल्ले में कोई न कोई मिल जायेगा। कई तो ऐसे भी हैं जो गीत गाते हैं, साथ में गुनगुनाते हैं, मगर उनको नहीं पता कि इस गीत के गीतकार कौन है। गीत, कविता जब कवि से बड़ी हो जाती है तब ही वह जन गीत व जन कविता बनती है। उनका रचयिता जन कवि कहलाता है। बीकानेर के लाडले कवि और गीतकार हरीश भादानी इसी कारण जन कवि है।

कई लोग उनके गीत गुनगुनाते हैं। चाहे वो मजदूर हो, किसान हो, कर्मचारी हो, ठेले वाला हो, मोची हो, दुकानदार हो, छात्र हो, राजनीतिक कार्यकर्ता हो, हरेक की जुबान पर हरीश भादानी ‘ पापाजी ‘ के गीत हैं।

जब जब चुनाव आता है, तब तब लोगों को उनका गीत —

ये राज बोलता, सुराज बोलता
पेटी का पूत लोकराज बोलता..

याद आ जाता है। आम जनता, मजदूर, गरीब की आवाज थे भादानी। उनकी कविताओं और गीतों को सहज में सम्प्रेषण मिला हुआ था। गहरी दार्शनिकता की बात भी वो आम आदमी की भाषा में कहते थे। जिससे साहित्यकार व आलोचक तो विस्मित थे ही, आम आदमी को भी वे अपने कवि लगते थे।

उनका साहित्यिक अवदान इस बात से समझा जा सकता है कि उनको सुनकर स्व हरिवंश राय बच्चन अपनी जगह से उछल उछलकर दाद दे रहे थे। उनका वेद की ऋचाओं पर किया काम हिंदी साहित्य में अद्वितीय है। हर कविता गहरे जीवन दर्शन को उद्घाटित करती है।
हिंदी साहित्य में उनकी पहचान नव गीतकार के रूप में थी। उनके गीत तुरंत जुबान पर चढ़ते थे, ये तभी सम्भव है जब उनकी अभिव्यक्ति में कोई समस्या न हो।

काल का हुआ ईशारा
लोग हो गये गोरधन
जय जय गोरधन

पुराने प्रतीकों को नए संदर्भ में व्याख्यायित करने की उनकी कला अद्भुत थी। लोगों तक वह सहाज में पहुंचती थी–

बल्ब की रोशनी शेड में बंद है
सिर्फ परछाईयां उतरती है
बड़े फुटपाथ पर
जिंदगी की जिल्द के
ऐसे सफ़े तो पढ़ लिए
तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है
मैंने नहीं, कल ने बुलाया है

महानगरीय जीवन की जटिलताओं पर उनका ये गीत पूरे देश में चर्चित हुआ। जीवन का सच इस गीत में प्रस्फुटित हुआ है। रेत के इस कवि के गीत यहां की मिट्टी में उनके रचे बसे होने का अहसास कराते हैं —

रेत में नहाया है मन
आग ऊपर से, आंच नीचे से
वो झिलमिलाए कभी

इस गीत में रेगिस्तान की रेत के जीवन को बोलते हुए दर्शाया गया है। गर्मी थार के जीवन को बहुत कठिन बनाती है, कवि ने उस पर भी गीत रचे और लोगों को पसंद भी आये। मायड़ भाषा राजस्थानी में भी उन्होंने खूब लिखा। वे नाटककार भी थे।
साहित्यकार डॉ नंदकिशोर आचार्य ने एक बार कहा था कि उनके जैसा नवगीतकार कोई नहीं था। मगर अफसोस है कि उनकी इस खासियत का साहित्य में मूल्यांकन नहीं हुआ। पापाजी आज दुनिया मे नहीं, मगर उनके गीत, कविताएं उन्हें अमरत्व प्रदान किये हुए हैं। सदा उनको जीवित भी ये गीत व कविताएं रखेंगी।