मालवीय के भाजपा में जाने से बांसवाड़ा, उदयपुर में आदिवासी वोटों के कैसे बदलेंगे समीकरण, बड़ा सवाल
आरएनई,बीकानेर।
कांग्रेस की सर्वोच्च बोडी सीडब्ल्यूसी के सदस्य व पूर्व मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने कांग्रेस व विधायक पद छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। इसे बहुत बड़ा राजनीतिक उलटफेर साबित करने की कोशिश हो रही है। मगर बड़ा सवाल ये है कि मालवीय के पाला बदलने से क्या दौसा, उदयपुर व बांसवाड़ा सीटों पर आदिवासी वोटों के समीकरण वाकई बदल जायेंगे। अगर नहीं बदलते हैं तो भाजपा को कैसा फायदा और कांग्रेस को कैसा नुकसान, बस मालवीय को फायदा हो गया। वे केंद्र व राज्य के सत्ताधारी दल से जुड़ गये।
आदिवासी बेल्ट में वोटों व राजनीति का अलग ही समीकरण है। यहां व्यक्तिवादी लोग हैं मगर विचार को उससे ऊपर रखते हैं। इसका प्रमाण पिछले दो विधानसभा चुनावों से मिलता है। इस बेल्ट में आदिवासियों की अपनी पार्टी चुनाव लड़ रही है, जीत भी रही है। जहां जीत नहीं रही वहां अच्छे मत भी ले रही है। उसके सामने भाजपा भी और कांग्रेस भी, कांग्रेस के महेन्द्रजीत सिंह मालवीय भी। कोई बड़ा फर्क तो नहीं पड़ा। मालवीय वोटों को कांग्रेस की तरफ दो चुनावों में तो ला नहीं सके। लोकसभा सीटें भी उनके होते दो बार हारी ही है।
आदिवासियों की पार्टी ने अभी से घोषणा कर दी है कि वे इस बार लोकसभा का चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे। इससे आदिवासी वोटों का अधिक ध्रुवीकरण होगा, फिर राष्ट्रीय दलों को कैसे इनका मत मिलेगा। यदि आदिवासियों की पार्टी भाजपा से समझौता करती तो उनको फायदा होता, फिर उसमें मालवीय की क्या जरूरत। भाजपा को शायद ये उम्मीद है कि मालवीय कांग्रेस के वोटों को भाजपा की तरफ शिफ्ट करा देंगे। ये आसान काम नहीं। क्योंकि उनके साथ उस अंचल का एक भी विधायक नहीं गया। उलटे मुखर होकर उनके विरोध में बोले। कांग्रेस ने समय रहते डेमेज कंट्रोल कर लिया। पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने तीनों आदिवासियों को जयपुर बुलाया और बात की। उनको सक्रिय होना पड़ा क्योंकि मालवीय उनके ही निकटस्थ थे और राजनीतिक अफवाहों ने भी जोर पकड़ लिया था। जब गहलोत व सचिन की टकराहट हुई तब गहलोत की तरफ से मुखरित होकर बोलने वालों में मालवीय भी थे। उन्होंने सचिन व उनके साथ के विधायकों पर खूब आरोप जड़े थे। आदिवासी बेल्ट में अब कांग्रेस अपने साथ के तीनों विधायको को ये समझाने में सफल रही है कि मालवीय के कारण ही वे सेकंडरी थे, अब पहली पंक्ति में रहेंगे। तभी तो अर्जुन बामणिया ने मालवीय को खूब खरी खोटी सुनाई। मालवीय का कितना असर रहता है, ये तो लोकसभा चुनाव में पता चल जायेगा। उससे ही उनका राजनीतिक भविष्य तय होगा।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘