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नये जिलों पर सियासत, वेट एंड वॉच की मुद्रा में सरकार, निर्णय अटका

पिछली कांग्रेस सरकार के समय में बने नये संभागों और जिलों पर अंतिम निर्णय की रिपोर्ट तैयार होने के बाद भी राज्य सरकार निर्णय सुनाने से हिचक रही है। उसे इस बात का डर है कि इस मुद्दे पर सियासत होगी और इस सरकार को कटघरे में खड़ा किया जायेगा। आने वाले समय में 6 सीटों पर विधानसभा उप चुनाव भी होने हैं, इसका उस पर असर पड़ सकता है। भाजपा को लोकसभा चुनाव में भी 11 सीटें हारनी पड़ी और 2 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भी शिकस्त मिली। इस वजह से वो अब रिस्क लेने से बच रही है।

पिछली सरकार के समय बने 17 जिलों व 3 संभागों के ओचित्य को परखने के लिए भजनलाल सरकार ने सेवानिवृत्त आईएएस ललित के पंवार की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। इस समिति ने तथ्यपरक रिपोर्ट ग्राउंड पर जाकर तैयार की। सरकार को रिपोर्ट सौंप दी गई। जिस पर मंत्रिमंडल की उप समिति ने भी विचार कर लिया। मगर निर्णय को एकबारगी टाल दिया गया। जबकि सब कुछ तैयार है।

सरकार ने इस मामले में ‘ वेट एंड वॉच ‘ की नीति का अनुसरण किया है। वो निर्णय देने से पहले स्थितियों को पक्ष में करना चाहती है। जाहिर है रिपोर्ट में कुछ जिलों को समाप्त करने का प्रस्ताव है। जो छोटे जिलें है और प्रशासनिक दृष्टि से सही नहीं है, उनको समाप्त करने का प्रस्ताव है। इससे उन जिलों में वाजिब विरोध होना लाजमी है। उस पर काबू पाने की जुगत सरकार कर रही है। इसी वजह से पहले माहौल बनाया जा रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ इसी कारण बोले कि जो छोटे जिले बने हैं, वो लाभकारी नहीं है, इस कारण उनको हटाया जाना चाहिए। दो मंत्री भी इसी भाषा में बोले। ये जनभावना को टटोलने की कोशिश थी।

इस पर रिएक्शन भी तत्काल आया। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली ने कड़ा एतराज जताया और कहा कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष संवैधानिक पद पर नहीं है। उनको इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए। जुली ने कहा कि यदि जिले समाप्त किये गए तो कांग्रेस विरोध में उतरेगी। इसी तरह का बयान पूर्व मंत्री रघु शर्मा ने दिया। उन्होंने कहा कि ये संवैधानिक निर्णय है, जिसे सरकार को बदलने का अधिकार नहीं है। अगर वो ऐसा करेगी तो उसे खमियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। जिन जिलों को समाप्त करने की संभावना है, वहां भी लोग विरोध के लिए उतरने की तैयारी कर रहे हैं। विपक्ष उनके विरोध को हवा भी दे रहा है। इसे भांपकर ही सरकार ने अपने कदम पीछे खिंचे है।

तार्किक रूप से देखा जाए तो सरकार के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं। प्रशासनिक रूप से कई जिले तो वाकई मुश्किल है। वहीं आर्थिक दृष्टि से भी कुछ मुश्किलें है। इस सूरत में उनको समाप्त करना ही विकल्प रह जाता है। सरकार को तथ्यों के आधार पर निर्णय तो करना ही पड़ेगा, भले ही वो संख्त क्यों न हो। सरकार जितनी देरी करेगी निर्णय में, उतनी ही अधिक समस्याएं उसके सामने खड़ी होगी। कुल मिलाकर कुछ जिलों को समाप्त करने पर मुहर तो लग गई, अब निर्णय के सही समय की प्रतीक्षा हो रही है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।