गहलोत की सक्रियता कांग्रेस में बदलेगी समीकरण, देरी कहीं रणनीति तो नहीं थी
RNE NETWORK
लगभग 3 महीनें की चुप्पी के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक्टिव मोड पर आ गए हैं। बीमारी के कारण वे 3 महीनें तक तो आराम ही कर रहे थे। केवल ट्वीट के जरिये सरकार पर हमलावर थे। वैसे तो वे लोकसभा चुनाव के बाद से ही चुप थे। उनके पुत्र वैभव गहलोत जलौर से हार गये थे। जबकि उन्होंने इस सीट पर पूरी ताकत अपने सहयोगियों के साथ लगाई थी। सीट भी बदली पर सकारात्मक चुनाव परिणाम नहीं मिला।
उसके बाद उन्हें स्लिप डिस की समस्या हो गई तो बिस्तर पर आराम करना पड़ा। उनके कई मित्र नेता उनसे लगातार मिलते रहे। मगर गहलोत राजनीतिक रूप से चुप हों ये तो संभव ही नहीं। वे राज्य की व कांग्रेस की राजनीति पर गहरी नजर रखे हुए थे। साथ ही नेताओं को परख भी रहे थे। कांग्रेस में बदल रहे पावर सेंटर का भी भान उनको था और वे बिना बोले सब देख रहे थे। जो लोग गहलोत की राजनीति को देखते आये हैं और समझते रहे हैं उनको पता है कि उनकी चुप्पी गहरे अर्थ लिए हुए होती है। वे राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करते रहते हैं और उचित समय पर बोलते हैं। बड़बोले बनकर कभी उनको बयान देते हुए नहीं देखा गया है।
उनकी चुप्पी के समय मे पार्टी के भीतर भी कई बदलाव हुए। ये बदलाव व्यक्तिगत स्तर के तो थे ही, साथ ही संगठनात्मक भी थे। जिन पर तत्काल कुछ कहा जाता तो असर नहीं होता, प्रतिक्रिया होती। गहलोत समय की प्रतीक्षा में थे। जब जम्मू कश्मीर व हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो वे मैदान में उतरे। 3 महीनें बाद आलाकमान से मिलने दिल्ली गये। दिल्ली इतनी अवधि के बाद उनका जाना शायद ही पहले कभी हुआ हो। इससे ये माना जा सकता है कि उनकी चुप्पी भी एक राजनीतिक रणनीति ही थी। दिल्ली जाकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। अन्य नेताओं से मिले और दूसरे ही दिन पार्टी ने उनको बड़ी जिम्मेवारी दे दी। हरियाणा चुनाव के लिए उनको सीनियर आब्जर्वर बना दिया। केंद्र की राजनीति में फिर से अपनी सक्रियता दिखाने के बाद उन्होंने राज्य की राजनीति की तरफ रुख किया। क्योंकि असली आधार तो राज्य ही है।
सचिन पायलट के साथी नेताओं ने राहुल पर बिगड़े बोल बोलने वाले मंत्री व राज्य से राज्यसभा के लिए निर्वाचित बिट्टू के खिलाफ प्रदर्शन कर सुर्खिया बटोरी। पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा ने जयपुर में इस मुद्दे पर धरना लगाया और अपने अंदाज में फटकारे लगाकर सुर्खिया बटोरी। अब गहलोत एक्शन मोड पर आये। उन्होंने भी 28 सितंबर को जयपुर में धरने की घोषणा कर सरकार व पार्टी के नेताओं को चकित कर दिया है। गांधी वाटिका म्यूजियम भाजपा सरकार ने खोला नहीं है और इसे ही गहलोत ने मुद्दा बनाया है।
गांधीवादी छवि के अनुरूप उन्होंने सुबह 11 बजे से दोपहर 4 बजे तक वाटिका के गेट 5 पर धरने की घोषणा की है। अब इससे पता चल जायेगा कि कांग्रेस के भीतर अभी क्या स्थिति है, कौन कहाँ है। बस, उसके बाद गहलोत की राज्य की राजनीति शुरू होती लगती है। साफ दिख रहा है कि चुप्पी रणनीति थी, अब गहलोत एक्शन में है। इससे एक बार फिर राज्य में कांग्रेस के समीकरण बदलेंगे।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।