बॉस के भौंकने वाले “डॉग-बाइट” से हैरान, ईमानदार कर्मचारी की व्यथा!
- और कुत्ते ने काट लिया : डॉ. मंगत बादल
पता नहीं बाबू राम लाल को यह विश्वास कैसे हो गया था कि भौंकने वाला कुत्ता काटता नहीं। मैं तो इसे बाबू राम लाल की बेवकूफी ही कहूँगा जो उसने अंग्रेजी मुहावरे के हिन्दी अनुवाद पर विश्वास कर लिया। यहाँ मेरा यह मतलब नहीं कि हमें अंग्रेजी मुहावरे के हिन्दी अनुवाद पर विश्वास नहीं करना चाहिए बल्कि यह कि कम से कम उसे देश काल से सापेक्ष करके परखलें तो उसे बाबू राम लाल की भाँति दुःख नहीं उठाना पड़ता। राम लाल के इसी दृढ़ विश्वास ने ही उस के साथ विश्वासघात किया। दरअसल बात यह है कि उसे भौंकने वाले कुत्ते ने ही काट लिया। फलस्वरूप बाबू राम लाल को नौकरी से निलम्बित होना पड़ा और आज वह इस कोशिश में है कि किसी प्रकार बहाल हो जाए।
अब आपके मन में प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि कुत्ता किसका था ? उसने कब और क्यों काटा? क्या कुत्ता पागल था? क्या काटने से पहले कुत्ता, बाबू राम लाल को सचेत करने के लिए भौंका था अथवा चुपचाप अपने दांत गड़ा दिए ? उसके बाद राम लाल का क्या हाल हुआ? आदि। इन प्रश्नों के उत्तर देने की भी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि जिन लोगों के मन में कोई बात बैठ जाती है, बैठ जाती है। वे फिर बदलने के लिए राजी नहीं होते, चाहे टूट ही क्यों न जायें।
जैसे बाबू राम लाल का ही यह विश्वास कि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं, उसे कष्ट पहुँचा रहा है। बाबू राम लाल ‘सार्वजनिक निर्माण विभाग में कार्य करता था। उसके अधिशाषी अभियन्ता मि. वर्मा भीरू प्रकृति के व्यक्ति थे। दफ्तर में अपने मातहतों से काम लेने के लिए भी बड़ी सहजता से पेश आते थे। किन्तु उन में भी आधुनिक अधिकारियों की भाँति एक कमजोरी थी, और वह थी कुत्ते पालने की। वे विभिन्न किस्म के कुत्ते पाला करते थे। कुत्तों के इसी प्रेम ने उन्हें ऐसी जगह पटक दिया जहाँ उनकी ऊपर की कमाई के सभी रास्ते बन्द हो गए और सुना है उनके कुत्ते पालने का शौक भी कुछ घट गया है। कुत्तों की वफादारी या चौकसी से मुझे कोई शिकवा या शिकायत नहीं है और न ही मैं स्वयं को इस लायक समझता कि कुत्तों की आदतों में मीन मेख निकालूं। मैं तो दरअसल यही बताना चाहता हूँ कि कुत्तों के जिस प्रेम ने वर्मा साहब को निकृष्ट स्थान पर पटका वहीं कुत्तों से घृणा करने वाले की भी कम दुर्गति नहीं हो रही। मतलब यह कि बाबू राम लाल कुत्तों से घृणा तो करता ही था इसके साथ यह भी सोचता था कि कुत्ते भौंकते अधिक हैं और काटते कम।
वर्मा साहब दफ्तर में भी कुत्तों के साथ सलीके का व्यवहार करते थे। कई बार तो वे अपने इस कुत्ता प्रेम में इतने तन्मय हो जाते थे कि उचितानुचित का ध्यान भी नहीं रखते थे। इस बात की बाबू राम लाल को विशेष चिढ़ थी यह बात ठीक है कि आपको कुत्तों से प्रेम है किन्तु इसका यह मतलब तो बिल्कुल नहीं कि आप एक ईमानदार व्यक्ति को उनके सामने ठोकर मार दें। वैसे मैं तो ईमानदार व्यक्तियों की यह कमजोरी मानता हूँ कि कुत्तों के सामने पहुँचकर वे असाधारण रूप से अकड़ जाते हैं उनके अहम् और स्वाभिमान का पारा कुछ और ऊँचा चढ़ जाता है किन्तु दूसरी ओर मजे की बात यह है कि कुत्ते ऐसी घटिया बातों की ओर ध्यान ही नहीं देते। उनकी अपनी दुनिया होती है जिसमें वे खोए रहते हैं।
वर्मा साहब मस्त जीव थे। किसी भी ठेकेदार या अधिकारी ने पार्टी या डिनर में बुलाया, ठीक वक्त पर पहुँच जाते थे लेकिन इस समय भी वे अपने कुत्तों को साथ ले जाना नहीं भूलते थे। बाबू राम लाल इससे मन ही मन कुढ़ता था। उसने वर्मा साहब के समक्ष अपनी ईमानदारी व परिश्रम का रौब गालिब करना चाहा किन्तु नाकामयाब रहा। आखिर वह वर्मा साहब के विरुद्ध प्रमाण जुटाने लगा कि वे (वर्मा साहब) दफ्तर में आदमियों से ज्यादा कुत्तों को अहमियत देते हैं। उसने उनकी शिकायत ऊपर कर दी परिणामस्वरूप वर्मा साहब का तबादला हो गया। वर्मा साहब को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि भौंकने वाले कुत्ते आत्मरक्षा अधिक करते हैं, मालिक का बचाव कम। इसलिए अपने सारे कुत्तों को अपने स्थान पर आने वाले अधिकारी को सौंप कर चले गए।
नए अधिकारी सिंह साहब की विशेषता है कि वे कुत्तों को प्रेम तो करते हैं किन्तु उन्हें मुँह नहीं लगाते और यह भी जरूरी नहीं समझते कि उन्हें पार्टी, लंच या सार्वजनिक स्थानों पर जाते बार साथ ही रखा जाए। सुविधा या शान-शौकत के अनुसार उन्हें साथ लिया जा सकता है क्योंकि वे जानते हैं कि कुत्तों का महत्त्व भी उनके होने से ही बढ़ता है। इसलिए आते ही उन्होंने सर्वप्रथम दफ्तर का मुआयना किया और कुत्ता विरोधी लोगों का पता लगाने की योजना बनाई तो पता चला कि बाबू राम लाल ऐसा व्यक्ति है जो कुत्तों से घृणा करता है। उन्होंने बाबू राम लाल के पीछे अपने कुत्ते छोड़ दिए ताकि वे उसकी गंध पहचानते रहें।
एक दिन एक ठेकेदार दफ्तर में आया। उसने सरकारी बिल्डिंग का ठेका ले रखा था। वह अपना बिल पास करवा कर पेमेंट लेना चाहता था। बिल बन चुका था किन्तु बाबू राम लाल का कहना था कि वह इस बिल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता, क्योंकि अधिकारी महोदय द्वारा अभी बिल्डिंग का निरीक्षण नहीं किया गया है। बाबू राम लाल ठेकेदार के साथ बहस करने लगा। तभी सिंह साहब के कुत्ते उसे भौंकने लगे। बाबू राम लाल उन्हें दुत्कारता-फटकारता रहा। शोर सुनकर सिंह साहब अपने दफ्तर से बाहर आए और उन्होंने कुत्तों को शांत किया तथा ठेकेदार से बोले कि वे दो दिन बाद बिल्डिंग का निरीक्षण करके ही बिल पास करेंगे। बाबू राम लाल यह जानकर खुश था कि भौंकने वाले कुत्ते काट नहीं सकते केवल भौंक सकते हैं। लेकिन दो दिन बाद लोगों ने देखा कि बाबू राम लाल को हथकड़ी पहनाए पुलिस एण्टीकरप्शन वालों की जीप में बिठाए ले जा रही है। पूछने पर पता चला कि बाबू राम लाल सौ रूपए की नकद रिश्वत लेते पकड़ा गया। आपके ध्यानार्थ सूचित कर दूँ कि यह किसी कुत्ते की ही बदमाशी थी जो उसकी फाइल में सौ रूपए का नोट दबा दिया और बाबू राम लाल का यह भ्रम भी टूट गया कि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं, यह कहावत गलत भी हो सकती है।
अब बाबू राम लाल किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में हैं। उसे विभिन्न लोग विविध सलाहें दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि उस कुत्ते को पकड़ कर मार दो। दूसरा कहता है कि जहर, जहर को मारता है इसलिए काटे गए स्थान पर लाल मिर्च बाँधे। चाहे कुछ भी हो, मेरा तो यही विचार है कि बाबू राम लाल की गलत फहमी ने ही उसे मरवाया। चाहे वह पुनः निःरोग (बहाल) हो जाये किन्तु कुछ समय तो लगेगा ही। इस बीच उसे सरकारी अस्पताल से लम्बे-लम्बे इंजेक्शन भी लगवाने पड़ेंगे, जबकि बात सिर्फ इतनी ही थी कि बाबू राम लाल को यह गलत फहमी थी कि भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं।
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