अदब की बात : साहित्यकार जैसे दिखने वालों की बात ही कुछ और
RNE, BIKANER.
उस समय की कांग्रेस सरकार का हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि जब राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से पृथक करके राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का स्वतंत्र गठन किया। उस सरकार का ज्यादा धन्यवाद इस कारण कि उसका मुख्यालय बीकानेर में रखा। शायद उनको इल्म होगा कि थोड़े समय मे ही बीकानेर राजस्थानी साहित्य की राजधानी जैसा बनेगा।
सरकारें भले ही अकादमी अध्यक्ष बनाने में देरी करे, मगर अकादमी को यहां है। अध्यक्ष जल्दी न बनाने के भी कई कारण है। एक अनार, सौ बीमार वाली कहावत लागू होती है। राज व सत्ता भोगी नई सरकार बनते ही जीभ लपलपाते हुए अध्यक्ष के लिए नेताओं के पीछे चक्कर निकालने शुरू कर देते हैं। पिछली सरकार में भी पद, अब इस सरकार में भी चाहिए। तभी तो सरकारें जीभ लपलपाते लोगों की कतार को देखती रहती है, मुस्कुराती रहती है। पट्टा किसी के गले में नहीं डालती।
इस बार बीकानेर को उसका हक मिला। अध्यक्ष भले ही कभी भी बने पर पत्रिका ‘ जागती जोत ‘ का संपादक बना दिया। साहित्य का काम अनवरत रहे, उसके लिए इसका प्रकाशन जरूरी है। तभी तो नये लेखक सामने आयेंगे। संपादक बीकानेर से बनाया, ये ही हक़ मिला है। अब संपादक नमामी शंकर आचार्य की ड्यूटी है कि इस पत्रिका के जरिये नये लेखकों, नये साहित्य को सामने लाये। बीकानेर को हक़ मिला, सरकार को धन्यवाद तो बनता है।
साहित्य अकादमी में पहली हाजरी
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली देश की 24 भाषाओं में गतिशील है। इनमें राजस्थानी के साथ साथ हिंदी व उर्दू भी शामिल है। 24 भाषाओं के कन्वीनर होते हैं जो अपनी अपनी भाषा के देश में फैले रचनाकारों को कार्यक्रमों में बुलाते हैं।
उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी ऐसी भाषाएं है जो कमोबेश हर राज्य में प्रचलित है और इनके लेखक भी हैं। बीकानेर वो शहर है जहां समान रूप से राजस्थानी, उर्दू और हिंदी में लेखन होता है। साहित्य अकादमी हिंदी व राजस्थानी के बीकानेर के कई योग्य लेखकों को आयोजनों में भागीदारी करा चुकी है। मगर उर्दू के लेखकों को शायद कभी अवसर मिला ही नहीं। कमी अकादमी में इस भाषा को देखने वाले कनवींरों की रही तो यहां के उर्दू लेखकों भी रही। उर्दू आयोजनों में अक्सर दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, आजमगढ़, अलीगढ़ आदि के लेखक ही दिखते हैं।
मगर इस बार बीकानेर की तरफ से गोल करने में शायर अमित गोस्वामी सफल रहे। इसका श्रेय जितना अमित को है, उतना ही उर्दू के कन्वीनर चंद्रभान ख्याल को भी है। अकादमी के एक आयोजन में बतौर शायर ख्याल जी ने अमित का चयन कर बीकानेर का खाता तो खोला। दमदार शायर अपनी पहचान कराता ही है तो पारखी भी छिपे नगीने जरूर पहचानता है। अमित को शुभकामनाएं, ख्याल साहब को साधुवाद।
‘ दृष्टा साहित्यकार ‘ नया नामकरण
बीकानेर अदब के मामले में आलिजा शहर है। यहां साहित्य की साधना करने वाले लोगों की कमी नहीं है तो साहित्य के नाम पर दुकान चलाने वालों की भी कमी नहीं है। छोटे छोटे खोमचे लगा उसे बड़ा शो रूम बताने की महारत रखने वाले लोग अन्य शहरों की तरह यहां भी कम नहीं। अब इनको साहित्यकार, शब्दकर्मी, रचनाकार आदि कहा जाये या नहीं, ये बड़ा कठिन सवाल है। हर दूसरे दिन जो किसी साहित्य की खबर में दिख जाये, इस तरह के लोग भी कम नहीं। अब इनके लिए विशेषण क्या हो, उस पर तो प्रतियोगिता करानी पड़ेगी। खेर, ये अपने तरह के अलग ही अदबी लोग हैं, जो दिखते अधिक है। इनके जितना तो न नंदकिशोर आचार्य दिखते हैं, न कभी हरीश भादानी या चन्द्र जी दिखे। न कभी अजीज आजाद दिखे, न मोहम्मद सदीक। इनको दृष्टा रचनाकार कहें, ये सुझाव एक आलोचक ने दिया। आप क्या सहमत हैं इससे ?