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नदीम के साथ लघु कथा की बात, अजीज की गजलों वाली शाम, “छपास..” के इंतजाम

अदब की दुनिया में बीकानेर की खास पहचान है। यहां साहित्य को लेकर नवाचार होते हैं और फिर उसकी चर्चा पूरे प्रदेश व देश में होती है। साहित्यिक दृष्टि से यहां आयोजन भी अधिक होते हैं, पुस्तकें भी अधिक छपती है और मंथन का काम भी अधिक होता है।

क्यूंकि ये शहर डॉ छगन मोहता, हरीश भादानी, नंदकिशोर आचार्य, यादवेंद्र शर्मा ‘ चन्द्र ‘, बुलाकी दास बावरा, मोहम्मद सदीक आदि आदि का शहर है। यहां के कण कण में अदब की महक है। कई बड़े साहित्यिक काम इस नगरी में होते रहते हैं। राजस्थानी साहित्य की तो ये शहर एक तरह से राजधानी बन गया है।


हिंदी व राजस्थानी साहित्य में ‘ लघुकथा ‘ एक पावरफुल विधा है। मगर इस पर बात बहुत कम शहरों में होती है। जबकि आजकल हर पत्रिका, अखबार में इसकी उपस्थिति रहती है। बीकानेर में भी लघु कथा लिखने वालों की संख्या कम नहीं है। इस विधा पर गंभीर विचार मंथन देश में कम ही हुआ है। बीते सप्ताह इस कमी को भी बीकानेर ने पूरा किया। अजीत फाउंडेशन ने इस बार लघुकथा पर संवाद आयोजित किया। इस विधा के लेखक नदीम अहमद नदीम ने हिंदी लघुकथा के विकास पर पत्रवाचन किया। मेहनत से इस विधा के उद्भव व विकास की पड़ताल उन्होंने की। उपस्थित अधिकतर लोगों को पहली बार इस विधा को लेकर नई जानकारियां मिली। उन्होंने अपने पत्र वाचन में भारतेंदु से लेकर वर्तमान तक की यात्रा का खाका सामने रखा जो कई नई सूचनाएं तो देने वाला था ही, कई जिज्ञासाएं जगाने वाला भी था। यदि सुनने वालों के मन में विगत सुनकर अधिक सवाल खड़े हों तो मानना चाहिए कि संवाद सार्थक था। नदीम अहमद के इस पत्र को इस कारण 100 में से 100 नम्बर मिलने चाहिए। क्योंकि हरेक ने अपनी जिज्ञासाएं रखी।


अध्यक्षता कर रहे लघुकथाकार, कवि, आलोचक संजय पुरोहित ने अपने संबोधन में इस संवाद को पूर्णता प्रदान की। उन्होंने अनेक लघुकथाओं का उदाहरण देकर उसके शिल्प, भाषा और कथ्य को स्पष्ट किया। छोटी से छोटी लघुकथा का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि भागदौड़ की जिंदगी में इस विधा ने वर्तमान में सबसे अधिक प्रसिद्धि पाई है। कुल मिलाकर लघुकथा विधा पर संभवतः इस तरह का ये पहला गम्भीर मंथन था। जिसके लिए अजीत फाउंडेशन, नदीम अहमद नदीम, संजय पुरोहित व प्रतिभागी बधाई के हकदार हैं।

अजीज के शब्द और संगीत
बीकानेर के महबूब शायर अजीज आजाद की बरसी पर जिला उद्योग केंद्र में एक शानदार आयोजन अजीज आजाद लिटरेरी सोसायटी ने किया। इस आयोजन में अजीज साहब की गजलों को 4 गायकों ने स्वर दिया। शब्द को संगीत मिला, प्रभाव तो दुगुना होना ही था। अजीज साहब बीकानेर की धड़कन थे और उसको लगातार स्पंदन देने का काम उनके साहबजादे शायर इरशाद अजीज करते रहते है। इस बार भी उन्होंने शानदार महफ़िल सजाई।


अजीज साहब की गजलों को रफीक राजा, मोहम्मद रमजान, इजहार अजीज व रफीक सागर ने स्वर दिए। लोगों की जुबान पर चढ़े शेर जब संगीत, स्वर के साथ लोगों के कानों में पड़े तो ऐसा लगा जैसे अजीज साहब खुद सुना रहे हैं। हर शेर का मर्म सुनने वालों के दिल तक उतर रहा था। रफीक सागर ने तो उनकी गजलों पर बहुत काम किया है। वो जब शेर सुनाते तो ऐसा लगता जैसे अजीज साहब के शेर फिर से जिंदा हो गये। एक शेर को 4 से 5 तरीके से वे सुना रहे थे और हर अंदाज शेर की ताकत को चौगुना कर रहा था। इजहार के लिए ये आयोजन बड़ी उपलब्धि था। अपने दादा की गजल को जब वो गा रहा था तो यूं लग रहा था जैसे उनके दादा सामने बैठे उनको सुन, समझ रहे हैं। यादगार आयोजन था। अपनी विरासत को इस तरह सहेजने का जिम्मा उठाने वाले इरशाद बधाई के पात्र हैं।

हूं लाडे री भूवा
देश का शायद ही कोई ऐसा शहर हो जिसमें अदब की दुनिया में ऐसे लोग न हो जो केवल दिखावे के साहित्यकार होते हैं। साहित्य की बारहखड़ी भी नहीं जानते मगर खुद को बड़े साहित्यकार साबित करने में पूरा जोर लगाये रहते हैं। उनको साहित्यकार बनना नहीं होता, केवल दिखना भर होता है। बीकानेर में इन दिनों इस तरह दिखने वाले साहित्यकारों की सुनामी है। वे दिखने और खबरों में छपने के जतन ही करते रहते हैं। भले ही इसके लिए संवाददाता की जी हजूरी करनी पड़े, सेवा करनी पड़े। छपेंगे तभी तो साहित्यकार का दिखावा होगा। इनके पास समय ही समय है, हर आयोजन में पहुंच ही जाते हैं। पहले तो मंच पर बैठने की जुगत भिड़ाते है, उसमें पार नहीं पड़ती तो भागीदारी कर छपने की जुगत बिठाते हैं।


विषय जिस पर साहित्यिक आयोजन होता है, मां कसम उसकी उनको लेशमात्र जानकारी नहीं होती, मगर फिर भी बोलने से नहीं चूकते। उनको पता है, बोलेंगे तभी तो अखबार में नाम छपेगा। बेसिरपैर की बात बोलकर हंसी का पात्र बनते हैं, मगर छप जाते हैं। नहीं तो फर्जी विज्ञप्ति का साधन तो इनके पास है ही। इनको ही शायद देखकर राजस्थानी की ये कहावत बनी है ‘ हूं लाडे री भूवा ‘।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।