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राठौड़ के लिए सबको साधना टेढ़ी खीर, भाजपा की अंतर्कलह पर लगाम जरूरी, उप चुनाव परीक्षा

RNE, State bureau 

भाजपा के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष मदन सिंह राठौड़ कल अपना पदभार ग्रहण करेंगे। राठौड़ को पार्टी ने पहले विधानसभा का टिकट नहीं दिया मगर नाराज होने पर पीएम मोदी ने मनाया तो उन्होंने निर्दलीय के रूप में भरा अपना नामांकन वापस लिया। फिर कई बड़े नेता जो विधानसभा चुनाव हारे थे, उनको नजरअंदाज कर उन्हें राज्यसभा में उम्मीदवार बनाया। अब फिर से जब भाजपा लोकसभा चुनाव में 11 सीटें हारने के बाद अंतर्कलह से घिरी थी तो उनको राज्य भाजपा की कमान सौंपी दी।

राठौड़ की इस नई ताजपोशी के पीछे कुछ न कुछ तो खास वजह है ही। नहीं तो इस तरह बड़ी जिम्मेदारियां नहीं मिलती। सब जानते हैं कि वे जमीनी कार्यकर्ता है। संघ से उन्होंने सार्वजनिक जीवन शुरू किया और फिर भाजपा में आ गये। पार्षद से सर्वोच्च सदन राज्यसभा तक पहुंच गये। केवल संघनिष्ठ होना ही एक वजह नहीं, दूसरे भी कई कारण है। वे जमीन से जुड़े नेता हैं। अनुशासित हैं। उनको राज्य में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से अलग गुट का माना जाता है। उनसे राठौड़ की कभी बनी ही नहीं। वर्तमान में राजे गुट भी भाजपा में एक शक्तिशाली केंद्र है।

भाजपा अध्यक्ष के रूप में राठौड़ के सामने कई चुनोतियाँ है। अंतर्कलह को दूर करना प्राथिमकता है। लोकसभा चुनाव के बाद ये समस्या बढ़ी है, उससे निपटना आसान तो नहीं। राजे गुट तो है ही, उसके अलावा राजेन्द्र राठौड़ व सतीश पूनिया के धड़े बड़े धड़े हैं। किरोड़ीलाल मीणा का अपना एक कद है। इन सबके अपने अपने लोग हैं और अपनी अपनी राहें हैं, इनको एक राह या एक पटरी पर लाये बिना तो राठौड़ कलह खत्म नहीं कर सकते।

दूसरी सबसे बड़ी चुनोती सरकार में मंत्रियों व विधायकों के टकराहट की है। भाजपा के ही विधायक अपने मंत्रियों को घेर रहे हैं। सरकार व संगठन में भी अभी तालमेल नहीं दिख रहा। निवर्तमान अध्यक्ष सी पी जोशी ने पार्टी कार्यालय में जन सुनवाई की घोषणा कर दी मगर वो फलीभूत ही नहीं हुई। पहले तो मंत्री नहीं आये। बाद में पार्टी पदधिकारियों को बिठाया, मगर वो सिलसिला भी अनवरत नहीं रह सका। सरकार व संगठन में तालमेल राठौड़ के सामने दूसरी बड़ी चुनोती है।

पिछले दिनों भाजपा के ही नेताओं ने एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगाई, उससे पार्टी की किरकिरी हुई। उस पर भी लगाम लगाना एक चुनोती है। लोकसभा चुनाव हारे प्रत्याशियों ने अपने ही लोगों पर भीतरघात व निष्क्रियता के आरोप लगाये, उनका निदान भी राठौड़ को करना होगा।

राठौड़ के लिए भाजपा अध्यक्ष का पद कांटों का ताज है। क्योंकि अध्यक्ष के रूप में उनकी हर जिले के भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं पर पकड़ जरूरी है, जो अभी नहीं है। इस बीच 5 सीटों पर उप चुनाव भी होने हैं, जो उनकी बड़ी परीक्षा है। अब समय ही तय करेगा कि पार्टी का निर्णय सही है या नहीं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राठौड़ के सामने चुनोतियाँ बेशुमार है।


— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘