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चिंतन : रैलियों में भागता, वोटरलिस्ट बनाता, डांट सहता, निराश शिक्षक ऊर्जावान विद्यार्थी तैयार कर पाएगा ?

कक्षा शिक्षण बनाम गैर-शैक्षणिक कार्य : 05 दिन चुनाव, 15 दिन बीएलओ ड्यूटी, 10 रैलियां, वृक्षारोपण, टीकाकरण, सेनेटरी नेपकिन वितरण, मिड-डे मिल, हाउस होल्ड सर्वे, आधार प्रमाणीकरण, जनाधार प्रमाणीकरण, रिपोर्ट अपडेटिंग, डाटा फीडिंग जैसे बीसियों काम करने वाला शिक्षक क्या क्लास में बच्चों को सीखा-पढ़ा पा रहा है। इस खास आलेख में शिक्षा-शिक्षण व्यवस्था और शिक्षक के हालात पर नजर डालने के साथ ही बदलाव के सुझाव भी दे रहे हैं शिक्षाविद डॉ. प्रमोद चमोली। आपके विचार इस व्हाट्सएप नंबर पर आमंत्रित हैं। आप हमारे फेसबुक पेज पर भी यह आलेख पढ़कर इस पर अपने विचार साझा कर सकते हैं।



शिक्षा की धुरी शिक्षक : 

सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था के तीन महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम है। मूल रूप से देखें तो इसमें केन्द्र बिन्दु शिक्षार्थी ही है। इसी को शिक्षित करने के लिए अन्य दो स्तम्भों की आवश्यकता होती है। इसमें तीसरा स्तम्भ पाठ्यक्रम का निर्धारण शासन अथवा शिक्षा के नीति नियंताओं के द्वारा किया जाता है। यानी इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। शिक्षार्थी को केन्द्र मानते हुए बनाए गए पाठ्यक्रम के आधार पर विद्यार्थी की समझ विकसित करते हुए उसे सिखाने का कार्य शिक्षक द्वारा किया जाता है। तमाम तरह की ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद विकसित देश भी शिक्षक का विकल्प नहीं ढूंढ पाए हैं। शिक्षण कार्य मशीनी कार्य नहीं है वरन् एक संवेदनशील कार्य है। एक शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान अपने सम्मुख बैठे विद्यार्थियों के हाव-भाव से यह अनुमान लगा लेता है कि विद्यार्थी विषय के प्रति समझ बना पा रहें हैं अथवा नहीं। आजकल आर्टिफिशियल इन्टेलीजेंन्स का जमाना है पर शिक्षण जैसे संवेदनशिल कार्य का विकल्प एआई भी ढूंढ पाए यह जरा मुश्किल लगता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षक के बिना कक्षा शिक्षण किया जाना संभव नहीं । शिक्षा में नीति नियंताओं द्वारा निर्धारित किये गये सैद्धान्तिक परिवर्तनों को मूर्त रूप देने का समस्त कार्य शिक्षक के कंधों पर होता है। अन्य शिक्षा नीतियों की तरह नई शिक्षा नीति के परिचय में शिक्षक के महत्व को उल्लेखित करते हुए कहा गया है कि ‘‘शिक्षा व्यवस्था में किये जा रहे बुनियादी बदलावों के केन्द्र में अवश्य ही शिक्षक होना चाहिए।’’इस तरह हम शिक्षक को शिक्षा की धुरी कहें तो गलत नहीं होगा।

शिक्षक का मूल कार्य क्लास में पढ़ाना :

इसमें कोई दो-राय नहीं हो सकती है कि शिक्षक का मूल कार्य शिक्षार्थियों को शिक्षा देना है। आज के समय में शिक्षा देने के मायने कक्षा में जाकर विद्यार्थियोें को वांछित सहयोग देकर उनके  विषय वस्तु के प्रति ज्ञान के निर्माण को पुख्ता करते हुए स्थायी ज्ञान निर्माण करना है। कक्षा शिक्षण को आज की शिक्षा में कतई गौण करके नहीं देखा जा सकता है। सीधे शब्दों में कहें तो शिक्षा का सम्पूर्ण निकष कक्षा शिक्षण ही है। यहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या हम शिक्षकों को केवल ऐसा करने दे रहें हैं? क्या शिक्षक गैर-शैक्षणिक कार्य भी कर रहें हैं? यदि हां तो इसका क्या प्रभाव शिक्षा पर पड़ रहा है। इसी बात की पड़ताल इस आलेख में करने का प्रयास है।

220 दिन क्लास जरूरी, क्या लग पाती है :

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) (आरटीई) के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं के लिए 200 दिनों व उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए 220 दिनों का शिक्षण अनिवार्य है। शासन द्वारा अपने विद्यालयी पंचांगों में इसका प्रावधान भी किया जाता है। साथ इस अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि ‘‘किसी भी शिक्षक को दशकीय जनसंख्या जनगणना, आपदा राहत कर्तव्यों या स्थानीय प्राधिकरण या राज्य विधानमंडल या संसद के चुनावों से संबंधित कर्तव्यों के अलावा किसी भी गैर-शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए तैनात नहीं किया जाएगा।’’ इसके अतिरिक्त माननीय न्यायलयों द्वारा शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य नहीं करवाये जाने हेतु समय-समय पर निर्देश प्रदान किये हैं। इन सभी के बावजूद शिक्षकों को उक्त कार्य भी करने ही पड़ते हैं।

चुनावी ड्यूटी ठीक, पर ये काम तो जरूरी नहीं : 

चुनावों की बात करें तो इनसे संबंधित कार्यों यानी चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न करवाने के अलावा अन्य किसी कार्यों में शिक्षकों को नहीं लगाया जाना चाहिए। यह सही है कि शासन के पास इतने मानवीय संसाधन अन्य विभागों में उपलब्ध नहीं होने के कारण चुनाव प्रक्रिया संबंधी कार्य शिक्षकों के बगैर करवाए जाने संभव नहीं हो सकते। लेकिन चुनाव के दिवस पर चुनावों के नाम पर इससे जुड़े अन्य यथा बीएलओ डयूटी, स्वीप कार्यक्रमों व अन्य चुनावी कार्यों में बहुत अधिक संख्या में शिक्षकों को तैनात किया जाता है।

इन कामों के लिए दूसरे विभाग हैं, फिर शिक्षक ही क्यों !

इसके अतिरिक्त भी शिक्षकों को अन्य विभागों के कार्य भी करने पड़ते है। जैसे वन विभाग के वृक्षारोपण संबंधी कार्य, स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न टीकाकरण कार्य व विद्यार्थियों का स्वास्थ्य परीक्षण, महिला बाल विकास विभाग के सेनेटरी नेपकिन वितरण अन्य विभागों की जनचेतना संबंधी रैलियों का आयोजन करना। विगत वर्षों से विद्यालयों के विद्यार्थियों की संख्या का उपयोग करते हुए विश्व रिकार्ड बनाने हेतु प्रवृत्ति की तैयारी करवाना इत्यादि। इसके अतिरिक्त नशामुक्ति, सड़क सुरक्षा, सेल्फ डिफेंस इत्यादि कार्य भी राजकीय विद्यालयों के शिक्षकों को करने होते हैं। इसकी पराकाष्ठा तो तब हो जाती है कि इस तरह के आयोजनों के बाद उनके आंकड़ों की फीडिंग भी शिक्षकों को करनी पड़ती है। उक्त समस्त कार्य विद्यालय समय के दौरान किये जाने से कक्षा शिक्षण का समय कम हो जाना स्वाभाविक ही है।

स्कूल में भी पढ़ाने के अलावा इतने काम!

अन्य विभागों के कार्य के अतिरिक्त शिक्षकों को मिड डे मील,हाउस होल्ड सर्वे, आधार प्रमाणीकरण, जनाधार प्रमाणीकरण, विभिन्न पोर्टलों को अपडेट करने संबंधी कार्य, विभिन्न छात्रवृतियों संबंधी कार्य, परीक्षा परिणाम तैयार करना, उन्हें पोर्टल पर चढ़ाना, विद्यार्थियों और शिक्षकों की हाजरी ऑनलाईन करना इत्यादि कार्य भी शिक्षकों को करने पड़ते हैं। शिक्षकों द्वारा विद्यालय समय में कक्षा शिक्षण के अतिरिक्त किये जाने वाले कार्यों की ये फेरहिस्त और भी लंबी हो सकती है।

साल में 120 घंटा तो महज  रैलियां निकाल रहा शिक्षक  :

बहरहाल मुद्दा यह है कि क्या इन समस्त कार्यों को करते हुए शिक्षक अपने कक्षा शिक्षण को निर्धारित समय दे पाएगा अथवा नहीं? यदि विद्यालय एकल शिक्षक या दो शिक्षक ही हैं तो पहले से ही उनका कक्षा शिक्षण समय पूर्ण नहीं होता है। केवल चुनाव प्रक्रिया संचालन की बात करें तो पांच वर्षों में होने वाले चार चुनाव लोकसभा, विधानसभा, पंचायत और नगरीय निकायों में एक शिक्षक को दो प्रशिक्षण और चुनाव करवाने तक कुल पांच दिनों तक विद्यालय से दूर रहना पड़ता है। यदि शिक्षकों से बीएलओ या अन्य चुनाव संबंधी कार्य नहीं लिये जाएं  तो इसे नग्णय माना जा सकता है लेकिन बीएलओ के तहत कार्य करने वाले शिक्षक मतदाता सूची अपडेशन के कार्य के लिए अनुमानतः वर्ष में कम से कम 15 दिवस आधे दिवस तक विद्यालय में कार्य कर सकता है। शेष आधा दिवस उसे फील्ड में रह कर इस कार्य को करने में लगाना पड़ता है।

इसी प्रकार अन्य विभागों के कार्य जैसे वृक्षारोपण महाअभियान के तहत वर्ष में अनुमानतः पांच से सात घंटे खर्च , स्वास्थ्य परीक्षण जैसे कार्यो के लिए इसी प्रकार वर्ष में कम से कम दो घंटे, विभिन्न विभागों से संबंधित जागरूकता की यदि 10 रैलियां वर्ष भर में करवाई जाए और प्रत्येक रैली का समय एक घंटा हो तक भी अत्यधिक शिक्षण समय इसमें खरक हो जाता है। उदाहरण के तौर पर एक वर्ष में विद्यालय में 10 जागरूकता रैली निकाली जाएं और प्रत्येक रैली में एक घंटा लगे तो कक्षा 1 से 5 संचालित विद्यालयों में 50 घंटे, कक्षा 1 से 8 संचालित विद्यालयों में 80 घंटे एवं कक्षा 1 से 12 संचालित विद्यालयों में 120 कक्षा शिक्षण घंटों का नुकसान होता है। अन्य जागरूकता कार्यक्रमों के तहत विभिन्न प्रकार की परीक्षा, प्रतियोगिता इत्यादि करवाने में वर्ष में कम से कम दो से तीन घंटे खर्च हो सकते हैं। इन घंटो को यदि विद्यालय में संचालित कक्षाओं की संख्या से गुणा करे तों यह समय बहुत अधिक हो जाता है।

स्कूल में भी पढ़ाने के समय में दूध, सेनेटरी पैड बांट रहा : 

उक्त बाह्य कार्यों के अतिरिक्त विद्यालय में चलने वाले मिड डे मील, दुग्ध वितरण, पाठ्यपुस्तक वितरण, शाला गणवेश वितरण, साईकिल, लैपटॉप वितरण, प्रवेश संबंधी लिपीकीय कार्य, पोर्टल अपडेशन, परीक्षाओं के आयोजन व उच्च स्तर से चाही जाने वाली सूचनाओं को तैयार करने  इत्यादि से भी कक्षा शिक्षण के समय में कमी आती है। वर्तमान में कक्षा 1 से 5 तक के विद्यार्थियों के लर्निंग लॉस को पूर्ण करने हेतु चलाई जा रही योजना के तहत किये जाने वाले ऑनलाईन कार्य इत्यादि। यदि हम मिड डे मील  की बात करें तो यदि विद्यालय में 10 विद्यार्थी हैं तो एक प्रभारी शिक्षक को रोजना औसत कम से कम एक घंटा इन कार्यों की व्यवस्था में बिताना पडता है। इसी प्रकार यदि विभिन्न पोर्टलो के अपडेट की बात करें तों प्रत्येक विद्यालय में कम से कम एक शिक्षक को रोजाना कम से कम 30 मिनिट का समय इस कार्य में देना ही पड़ता होगा।

कक्षा शिक्षण हेतु शिक्षकों को मिलने वाला समय :

यहाँ पर उक्त अनुमान के पश्चात यह जरूरी हो जाता है कि शिक्षकों द्वारा कक्षा शिक्षण संबंधी कार्य कितना होता है। हम कह सकते हैं कि कक्षा शिक्षण का समय  वह समय माना जा सकता है जिसे शिक्षक कक्षा में छात्रों के साथ शिक्षण और इससे जुड़ी हुई गतिविधियों में व्‍यतीत करता है या हम इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि स्कूल के कार्य दिवसों की संख्या, और प्रत्येक कार्य दिवस में कक्षा में शिक्षक द्वारा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में बिताए गए घंटों की संख्या।

बदले हालात में विद्यार्थी को क्लास में अधिक समय चाहिए : 

शिक्षा की बदली हुई परिस्थितियों से शिक्षक की भूमिका में भी बड़ा बदलाव हुआ। वर्तमान समय में व्यवहारवाद से रचनावाद की ओर शिफ्ट होते शिक्षणशास्त्र पर आधारित पाठ्यक्रमों में यह अपेक्षा की गई है कि ज्ञान कोई बनी बनाई वस्तु नहीं है। वरन् विद्यार्थी अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करता है। इसी के तहत यह भी माना गया है कि शिक्षक ज्ञान का अधिष्ठाता नहीं होकर सुगमकर्त्ता है। इससे शिक्षक की भूमिका और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यानी कक्षा शिक्षण में वह विद्यार्थियों को अपने ज्ञान के निर्माण करने के ऐसे अवसर और सुविधाएं प्रदान करें जिससे विद्यार्थी अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं कर सके। इसके लिए आवश्यक है कि वह अपनी कक्षा को अधिक समय प्रदान करें।

गुरुजी और पढ़ाई दोनों पर हो रहा ये असर : 

  • शिक्षकों के कक्षा शिक्षण के समय में से ही गैर-शैक्षणिक कार्यों का समय निकलता है। अतः शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को कक्षा शिक्षण के अवधि में कटौती होना स्वाभाविक ही है। कक्षा शिक्षण के समय में कमी हो जाने के कारण, शिक्षक निर्धारित समय में अपना पाठ्क्रम पूर्ण नहीं कर पाने के कारण निराशा और हताशा अनुभव करते हैं।
  • शेष रहे समय में पाठ्यक्रम तेजी से पूर्ण करने के कारण विद्यार्थी विषय वस्तु बाबत अपनी समझ विकसित नहीं कर पाते। जिससे वाछिंत लर्निंग आउटकम की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
  • विद्यार्थियों की कक्षाओं के बार-बार बाधित होने से उनके कक्षा शिक्षण में चल रही एकाग्रता प्रभावित होती है। जिससे वे सीखने की प्रक्रिया से सामंजस्य नहीं बैठा पाते।
  • इसके अतिरिक्त शिक्षकों से करवाये जाने वाले अन्य विभागों के गैर-शैक्षणिक कार्यों के दबाब व उनके पूर्ण नहीं होने की स्थिति में प्रशासनिक अधिकारियों की डांट-फटकार के चलते शिक्षक एक अजीब कुंठा से घिर जाते हैं। इस कुंठा प्रतिक्रिया के चलते वे अपने मूल कार्य से मोहभंग की स्थिति को प्राप्त हो जाते हैं।
  • विशेष तौर पर बीएलओ डयूटी के कारण शिक्षकों को छुट्टी के दिन मतदान केन्द्र पर तैनात रहना पड़ता है तथा स्थानीय नेतृत्व का अनावश्यक दबाब उस पर बना रहता है। इस कारण शिक्षक अजीब सा नैराष्य अनुभव करते हैं।
  • समस्त प्रकार के गैर-शैक्षणिक कार्यों की थकान के चलते शिक्षक घर पर कक्षा शिक्षण हेतु उचित तैयारी नहीं कर पाते हैं। इस कारण कक्षा शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होना स्वाभाविक ही है।
  • शिक्षा एक पूर्णकालिक कार्य है। इसे शासन और शिक्षक दोनो को गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है। यदि गैर-शैक्षणिक कार्यों से कक्षा शिक्षण के समय में होने वाली हानि का वित्तीय आकलन कर उसका गुणा-भाग लगाया जाए तो यह अरबों रूपये का हो सकता है। शिक्षा पर होने वाला खर्च दरअस्ल कक्षा शिक्षण में होने वाला खर्च ही है। अतः गम्भीरता से इस विषय पर विचार करना आवश्यक है।

ऐसे रोक सकते हैं शिक्षा का नुकसान :

  • मतदाता सूची अपडेशन, विभिन्न सर्वे कार्य एवं जनगणना जैसे सर्वे कार्य के लिए ग्राम में तैनात अन्य कर्मचारियों की सेवाएं ली जा सकती हैं। यदि उनकी उपलब्धता नहीं है तो स्थानीय बेरोजगार और योग्य युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें वर्ष में न्यूनतम समय रोजगार दिया जा सकता है।
  • अन्य विभागों के कार्य यथा-स्वास्थ्य परीक्षण वृक्षारोपण इत्यादि कार्य हेतु उस विभाग के संबंधित विभाग के कार्मिकों द्वारा या ग्राम पंचायत के माध्यम से करवाएं जाएं।
  • यदि किसी प्रकार की जनचेतना रैली अत्यन्त आवश्यक है तो उसे नो बैग डे के दिन ही आयोजित किये जाने के स्थायी निर्देश दिये जा सकते हैं।
  • विद्यालयों में ऑनलाईन पोर्टल में फीडिंग संबंधी कार्यो के लिए सूचना सहायकों की नियुक्ति की जा सकती है।
  • मिड डे मील जैसे कार्याें का लेखा-जोखा एवं लिपिकीय कार्य हेतु प्रत्येक विद्यालय में लिपिकों की तैनाती इत्यादि उपाय किये जाकर शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जा सकता है।


डा.प्रमोद चमोली के बारे में:

शिक्षण में नवाचार के कारण राजस्थान में अपनी खास पहचान रखने वाले डा.प्रमोद चमोली राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग की प्राथमिक कक्षाओं में सतत शिक्षा कार्यक्रम के लिये स्तर ‘ए’ के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों के लेखक समूह के सदस्य रहे हैं। विज्ञान, पत्रिका एवं जनसंचार में डिप्लोमा कर चुके डा.चमोली ने हिन्दी साहित्य व शिक्षा में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर चुके हैं।
डॉ. चमोली का बड़ा साहित्यिक योगदान भी है। ‘सेल्फियाएं हुए हैं सब’ व्यंग्य संग्रह और ‘चेतु की चेतना’ बालकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। डायरी विधा पर “कुछ पढ़ते, कुछ लिखते” पुस्तक आ चुकी है। जवाहर कला केन्द्र की लघु नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम रहे हैं। बीकानेर नगर विकास न्यास के मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान कई पुरस्कार-सम्मान उन्हें मिले हैं। rudranewsexpress.in के आग्रह पर सप्ताह में एक दिन शिक्षा और शिक्षकों पर केंद्रित व्यावहारिक, अनुसंधानपरक और तथ्यात्मक आलेख लिखने की जिम्मेदारी उठाई है।


राधास्वामी सत्संग भवन के सामने, गली नं.-2, अम्बेडकर कॉलौनी, पुरानी शिवबाड़ी रोड, बीकानेर 334003, मो. 9414031050