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NWR : बीकानेर सहित NWR की ट्रेनों के 11 हजार कोच में बायो टॉयलेट लगे

  • DRDO के तकनीकी सहयोग से बने बायो टॉयलेट सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बो में लगाये
  • रेलवे में बायो टॉयलेट-पटरी/प्लेटफार्म से गंदगी हटने के साथ ही हैं पर्यावरण अनुकूल
  • उत्तर पश्चिम रेलवे की सभी गाड़ियों के डिब्बों में लगाए गए 11000 बायो टॉयलेट


RNE Bikaner-Jaipur.

रेल कोच के जरिये अब प्लेटफार्म या पटरियों पर मानवमल सहित अन्य किसी तरह की गंदगी फैलना पुराने जमाने की बातें हो गई है। खासतौर पर बीकानेर सहित राजस्थान के बड़े हिस्से NWR में चलने वाली गाड़ियां अब किसी तरह की गंदगी नहीं फैलाएगी। इसकी वजह है कि उत्तर पश्चिम रेलवे के सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगा दिये गए हैं। सवारी गाड़ियों के डिब्बों में लगभग 11000 बायो टॉयलेट लगाए गए हैं। ऐसे में अब NWR की सभी सवारी गाड़ियों में बायो टॉयलेट लग चुके हैं।

11 साल में 11 हजार बायो टॉयलेट :

उत्तर पश्चिम रेलवेके मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण के अनुसार परंपरागत टॉयलेट से स्टेशनों एवं रेलवे ट्रैक पर अत्यधिक गंदगी को देखते हुए वर्ष 2013 से डिफेन्स रिसर्च एवम् डेवलपमेंट संस्थान (DRDO) के तकनीकी सहयोग से सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बो मे बायो टॉयलेट लगाने का कार्य प्रारंभ किया गया था।

ऐसे कम करता है बायो टॉयलेट :

बायो-टॉयलेट एक संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन समाधान है जो बैक्टीरिया इनोकुलम की मदद से ठोस मानव अपशिष्ट को बायो-गैस और पानी में बदल देता है। समय समय पर आवश्यकतानुसार मात्रा कम होने पर इन बैक्टीरिया को बायो टैंक मे डाला जाता है। बायो-टॉयलेट का बचा हुआ पानी रंगहीन, गंधहीन और किसी भी ठोस कण से रहित होता है। इसके लिए किसी और उपचार/अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे वातावरण पर्यावरण अनुकूल रहता है। बायो-टॉयलेटके प्रयोग से रेल लाइन पर अपशिष्ट पदार्थ एवं पानी नहीं गिरता है, जिससे जंग आदि की समस्या नहीं होने से रेलवे ट्रैक की गुणवत्ता एवं उम्र में बढ़ती है। बायो-टॉयलेटके प्रयोग सेकोच मेंटेनेंस स्टाफ को भी डिब्बे के नीचे अंडर फ्रेम में कार्य करते समय गंदगी और बदबू से राहत मिलती है।

अपग्रेड भी हो रहे हैं बायो टॉयलेट :

कैप्टन शशि किरण के अनुसार समय-समय पर इन बायोटॉयलेट के उन्नयन हेतु भी प्रयास किये जा रहे हैं। इन बायो टॉयलेट के उपयोग के दौरान यात्री फीडबैक एवं अन्य समस्याओं को दूर करते हुए कई बदलाव किये गए हैं जैसे की “पी” ट्रैप को “एस” ट्रैप मे बदला गया है, इससे शौचालयों मे वाटर सील बन जाती है जिसके कारण बदबू की समस्या नहीं रहती है। साथ ही उचित वेंटिलेशन की भी व्यवस्था की गई है। चलती गाडियों मे इन शौचालयों मे आने वाली समस्या के तवरित निदान हेतु प्रशिक्षित कर्मचारियों को आवश्यक उपकरणों के साथ तैनात किया जाता है। शौचालयों मे कूड़ेदान की व्यवस्था भी की गयी हे ताकि कचरे का निपटान ठीक प्रकार से हो एवं बायो टॉयलेट चॉक न हो।

बायो टॉयलेट की भी होती है जांच :

इन बायो टॉयलेट शौचालयों के सही तरह से कार्यशील व् पर्यावरण अनुकूल रखने हेतु निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो की आवधिक जाँच की जाती है। इस जाँच हेतु विभिन्न मंडलों मे प्रयोगशाला स्थापित की गयी है। जयपुर में स्थापित प्रयोगशाला NABLसे प्रमाणित प्रयोगशाला है।

यात्रीगण ध्यान दें :

  • सभी यात्रियों से अनुरोध हे कि इन शौचालयों के सही तरह से कार्य करने हेतु रेलवे का सहयोग करें।
  • शौचालयों मे अख़बार, नैपकिन, बोतल, प्लास्टिक, पोलीबैग, कपडा, गुटके का पाउच, चाय के कप व् अन्य कचरा इत्यादि न डालें।
  • आवश्यकता होने पर शौचालय मे रखे कूड़ेदान का उपयोग करे।
  • उपयोग के बाद कृपया फ्लश अवश्य चलाये एवं शौचालय को व्यर्थ ही गन्दा न करे।
  • जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाए, गंदगी के खिलाफ जंग में रेलवे की सहायता करें।