Skip to main content

खींवसर व झुंझनु सीटें भाजपा के लिए टेढ़ा सवाल, नाराज जाटों के तेवर तीखे

RNE, BIKANER.

राजस्थान की 6 विधानसभा सीटों पर अब उप चुनाव की तैयारी है। चुनाव आयोग इसके लिए कभी भी अधिसूचना जारी कर सकता है। 5 सीटें दौसा, देवली उणियारा, घाटोल, झुंझनु व खींवसर तो यहां के विधायकों के सांसद बन जाने के कारण खाली हुई है। वहीं छठी सीट सलूम्बर की विधायक के आकस्मिक निधन के कारण रिक्त हुई है। इन 6 सीटों में से भाजपा के पास केवल 1 सीट सलूम्बर की है। एक सीट आदिवासी पार्टी के पास है और एक ही सीट रालोपा के पास है। बाकी 3 सीटें कांग्रेस के पास है। 

भाजपा लोकसभा चुनाव में 11 सीट हारी और सरकार बनने के बाद हुए दोनों सीटों के विधानसभा उप चुनाव हारी। अब भाजपा अपनी हार को जीत में बदलने के लिए इस बार के उप चुनाव में दूसरे दलों से सीटें छीनना चाहती है ताकि सरकार व संगठन की खोई साख को प्राप्त कर सके। भाजपा इस बीच अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदल चुकी है। सी पी जोशी की जगह इस पद पर मदन सिंह राठौड़ आ गए हैं। सीएम भजनलाल भी उन क्षेत्रों में ज्यादा सक्रिय हैं जहां उप चुनाव होने हैं। मंत्रियों को भी उन जगहों पर विशेष तौर पर लगाया गया है।

भाजपा के सामने बड़ी चुनोती झुंझनु व खींवसर की सीटें हैं। इन सीटों पर राजनीतिक समीकरण पूरी तरह उलझा हुआ है। ये दोनों जाट बाहुल्य की सीटें हैं और यहां से मुख्य चुनाव में भी जाट नेता ब्रजेन्द्र ओला व हनुमान बेनीवाल जीते थे। चूरू से भाजपा ने जब कद्दावर जाट नेता राहुल कस्वां की टिकट काटी तो जाट भाजपा से नाराज हो गया। कस्वां कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीत गये। जाट नाराजगी भाजपा पर भारी पड़ी और नुकसान चूरू के अलावा सीकर, झुंझनु, नागौर व बाड़मेर सीटों पर भी हुआ। ये सभी सीटें भाजपा हार गई थी। जाटलेंड में भाजपा का लोकसभा चुनाव में सफाया हो गया। जाट समुदाय अब भी भाजपा से नाराज है। जिसका असर उप चुनाव पर भी पड़ना निश्चित है।

झुंझनु व खींवसर सीटें जाट बाहुल्य होने के कारण भाजपा के लिए चिंता का सबब है। झुंझनु सीट पर वर्षों से ओला परिवार का दबदबा रहा है। इस लोकसभा सीट पर भाजपा ने शुभकरण चौधरी को उतारा था, जो हार गये। हार के बाद चौधरी ने अपनों पर ही आरोप लगाये और अंतर्कलह को हार का जिम्मेवार बताया। इससे लगता है कि भाजपा के भीतर की स्थिति वहां ठीक नहीं है। जाट बाहुल्य व ओला परिवार का साथ कांग्रेस के लिए एक बड़ी राहत है। इस सीट के उप चुनाव के लिए भाजपा को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

खींवसर की सीट पर रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल का वर्चस्व रहा है। पिछला चुनाव भी वे ही यहां से जीते थे। तब कांग्रेस का उम्मीदवार भी मैदान में था। लोकसभा चुनाव में रालोपा इंडिया गठबंधन में आ गई और इस सीट से बेनीवाल लड़े व जीत गये। हालांकि वो विधानसभा चुनाव खुद केवल ढाई हजार मतों से ही भाजपा से जीते थे। मगर उस समय कांग्रेस उम्मीदवार भी मैदान में था और उसने भी वोट लिए थे। यदि रालोपा उप चुनाव इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर लड़ती है तो फिर भाजपा के सामने समस्या रहेगी। इन दोनों सीटों को लेकर भाजपा ज्यादा ही मंथन कर रही है क्योंकि उम्मीद भी ज्यादा उसे यहीं से है। कुल मिलाकर उप चुनाव में भाजपा सरकार व संगठन कसौटी पर रहेगा।

– मधु आचार्य ‘ आशावादी