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बजट पास होने से पहले क्रियान्वयन की बात, जुली- डोटासरा ने घेरा, उप चुनाव का दबाव

RNE, State Bureau 

राज्य का बजट 10 जुलाई को विधानसभा में वित्त मंत्री दिया कुमारी ने पेश कर दिया। बजट में बहुत सी लोक लुभावन की घोषणाएं की गई है। एक तरह से चुनावी बजट का अहसास हो रहा है। अभी विधानसभा में बजट पर बहस चल रही है मगर प्रभारी मंत्रियों ने अपने अपने जिलों के दौरे कर लिए। प्रशासनिक स्तर पर भी जिलों के प्रभारी सचिव दौरा शनिवार व रविवार को कर गये। बजट घोषणाओं की क्रियान्विति के निर्देश प्रभारी मंत्रियों व प्रभारी सचिवों ने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को दिए।

बस, कांग्रेस ने इसे लपक लिया। सोमवार को सदन में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली व गोविंद डोटासरा इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर हो गये। उन्होंने संवैधानिक मुद्दा बनाते हुए कहा कि अभी तो विधानसभा ने बजट पारित ही नहीं किया, उससे पहले क्रियान्विति की बात कैसे हुई। ये संवैधानिक व्यवस्था व परंपरा के खिलाफ है। अभी तो सदन बजट पर बहस करने में लगा है। कल तक बहस हुई। जवाब हुआ। नई घोषणाएं हुई। कल तक इंतजार कर लेते।

व्यावहारिक रूप से देखा जाये तो जुली व डोटासरा की बात वजनदार थी। सरकार को अपनी घोषणाओं को पूरा करने में इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी। बहुमत उनके पास है। बजट पारित होने में भी परेशानी नहीं है। फिर हड़बड़ाहट क्यों ?? विपक्ष का ये सवाल तो वाजिब ही है। प्रभारी मंत्रियों व सचिवों का जिलों में बैठकें करके ये कहना ही तर्कसंगत नहीं था कि बजट की घोषणाओं को क्रियान्वित करें। वे उसकी तैयारियों की अपरोक्ष बात करते तो राजनीतिक रूप से गलत नहीं होता।

सरकार ने बैठे बिठाए विपक्ष को एक मुद्दा पकड़ा दिया। जिसे लपकने में जुली व डोटासरा ने देरी भी नहीं लगाई। आश्चर्य तो इस बात का है कि विपक्ष हमला करता रहता है और बचाव करने वरिष्ठ विधायक भी सामने नहीं आते। वे चुपचाप कार्यवाही देखते रहते हैं। उनको एक विशेष गुट का भी माना जाता है। सरकार की तरफ से संसदीय कार्य मंत्री ही बचाव करते दिखते हैं। विपक्ष पूरा का पूरा एकजुट होकर हमला करता है। विपक्ष का ये आरोप कि सत्ता पक्ष दो भागों में बंटा हुआ है, अनेक अवसरों पर सही भी प्रतीत होता है।

वरिष्ठ मंत्री किरोड़ीलाल मीणा इस्तीफा देकर घर बैठ गये हैं और सदन से अनुपस्थित रहने की अनुमति भी ले ली है। ये भी विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा है क्योंकि वे घोषणा कर चुके मगर सीएम ने अभी तक उनका इस्तीफा ही स्वीकार नहीं किया है। दूसरे वरिष्ठ विधायक व शिक्षा मंत्री मदन दिलावर आदिवासी समाज पर दिए अपने बयान के बाद से विपक्ष के निशाने पर पहले से है। जबकि वे अपने उस बयान का स्पष्टीकरण भी दे चुके हैं।

वसुंधरा राजे सदन में कम ही दिखती हैं। कालीचरण सर्राफ, प्रताप सिंह सिंघवी जैसे विधायक चुप बैठ तमाशा देखते हैं। सदन में अनेक बार हंगामा भी इसी वजह से होता है। भाजपा सरकार व संगठन दबाव में तो है, ये दबाव है 5 सीटों के उप चुनाव का। लोकसभा चुनाव में 11 सीटें हारी। दो विधानसभा उप चुनाव हारे। अब पार्टी व सरकार इस बार के उप चुनावों में अच्छा करना चाहती है। उसी के दबाव के चलते ही लगता है बजट पारित होने से पहले ही प्रभारी मंत्रियों और सचिवों के जिलों के दौरे करा दिए। कुल मिलाकर भाजपा के भीतर का असंतोष अब सामने आने लगा है।

 


— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘