पुरष्कृत कृति : ‘म्हारी ढाणी’ को साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार
- नवयुग के पथ पर बाल संस्कारों का केन्द्रः ‘‘म्हारी ढाणी‘‘
हेमन्त चण्डीदान उज्जवल
RNE Special.
मायड़ भाषा को पोषित करती 45 बाल काव्य रचनाओं का रंग-बिरंगा समूह बनाती पुस्तक ‘‘म्हारी ढाणी‘‘ के रचनाकार कवि प्रहलादसिंह झोरड़ा की इस कृति को नवयुग के पथ पर बाल संस्कारों का केन्द्र कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
राजस्थानी बाल काव्य कृति ‘‘म्हारी ढाणी‘‘ की रचनाएं बाल मनोविज्ञान से जुड़ी है। यह साहित्यिक कृति की शब्द रचनाओं में कवि ने नन्हें-मुन्नों बाल गोपालों को संस्कारित करने के साथ-साथ नव युग की नव धारा से भी परिचय करवाती है। म्हारी ढाणी की कविताएं अपने बाल पाठक को गांव-ढाणी से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने की राह दिखाती है।
कवि प्रहलादसिंह की बाल काव्य शैली की खास बात यह है कि वे शब्दों के उड़न खटोले से आसमान में उड़ने की चाहत के साथ ही धरातल से जुड़ाव को स्मृति में रखने की सीख और संदेश भी देती है। नव युग के बाल साहित्य को मायड़ भाषा के मीठे शब्दों को कविताओं में संजोते हुए
कवि ने इस काव्यकृति म्हारी ढाणी में राजस्थान की प्रकृति, संस्कृति, खेती-बाड़ी, रीति-रिवाज, धन-दान, बच्चे-नौनिहाल, किशोर-युवा, हल और किसान, वरिष्ठ और वृद्धजन, सिखाई-लिखाई, बारिश-आंधी, बादल-बिजली, पानी-ढाणी, पशु-पक्षी, भूत-वर्तमान आदि का उल्लेख करते हुए इसे बाल उपयोगी बनाया है।
चूंकि कवि एक शिक्षक भी है, इसलिए उनकी बाल काव्य रचनाओं में हर जगह गुरू-चेतना का दर्शन भी होता है। कवि ने अपनी कृति में वाग्देवी की आराधना लिखते हुए सब के लिए यश प्राप्ति और कुशलता की कामना की है, जो सर्वकल्याण की भावना को इंगित करती है।
‘‘भलो करूं तन मन सूं सबरो/जग में नाम कमाऊं जबरो
इतरो सो वरदान दो/सुरसत माता ग्यान दो‘‘
राजस्थानी बाल साहित्य की उम्दा कृति में कवि झोरड़ा ने जल संरक्षण, वृक्षारोपण, प्रदूषण से बचाव, पर्यावरण संरक्षण, अंधविश्वास से दूर रहने का संदेश, महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लेने की सीख, विज्ञान का महत्व, समय का सदुपयोग, सैनिकों, स्वतंत्रता सैनानियों के प्रति आदर भाव, किसान की पीड़ा, पक्षियों से लगाव, धरातल से जुड़ाव, संस्कारों की सीख, अच्छी दिनचर्या, सांप्रदायिक सौहार्द, मानवता की सीख, दया भाव, बुराईयों का त्याग, रिश्तों की महत्ता, राजस्थान की संस्कृति, खान-पान, तथा खेलकूद का महत्व भी दर्शाया है।
‘‘कैर कुमटा साग मोकला/खीच, राबड़ी और ढोकला
सांगरिया चौफेरां जाणी/धोराई ऊपर म्हारी ढाणी‘‘
यहां कवि ने अपनी मायड़ भाषा की शब्दावली में समृद्धता बनाए रखने के लिए ठेट ग्रामीण अंचल से जुड़े शब्दों का प्रयोग किया है। यही नहीं कवि ने बाल पाठकों के सामने अपनी इस कृति में गुरुजनों का सम्मान करने की सीख में भी शब्दों का ताना-बाना बुना है।
‘‘घड़ी में ध्यान रख साथी, बगत रो मान रख साथी
गुरुजी ज्ञान रा सागर, सदा सम्मान रख साथी‘‘
साहित्य के कई जलसों में अपने प्रौढ़ गीतों और कविताओं के साथ बालमन को भी संस्कारित करने के उद्धेष्य से भी कलम चलाने वाले कवि प्रहलादसिंह पर एक षिक्षक के रूप में नौनिहालों का भविष्य बनाने का दायित्य भी है। अलग-अलग भूमिका में कवि के मन मस्तिष्क में बैठा षिक्षक इण बात को जानता है कि आप धरा के गर्भ में पानी रीत रहा है। भूमिगत जल के घटते स्तर पर चिंता जताते हुए कवि ने अपने बाल पाठकों के लिए जन जागरण के लिए काव्य अभिव्यक्ति के रूप में आह्वान किया है….
‘‘दिन दिन ऊंडो जावै पाणी/किण सूं अै बातां अणजाणी
गांव-गांव अर ढाणी-ढाणी/सबनै मिलजुल अलख जगाणी
कह दो आज बजाय‘र ढोल/बूंद-बूंद इणरी अणमोल‘‘
मायड़ भाषा के ऊर्जावान कवि प्रहलादसिंह ‘‘झोरड़ा‘‘ को काव्य सृजन के संस्कार वंष परम्परा में मिले हैं। ‘‘मुरधर म्हारो देष‘‘, ‘‘झोरड़ा गांव जठै‘‘ जैसे अमर गीत के रचियता कालजयी कवि कानदान कल्पित जैसे साहित्यिक वटवृक्ष की छांव तले साहित्य का ककहरा सीखने वाले युवा कवि प्रहलादसिंह आप अपनी मेहनत, लगन और निरंतन अभ्यास के बलबूते राजस्थानी और हिंदी साहित्य में एक जगह बना चुके हैं।
कवि ने अपनी पहली पोथी मायड़ भाषा को समर्पित करते हुए ‘‘रंगरूडो मरूदेस‘‘, लिखी और दूसरी पोथी हिंदी बाल काव्य के रूप में प्रस्तुत की। ‘‘चांद खिलौना‘‘ नाम से लिखे गए इस बाल काव्य की रचनाओं को भी रचनाधर्मियों व साहित्यप्रेमियों ने खूब सराहा।
कवि का बाल मनोविज्ञान काफी समृद्ध है, इस बात की साख मायड़ भाषा में लिखी उनकी कृति ‘‘म्हारी ढाणी‘‘ की रचनाएं भरती हैं। कविता संग्रह ‘‘म्हारी ढाणी‘‘ की रचनाएं बालकों में संस्कारों को पोषित करने का केन्द्र प्रतीत होती हैं। कवि प्रहलादसिंह को उनकी इस अमर काव्य कृति के लिए साहित्य अकादमी नई दिल्ली से हाल ही में बाल साहित्य पुरस्कार घोषित पर अनंत शुभकामनाएं।