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पोपटलाल जी का पर्यावरण प्रेम : कुर्सीविद का पॉलिटिकल प्रदूषण नियंत्रण फार्मूला

डॉ. मंगत बादल

मुख्यमंत्री महोदय ने जब यह देखा कि पोपटलालजी को मंत्रिमण्डल में न लेने से पार्टी में जबरदस्त प्रदूषण फैलने की संभावना है तथा असंतुष्ट गुट उनके नेतृत्व में कभी भी पार्टी से अलग हो सकता है। तब उन्हें लगने लगा था कि उनकी प्रभा-मण्डल रूपी ओजोन परत के फटने से फूट की अल्ट्रा-वायलेट किरणें उनके सिंहासन को क्षति पहुँचाने ही वाली हैं इसलिए उन्होंने मंत्रिमंडल के विस्तार की घोषणा कर दी। उसमें पोपटलालजी को पर्यावरण मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री घोषित करने के साथ-साथ उनके गुट से दो राज्य मंत्री भी ले लिए। इस प्रकार राजनीतिक वातावरण में फैली असमंजस की स्थिति और प्रदूषण को दबाने की दिशा में पोपटलालजी का प्रथम परोक्ष प्रयास कहा जा सकता है। इसके बाद तो उन्होंने इस क्षेत्र में जो कार्य किए वे काबिले तारीफ और इतिहास में दर्ज करने लायक हैं।

पोपटलालजी ने मंत्री बनने के बाद सर्वप्रथम पत्रकारों के समक्ष जो बयान दिया उसका सारांश यही था कि निजी लाभ कमाने के लोभ में उद्योगपति जिस प्रकार पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं वह सहन नहीं किया जा सकता। राज्य में बड़े और छोटे उद्योगपति वातावरण में जिस प्रकार प्रदूषण फैला रहे हैं तथा नदियों का जल प्रदूषित कर जन-स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं इसके खिलाफ शीघ्र ही वे एक खास विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत करने वाले हैं। वे प्रत्येक कारखाने की चिमनी और गंदे जल के निकास वाले नालों पर विशेष प्रकार के यंत्र लगवाए जाने के लिए कारखाना मालिकों को कानूनी रूप से पाबन्द करेंगे जिससे पर्यावरण प्रदूषण पर रोक लगेगी।

मुख्यमंत्री महोदय ने सोचा था कि पोपटलालजी को पर्यावरण-मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाकर वे असंतुष्टों की जुबान बन्द कर देंगे। उनका विचार था कि पोपटलाल कुछ ‘कमाई-धमाई’ नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनका अब तक का यही अनुभव था कि इस मंत्रालय के मंत्री, पद का सुख तो प्राप्त कर लेते हैं किन्तु और कुछ अर्जित नहीं कर सकते। मन ही मन उन्हें अपनी इस योजना पर खुशी हुई कि इस प्रकार साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटेगी; लेकिन पोपटलालजी के बयान पढ़कर वे भौंचक रह गए। उन्होंने तो इस आदमी को गरज पड़े ‘गधे को बाप’ बनाया था लेकिन यह तो सचमुच उनका बाप निकला। वे स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे कि पोपटलालजी इस प्रकार रेत में से भी तेल निकाल लेंगे। अब तक जिस विभाग को शुष्क समझा जाता था वह तो सोने की खान निकला। उन्हें अपने निर्णय पर पछतावा हो रहा था किन्तु अब किया भी क्या जा सकता था जब चिड़ियाँ चुग गई खेत! तीर हाथ से छूट चुका था। पोपटलालजी ने अपनी शतरंज की बिसात पर चालें चलनी शुरू कर दी थीं।

पोपटलालजी बहुपठित चाहे नहीं थे लेकिन बहुश्रुत थे। घाट घाट का पानी पीने के कारण वे इस तथ्य से परिचित थे कि कब किसको ‘पानी पिलाया’ जा सकता है तथा कब पानी रंग बदल लेता है? यह बात उनके अनुभव में समाहित थी कि मोती ‘गहरे पानी में पैठने से ही मिलते हैं। अपने गहन जीवनानुभवों से उन्होंने यह जान लिया था कि यदि उन्हें घी खाना है तो उसे प्राप्त करने के लिए अंगुली टेढ़ी करनी पड़ेगी इसलिए घोषणा के तीसरे दिन बाद उन्होंने राज्य के बड़े-बड़े कारखाना मालिकों के नाम नोटिस जारी करने के आदेश दे दिए। एक सप्ताह बाद सुखद स्थिति सामने आ गई कि अब उनकी पाँचों अंगुलियाँ धीरे-धीरे घी में बोरने लगी थीं। मंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रदेश में अपने दौरे का विस्तृत कार्यक्रम बनाया।

ताकि पर्यावरण सुधार की संभावनाओं का अध्ययन किया जा सके। वे जिस नगर या कस्बे में जाते अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलकर वहाँ के पर्यावरण के बारे में जानकारी लेते तत्पश्चात् उद्योगपतियों और मिल मालिकों की आवश्यक बैठक आमन्त्रित करते। उन्हें पर्यावरण के सम्बन्ध में उनके कर्तव्यों का बोध करवा कर देश और जनहित के पक्ष में कार्य करने की सलाह दी जाती। वे यह बतलाते है कि भारतीय उद्योग जिस प्रकार अंधाधुंध विकास की ओर बढ़ रहे हैं इससे पर्यावरण पर एक गंभीर संकट आ पड़ा है। उनके विचार में पर्यावरण की शुद्धता और समृद्धि मानव की समृद्धि है।

सरकारी अधिकारियों से भी वे पर्यावरण शुद्धता बनाए रखने के लिए सहयोग मांगते। इसके बाद लोगों ने आश्चर्यपूर्वक देखा कि उनका कथन शत-प्रतिशत सही है क्योंकि पोपटलालजी और उनके रिश्तेदार प्रतिदिन समृद्ध होते जा रहे थे। जो व्यक्ति इस आंदोलन में जितनी रुचि से भाग लेता उतना ही समृद्ध हो जाता। पोपटलालजी जहाँ भी जाते वृक्षारोपण अवश्य करते। दौरों के दौरान वे अपनी कार में विभिन्न पेड़ो की ‘पौध’ रखते। जहाँ भी विश्राम करते एक-दो पौधे लगवा देते। रेगिस्तान में आम, बादाम और सेब के पेड़ लगवा कर उन्होंने एक आदर्श पर्यावरणविद् का परिचय दिया।

पोपट लाल जी ने अपने राज्य में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा पेड़ लगाने का आदेश जारी करवा दिया। कोई भी सरकारी काम करवाने से पहले व्यक्ति को ‘पेड़ लगाने का प्रमाण-पत्र’ प्रस्तुत करना होगा। इसका यह असर हुआ कि लोग जहाँ भी जाते अपने साथ एक पौधा जरूर ले जाते। जहाँ स्थान मिला, पेड़ लगाया और प्रमाण-पत्र ले लिया ताकि जरूरत के वक्त काम आ सके।

इस तरह सरकारी फाइलों के अनुसार प्रदेश में एक वर्ष में दस लाख से अधिक पेड़ लगाए गए। यह अलग बात है कि उनमें से कुछ हजार भी नहीं पनप सके। एक वर्ष बाद पोपट लाल जी को लगा कि उनकी योजना में कही खामी है क्योंकि पर्यावारण में उतना सुधार नहीं हुआ जितना फाइलों में दिखलाई पड़ता है इसलिए उन्होंने इसकी जाँच के लिए एक जाँच आयोग बिठा दिया ताकि विरोधी दलों या विदेशियों की कोई साजिश हो तो पकड़ी जा सके। छः महीने की जाँच के बाद पता चला कि पनपे हुए पौधों को बकरी नाम का एक जानवर चर जाता है। मंत्री जी को चिन्ता हुई। उन्हें लगा कि देश की उन्नति और पर्यावरण की शुद्धता में बकरी बाधक है।

देश की प्रगति को बकरियाँ चर रही हैं। इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि वे जहाँ भी जायें उनके खास दरबार में दोषी बकरियों को अवश्य हाजिर किया जाए। इससे एक लाभ तो यह हुआ कि पेड़ों की दुश्मन बकरियों की संख्या में कमी आई दूसरे प्रदेश में अन्न की खपत में कमी आई ! एक पंथ दो काज ! अपने चार वर्ष के मंत्री काल के दौरान पोपट लाल जी ने पर्यावरण सम्बन्धी अनेक योजनाएँ बनाईं और उन्हें क्रियान्वित किया। आने वाली पीढ़ियों के मार्ग दर्शक बने। अब वे आगामी चुनाव न भी जीत पाएँ तो भी पर्यावरण सुधार की दिशा में उन्होंने जो कार्य किए हैं उनके लिए देश और प्रदेश सदैव उनके ऋणी रहेंगे।


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