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मोहम्मद सदीक ने जन जन का साहित्य रचा


‘ सामने है ढाळ थारे लारली हवा

बेगा चालो बेटा जीमो

चीकणा कवा

मानखे ने मार

मीठी रसोई बणाई है

जीमो जीमो मांयाँ बेटा

थारे बाप री कमाई है…

बीकानेर ही नहीं राजस्थान के अनेक शहरों में ये गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गीत के रचयिता को याद करते हैं। जब किसी कवि का गीत लोगों को याद हो और जुबां पर चढ़ा रहे, तब ही उस कवि का रचनाकर्म सार्थक होता है। इस लोक चावे गीत के रचयिता, बीकानेर के लाडले राजस्थानी के कवि मोहम्मद सदीक की आज जयंती है। उस कवि की जिसके गीत आज भी लोग गाते हैं, गुनगुनाते हैं।

स्कूलों में बच्चे शनिवार की सभा में जिन कवियों की रचनाओं को सर्वाधिक सुनाते हैं उनमें से एक सदीक साहब है। मायड़ भाषा के इस लाडले कवि के कंठ से जब राजस्थानी गीत के बोल निकलते थे तो लोग मंत्र मुग्ध हो जाते थे। गीत के बोल व उनका कंठ, इनसे निकला गीत सुनने वाले के ह्रदय तक सीधे पहुंचता था और असर करता था। देश में अनेक जगहों पर मंचीय कवि सम्मेलनों में इस कवि ने मायड़ भाषा का प्रतिनिधित्व करके राजस्थानी का मान बढ़ाया। मंच की जान थे सदीक साहब।

कवि हमेशा आम आदमी के पक्ष में खड़ा रहता है, यही काम सदीक साहब ने किया। जन की पक्षधरता तभी सम्भव है जब कवि सत्ता के विपक्ष में खड़ा हो। यही काम सदीक साहब करते थे। उनके लिए जन की आवाज को उठाना जरुरी था, भले ही सत्ता नाराज हो।

तामझाम सा तामझाम सा

साची साची कैवां

जद लागै डाम्भ सा

ये साफ साफ कहने की हिम्मत जनता का कवि सदीक ही कर सकता है। उनके गीत मजदूर, गाड़े वाला, तांगे वाला आदि की जुबान पर चढ़े रहते थे तो बुद्धिजीवी भी कम और सरल शब्दों में कही उनकी बातों के अंदाज के कायल थे। वे बड़ी से बड़ी बात भी बहुत सरल शब्दों में कह जाते थे।

गांधी, मार्क्स सहित अनेक विचारकों का उन पर गहरा असर था। वे अपनी मां के पास अधिक बैठते थे तो उनसे खूब कहावतें सुनी, समझी और सीखी हुई थी। उन्हीं का उपयोग कर वे प्रतीकों में बड़ी राजनीतिक बात भी कह जाते थे। साहित्य में माना जाता है कि प्रतीक ही उसका सौंदर्य है। इसमें सदीक साहब को महारत हासिल थी।

बाबा थारी बकरयां

बिदाम खावे रे

ऐ चरगी म्हारा खेत

सरेआम खावे रे

गांधी दर्शन के दुरुपयोग पर उनका ये शानदार गीत है जो लोग आज भी गुनगुनाते है। ये गीत वही कवि लिख सकता है जिसे गांधी के दर्शन से लगाव हो और एक विचार के साथ जो जीता हो। सदीक साहब इस गीत की गम्भीरता में सबको बहा ले जाते थे।

उन्होंने हिंदी व उर्दू में भी लेखन किया। मगर उनको सबसे प्रिय अपनी मातृभाषा राजस्थानी थी। मायड़ के प्रति उनका प्रेम लाजवाब था। राजस्थानी के वो बड़े पैरोकार थे और इसके मान्यता आंदोलन से भी जुड़े हुए थे।

कवि, आलोचक, नाटककार डॉ अर्जुन देव चारण कहते हैं कि सदीक साहब न केवल अच्छे कवि थे अपितु सरल इंसान भी थे। मायड़ भाषा के प्रति उनका लगाव अप्रतिम था। वे हर बैठक में चाव से गीत सुनाते थे। मंच के माध्यम से उन्होंने राजस्थानी को खूब आगे बढ़ाया।

बीकानेर ही नहीं राजस्थानी के इस लाडले कवि की आज जयंती है, उन्हें शत शत नमन।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।