अहिंसा के संस्कार वाले देश की स्कूलों में चल रहे हथियारों की वजह क्या ?
- चिंता : हिंसक क्यों हो रहे स्कूली स्टूडेंट!
- अहिंसा के संस्कार वाले देश की स्कूलों में चल रहे हथियारों की वजह क्या?
डॉ. प्रमोद कुमार चमोली
राजस्थान के उदयपुर में स्थित एक स्कूल में दो विद्यार्थियों के आपसी विवाद में एक ने दूसरे की चाकू मारकर हत्या कर दी। श्रीगंगानगर के स्कूल में एक विद्यार्थी अपने दादा की लाईसेंसी रिवॉल्वर लेकर पहुंच गया। कोटा में नौवीं के स्टूडेंट ने आठवीं के बच्चे पर नुकीले हथियार से हमला कर दिया। घायल स्टूडेंट को हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। गतवर्ष झालावाड़ में मोटर साईकिल से घर आ रहे शिक्षक के ब्लाईंड मर्डर केस की गुत्थी सुलझने पर ज्ञात हुआ कि उनकी हत्या उनके उन विद्यार्थियों ने की है जिन्हें गलती करने पर सबके सामने डांटा गया था।
ऐसा नहीं है कि हैरान वाली ये घटनाएँ यह केवल राजस्थान में ही हो रही है वरन गुजरात, हरियाणा, दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में स्कूलों में विद्यार्थियों द्वारा किसी छात्र या शिक्षक की हत्या किए जाने या हमला करने की घटनाओं से ज्ञात होता है कि स्कूली विद्यार्थियों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ी है।
पूर्व में विद्यार्थियों द्वारा इस प्रकार के आक्रमक और हिंसक व्यवहार की घटनाएं पश्चिम के देशों में दिखाई पड़ती थी। भारत में इस तरह के हिंसक व्यवहार पूर्व में कम ही संज्ञान में आते थे।
जहां चींटी को बचाते है, वहां हिंसक व्यवहार क्यों :
हमारे देश में सनातन, जैन व बौद्ध धर्म के माध्यम से संस्कृतियों ने अपना विकास किया है। जो एक चींटी को अपने पैर के नीचे आने से बचाती है। जहां गांधी आधुनिककाल में गांधी जैसे महापुरूष ने जीवन में अहिंसा के महत्व को समझाया। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत अहिंसा के जीवन मूल्य को मानने वाला देश है। ऐसे देश में विद्यार्थियों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति सोचनीय है, चिंताजनक हैं।
किशोरावस्था तूफानों और तनाव का काल है-
शिक्षक बनने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने शिक्षा मनोविज्ञान के अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक ग्रैनविले स्टेनली हॉल द्वारा 1904 में दी गई ‘‘किशोरावस्था तूफानों और तनाव का काल’’ को अवश्य ही पढ़ा होगा।
दरअस्ल इस उक्ति को कहने के पीछे हॉल द्वारा तर्क दिये गये थे कि बचपन से युवावस्थ के संधिकाल किशोरावस्था जो कि लगभग 14 से 18 वर्ष के मध्य होती है में किशोरावस्था में शारीरिक और भावनात्मक बदलाव तेजी से होते हैं, जिससे यह एक उथल-पुथल भरी अवधि होती है. जिनके परिणामस्वरूप निज के प्रति संवेदनशीलता तेजी से बढ़ती है लेकिन उस अनुपात में आत्मनियंत्रण का विकास नहीं हो पाता है। इस कारण उनमें थोड़ा विद्रोह व विरोध पनपता है।
कुछ मनोवैज्ञानिक हाल के इस सिद्धान्त को रूढिवादी कहते हैं क्योंकि ऐसा संभवतः सभी किशोरो में नहीं होता। साथ ही यह भी देखा गया है कि परम्परागत समाजों में रहने वाली संस्कृतियों में ऐसा अन्य संस्कृतियों की तुलना में कम होता है। बहरहाल जो भी हो इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती है। इस काल में होने वाले भावनात्मक परिवर्तनों के कारण हल्का-फुल्का तनाव तो प्रत्येक किशोर में होता ही है।
समस्या यह है कि भारत में अभिभावकों और शिक्षकों को किशोरो की समस्याओं को समझने के लिए कोई अधिकारिक काउन्सलिंग का प्रावधान नहीं है।
क्या कहते है मनोवैज्ञानिक ?
दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. नवीन कुमार के वक्तव्य को उल्लेखित करते हुए लेख है कि ‘‘ स्कूली बच्चों द्वारा हिंसा कुंठा और दबाव का नतीजा है। स्कूली बच्चों की प्रवृत्ति में आए बदलाव के पीछे तीन कारण हैं :
- परिवारों का बच्चों से संवाद कम हो गया है, माता पिता बच्चों को अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं जिस कारण बच्चों में नैतिक मूल्य का निर्माण नहीं हो पा रहा है। इससे बच्चों में सहयोग व सद्भाव वाली भावना घट रही है।
- दूसरा कारण है शिक्षा प्रणाली। जब तक स्कूली बच्चों की शिक्षण प्रणाली सही नहीं होगी, तब तक वे मानसिक दबाव और तनाव में रहेंगे ही। वे कब क्या कर बैठेंगे, कोई नहीं जानता।
- तीसरी बात कि स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली बातें सैद्धांतिक होती हैं, जो बच्चों की रुचि को संतुष्ट नहीं कर पाती हैं। बच्चों को स्कूलों में नियंत्रित वातारण में एक स्थान पर बैठा दिया जाता है, जिस कारण उन्हें शिक्षकों से वन टू वन बातचीत करने में दिक्कत होती है।
महानगरीय संस्कृति में तो और भी बुरा हाल है। बच्चे के घर पर आने के बाद उसके मनोभाव व समस्याओं को जानने वाला कोई नहीं रहता। ऐसे में बच्चों को जो ठीक लगता है, वे करते हैं।
विद्यार्थियों में बढ़ती हिसंक प्रवृत्ति के संभावित कारण :
- विद्यार्थियों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति के कारणों की खोज करें तो पाते हैं निम्नांकित संभावित कारण हो सकते हैं-
- भारत में आर्थिक कारणों के चलते बढ़ता शहरीकरण। जिसमें एकल परिवार व्यवस्था में माता-पिता के नौकरी या व्यवसाय करने के कारण घर पर बच्चों में बढ़ता एकाकीपन नौकरी के दबाब के कारण माता-पिता की बच्चों से संवादहीनता।
- समाज में सफलता का पैमाना अच्छा मनुष्य बनने की बजाय प्रशासनिक अधिकारी की रौबदार नौकरी प्राप्त करना, बड़ा सैलेरी पैकेज या बहुत बड़ा व्यापारी बनना।
- हिंसा करने वाले अपराधियों को दंड नहीं मिलना और उनकी समाज में हिरोईक इमेज बनना।
- सर्वसुलभ इन्टरनेट पर उपलब्ध हिंसक धारावाहिक व चलचित्र।
- विभिन्न प्रकार के मोबाइल पर उपलब्ध खेल काफी आक्रामकता वाले हैं. जो बच्चा इसे खेलता है वो रियलिटी और वर्चुअल दुनिया के बीच फर्क नहीं कर पाता और खुद को उस वर्चुअल दुनिया का ही मानने लगता है।
- विद्यार्थियों में आपस में एक दूसरे को उसके शारीरिक लक्षणों, के अधार पर चिढाना(bullying)
- विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन करने की आदत पड़ना।
- हिंसक व्यवहार करने वाले साथियों का साथ होना।
क्या पूर्व लक्षणों से भावी हिंसक प्रवृत्ति को पहचाना जा सकता है ?
विशेषज्ञों का मानना है कि -हमेशा अलग-थलग रहना, उदास रहना, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना। उसे समझाने पर भी नहीं समझना। गुस्से में तोड़फोड़ करना, अपने भाई-बहिनों अथवा मां-बाप पर हाथ उठाने के लिए तैयार रहना, गलत भाषा का प्रयोग करना। हथियारों के प्रति अतिउत्सुकता इत्यादि के अतिरिक्त कला या रचनात्मक कार्यों में हिंसक अभिव्यक्ति कुछ लक्षण हो सकते हैं जिनके आधार भावी हिंसक व्यवहार की पहचान की जा सकती है। लेकिन इसके साथ यह भी है कि यह बात हर बच्चे के साथ एक ही तरह से लागू नहीं हो सकती है। इन लक्षणों पर भी संवेदनशीलता और गहन ध्यान उपरांत ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है।
विद्यार्थियों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति के निषेध हेतु किये जाने वाले उपाय
शासन द्वारा किये जाने वाले उपाय :
अवैध हथियारों के कारोबार को रोकना चाहिए। अवैध नशे के कारोबार पर तत्काल प्रभावी नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। अच्छी पेरेटिंग के लिए स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं के माध्यम से जनचेतना फैलाने के कार्य किये जाने चाहिए। अभिभावकों की काउन्सलिंग हेतु अच्छे काउन्सलरो की व्यवस्था की जानी चाहिए। पुलिस और प्रषासन का व्यवहार आम जनता के लिए संवेदनषील और सहिष्णु हो इस बात की सुनिष्चितता की जानी चाहिए। ताकि अभिभावक अपनी समस्या उन्हें बता सकें। प्रत्येक विद्यालय में काउन्सलरों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
समाज द्वारा किये जाने वाले उपाय :
विद्यार्थियों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति देष और समाज के लिए चिंता और चिंतन का विषय है। इस प्रवृत्ति के निषेध हेतु समाज में अपराधियों और भ्रष्ट व्यक्तियों की उनकी विहंगम आर्थिक हैसियत को देखकर हीरोईक ईमेज को बनाने से अपने आप को रोकना होगा। इसके अलावा कैरियर ओरियेटेंड सोच को छोड़ते हुए बड़ा रौबदार अफसर या बड़ी हैसियत की आर्थिक स्थिति के लोभ से बचकर अच्छा आदमी बनाने की सोच को विकसित करना होगा।
अभिभावकों द्वारा क्या उपाय किये जा सकते हैं ?
- विद्यार्थियों में हिंसक व्यवहार की प्रवृत्ति को कम करने में सबसे बड़ा कार्य अभिभावकों को करना होगा। संबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि प्रत्येक बच्चा युनीक है। उसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती। किसी दूसरे बच्चें के अच्छे नम्बर या सफलता के दबाब अपने बच्चों को नहीं देना चाहिए। अपने बच्चें को अनावष्यक प्रतियोगिता में उलझाने की बजाय एक अच्छा और संवेदनषील इनसान बनाने की और ध्यान देना चाहिए।
- अभिभावकों को अपने लाईसेंसी हथियारों का प्रदर्शन या अपने हिंसक व्यवहार की बातों का बच्चों के सामने बखान करते हुए महिमामंडन से बचना चाहिए।
- अभिभावकों को अपने व्यस्तम समय से बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए। बच्चों से संवादहीनता की स्थिति इस प्रवृत्ति के लिए आग में घी का काम करती है। यदि पूर्व में बताए गए लक्षण लगातार दिख रहें हो तो बिना किसी हिचक के किसी मनोविज्ञानी चिकित्सक से काउन्सलिंग करवाने में नहीं हिचकना चाहिए। अभिभावकों को बच्चे के चिड़चिड़े और आक्रमक स्वाभाव की अनदेखी या उसका महिमामंडन करने से बचना चाहिए। समय पर उसकी काउन्सलिंग करवानी चाहिए। अभिभावकों को बच्चों की ऑनलाईन गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। उन्हें शारीरिक खेलों को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- ऑनलाईन स्क्रीन रीडिंग की बजाय उन्हें पढ़ने के लिए पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त कुछ अन्य पुस्तक भी उपलब्ध करवानी चाहिए।
विद्यालयों में क्या उपाय किये जा सकते हैं :
- शिक्षकों को बच्चों के आचरण और उनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शासन द्वारा उचित प्रशिक्षण व्यवस्था की जानी चाहिए। जिससे शिक्षक कक्षा शिक्षण के दौरान यदि किसी विद्यार्थी के इस तरह के व्यवहार की पहचान कर उसके निवारण हेतु उसकी यथोचित काउन्सलिंग कर सके। इसके अलावा विद्यालयों में काउन्सलरों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
- विद्यार्थियों के बीच एक दूसरे को उसकी शारीरिक कमजोरी, जाति, क्षेत्र आदि के आधार पर चिढ़ाने की प्रवृत्ति (bullying) को रोकने के लिए शासकीय निर्देशों की पालना की जानी चाहिए। विद्यालय परिसर या बाहर रोकने के लिए विद्यार्थियों की समझाईश करनी चाहिए। तद्उपरांत भी शिकायत मिलने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए।
- कक्षा कक्ष या खेल के मैदान में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कुछ विद्यार्थी जाति, धर्म, या क्षेत्र आधारित गुट तो नहीं बना रहे हैं। ऐसी किसी भी प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए आवष्यक कदम उठाने चाहिए।
- शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियो को कारपोरल दंड निषेध को पूर्ण मन से लागू किया जाना चाहिए। कक्षा शिक्षण या विद्यालय परिसर में शिक्षकों के व्यवहार में हिंसा का कोई प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। विद्यार्थियों के प्रति संवेदनशीलता का प्रदर्शन करते हुए किसी विद्यार्थी को सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए।
- विद्यालयों में नम्बरों की अनावश्यक प्रतियोगिता को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को रचनात्मक कार्यों में लगातार जोड़े रखा जाना चाहिए।
और अंत में इन अनुतरित प्रश्नों के साथ :
इन समस्याओं और इनकी उत्पत्ति के लिए हमें अपने भीतर झांकने की भी आवष्यकता है। हमारी गलत धारणाओं और विकृत सोच से जन्मे विकास के आर्थिक मॉडल कहीं इसके लिए उत्तरदायी तो नहीं है? प्रसन्नता का मापदंड उच्च पद, रौबदार रूतबा यानी आर्थिक सम्पन्नता, सत्ता और शक्ति का व्यक्तिगत आस्वाद है अथवा उच्चतर मानवीय मूल्यों से लवरेज समाज ?