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आक्रोशित लोगों ने लिखा ‘अब हिन्दी में रामसा पीर के भजन गाकर वोट लेना’

  • विश्व मातृ भाषा दिवस पर ट्रोल हुए केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल

आरएनई, बीकानेर।

अर्जुन राम मेघवाल की 2 साल पहले की फेसबूक पोस्ट

विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर  पूरे राजस्थान में ‘मायड़ भाषा’ राजस्थानी की मान्यता की मांग हो रही है। बीकानेर, नागौर, जयपुर में प्रदर्शन हो रहे हैं। उसी दिन बीकानेर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने ऐसी पोस्ट की है जिससे पूरे प्रदेश में राजस्थानी को मायड़ भाषा मानने वाले दुखी और आक्रोशित हैं।  इस पोस्ट में अर्जुनराम मेघवाल ने लिखा है ‘हिन्दी हमारी मातृभाषा है, अतः हमें हिन्दी के सम्मान के प्रति सजग रहना चाहिए’।

अर्जुन राम मेघवाल की 2024 की फेसबूक पोस्ट

अर्जुनराम की इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने वालों को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है कि हिन्दी का सम्मान होना चाहिए। उन्हें एतराज इस बात पर है कि हमेशा राजस्थानी में भजन गाने वाले। खुद की राजस्थानी पहचान बताने वाले अर्जुनराम ने अपनी मातृभाषा हिन्दी बताई है। ऐसे में सवाल पूछ रहे हैं अगर हिन्दी मातृभाषा है तो राजस्थानी उनके लिए क्या है ?

मंत्री मेघवाल की पोस्ट से आहत हैं ‘राजस्थानी’:

कमल रंगा (राजस्थानी मान्यता आंदोलन की अलख जगाने वाले कवि-लेखक)

ये मेरे लिये बहुत दुख का दिन है जब राजस्थानी की मान्यता की पैरोकारी करने वाले मंत्री और बीकानेर के सांसद जिनकी मायड़ भाषा राजस्थानी है उन्होंने कहा है कि उनकी मातृभाषा हिन्दी है। मातृ भाषा वह होती है जो मां की गोद में जन्म के समय से घूंटी के साथ दिल में उतर जाती है। जितना मैं जानता हूं वे बीकानेर में किसमीदेसर गांव के हैं। उनके माता-पिता और पीढ़ियां यहीं की है। इसी माटी में रचे-बचे हैं। यही संस्कृति पहनी-ओढी है। ऐसे में उनकी घुट्टी में हिन्दी कैसे हो सकती है।
हैरानी इसलिये भी ज्यादा है कि वे खुद संस्कृति मंत्री हैं और भाषा-संस्कृति के संऱक्षण की बात करते रहे हैं। खुद को सांस्कृतिक रूप से राजस्थानी के रूप में प्रस्तुत करते हैं। राजस्थानी भजन-वाणियां गाते हैं। ऐसे में मातृभाषा दिवस के मौके पर उनका यह बयान आघात पहुंचाने वाला है।

क्या हिन्दी में रामसा-पीर के भजन गाएंगे:

-गौरीशंकर प्रजापत, (प्रदेश उपाध्यक्ष राजस्थान मोट्यार परिषद)

अर्जुनराम मेघवाल वे सांसद है जिन्होंने राजस्थानी की मान्यता की मांग उठाने में सहयोग किया। पैरोकारी की। प्रतिनिधिमंडल के साथ मिले। कई मंचों पर सहमत रहे। अपने पहनावे से लेकर बोल-चाल तक सब जगह उन्होंने राजस्थानी भाषा और संस्कृति को अपनाये रखा। अचानक मातृभाषा दिवस के मौके पर उन्होंने अपनी मायड़भाषा ‘राजस्थानी’ की बजाय ‘हिन्दी’ बताई है। इससे राजस्थानी मान्यता आंदोलन को धक्का लगा है। मोट्यार परिषद सहित पूरे राजस्थान के मायड़ भाषा प्रेमी इससे आहत हैं। क्या वे हिन्दी में ‘रामसा पीर’ के भजन गायेंगे।

अपनी भाषा का सम्मान करना चाहिए : 

राजेन्द्र जोशी, (लेखक-सामाजिक कार्यकर्ता)

अर्जुनरामजी को अपनी माटी और भाषा से प्यार करना चाहिए। वे तो संसद में राजस्थानी भाषा के पैरोकार हैं। उन्हें अपनी मातृभाषा के समर्थन में काम करना चाहिए। मातृ भाषा हमेशा वह होती है जो जन्म के साथ मां के दूध और लोरी के साथ मिलती है।

आंदोलन को धक्का लगा : 

प्रशांत जैन, (राजस्थानी मान्यता आंदोलन से जुड़े युवा)

राजस्थानी की मान्यता के लिए आंदोलन करते वक्त हमेशा यह विश्वास बना हुआ था कि संसद में हमारी बात कहने वाला कोई हिमायती मौजूद है। आज केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की पोस्ट से आहत हुए हैं। आंदोलन को धक्का लगा है। युवाओं में आक्रोश है। हैरानी इस बात पर है कि दो साल पहले इसी दिन मेघवाल ने अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी बताई। अब अचानक ऐसा क्या बदलाव आ गया, यह समझ से परे हैं।

सत्यप्रकाश आचार्य के सामने जताई नाराजगी :

राजस्थानी की मान्यता के लिए बीकानेर में कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शनकारियों ने भाजपा नेता और राजस्थानी अकादमी के पूर्व सचिव डॉक्टर सत्यप्रकाश आचार्य से मिलकर मंत्री मेघवाल के इस बयान पर नाराजगी जताई। डॉक्टर आचार्य ने मोटयार परिषद के कार्यकर्ताओं को मंत्री मेघवाल तक बात पहुंचाने के लिए आश्वस्त किया।

अर्जुनराम की पोस्ट पर पूरे राजस्थान में ये प्रतिक्रिया :