Learning Language : घर की बोली ले स्कूल आ रहे बचपन को ऐसे पढ़ाएं कि रटने की बजाय समझ जाएं
- सीखने और समझने की सीढी है पढ़ने का कौशल : डा. प्रमोद कुमार चमोली
“हमारी शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी एक समस्या है सीखे गए का मूल्यांकन करने की है। इसके लिए हमने परीक्षा व्यवस्था बनाई है। मूल्यांकन की यह परीक्षा व्यवस्था और शिक्षा को परीक्षा पास करने का उपकरण मानने का हमारा माईन्डसेट और रोजगार हेतु डिग्री की आवश्यकता आदि व्यवस्थाओं के चलते हमारी शिक्षा में से सीखना और समझ विकसित करना हासिए पर चला जाता है।” (इसी आलेख से)
- कुछ ऐसी हो पढ़ने की भाषा कि समझ आ जाएं
- तुतलाती बोली ले स्कूल आ रहे बचपन को ऐसे पढ़ाएं कि रटने की बजाय समझ जाएं
- पढ़ने का मकसद है समझना
बच्चा विद्यालय में क्या लेकर आता हैः
एक बच्चा विद्यालय में प्रवेश क्यों लेता है? इसका उत्तर है कि वह जीवन की अबखाईयों को पार करने के कौशल सीख सके। इसलिए ही उसके लिए कक्षावार पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु निर्धारित की जाती है। इस पाठ्यक्रम और पाठ्यवस्तु को आत्मसात करने के लिए जरूरी होता है कि वह अपनी भाषा को पुख्ता करें। यहाँ प्रश्न यह भी उठता है कि विद्यालय में आने से पहले बच्चे के पास भाषा होती है कि नहीं? इसका उत्तर है कि बच्चा विद्यालय आने से पूर्व अपने साथ मौखिक भाषा को लेकर आता है। जिसे हम घर की भाषा कह सकते हैं। यानी उसके पास जो भाषा है वह उसकी मातृभाषा है।
घर की भाषा बनाम विद्यालय की भाषाः
भारत जैसे बहुभाषी समाज में, विद्यालय में प्रवेश लेने के साथ ही बच्चे के साथ घर की भाषा और स्कूल की भाषा का का द्वन्द्व प्रारम्भ हो जाता है। जो भाषा सीखने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करता है। यह द्वन्द्व बच्चे की सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों के विपरीत होने पर और अधिक बढ़ जाता है। इस द्वन्द्व को समझते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखाः फाउंडेशनल स्टेज 2022 में बच्चों की मातृभाषा को आधार और माध्यम बनाकर ही शुरुआती शिक्षा और पढ़ना-लिखना सिखाने की बात कही गई है। भारत जैसे बहुभाषिक वातावरण जहां 10 कोस में भाषा में बदलाव मिलता है। नई शिक्षा नीति की इस भावना को भाषा सीखने के वातावरण में समाहित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
बच्चे को विद्यालय की भाषा सीखनी क्यों जरूरी है:
बहरहाल इसमें कोई शंका नहीं हो सकती कि बच्चे के लिए भाषा उसके आस-पास की दुनिया को समझने के लिए एक आवश्यक शर्त है। बच्चे के भाषा सीखने में घर की भाषा और विद्यालय की भाषा में अन्तर को शिक्षक कक्षा में अपने ढंग से दूर कर भाषा सीखने के बुनियादी कौशल सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना पर अमल करते हुए बच्चे को भाषा सिखाता है। समझना यहाँ यह जरूरी है कि यदि बच्चे ने विद्यालय की भाषा को सीख लिया तो वह अन्य विषयों को भी आसानी से समझ सकता है।
पढ़ना, सीखना और समझने का द्वन्द्वः
जनसामान्य भाषा की बात करे तो कहा जाता है कि बच्चे विद्यालय में पढ़ने जाते हैं। इससे प्रश्न उठता है कि विद्यालय में विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं या सीखने के लिए? दरअस्ल साधारण भाषा में कही गई बात हमारे दिमाग में इतना घर कर गई है कि हमने सीखने को पढ़ना मान लिया है। बहरहाल यहाँ उपर्युक्त वर्णित भाषा सीखने की चर्चा के माध्यम से यह समझने का प्रयास किया जा रहा है कि पढ़ना, सीखना और समझना एक ही है? तो इसका जबाब जनसामान्य के हिसाब से सोचे तो लगता है एक ही है। लेकिन इनमें कुछ बुनियादी अन्तर हैं उन्हें समझ कर कोई भी शिक्षक या अभिभावक अपने बच्चे की शिक्षा या उसे शिक्षित होने के बारे में अपनी समझ बना सकता है।
सीखने की नींव है पढ़ना:
भाषा सीखते हुए बच्चा अक्षरों की ध्वनि से परिचित होता हुआ। उन अक्षरों से मिलकर बनने वाले शब्दों को उनकी ध्वनि के आधार पर व्यक्त करने लगे तो हम समझते है कि पढ़ने का कौषल विकसित होने लगा है। जबकि इस अवस्था में वह केवल अक्षरों की ध्वनि से मिलकर शब्द का ध्वन्यात्मक रूप ही उच्चारित कर पाता है। लेकिन यह पढ़ना सीखने की पहली शर्त है।
बहरहाल अब यह जानते हैं कि पढ़ना आखिर है क्या?
जब हम पढ़ रहे होते हैं तो मूलरूप में हम बच्चे की ही तरह अपने सामने अंकित लिखित भाषा के अक्षरों को जोड़कर बने शब्दों को उच्चारित करते हुए शब्दों, विराम चिह्नों, और पैराग्राफ की पहचान करते है। इस समय हम एक निष्क्रिय गतिविधि कर रहे होते हैं। इसके अगले चरण में हमारा मस्तिष्क लिखित भाषा को अवशोषित कर उसे प्रोसेस करता है। जिससे हम शब्दों के छिपे अर्थों को डिकोड कर उसके अर्थ बनाने लगते हैं। यानी पढ़ने के माध्यम से, हम लिखित भाषा के में व्यक्त विभिन्न दृष्टिकोणों, तथ्यों और विचारों से परिचित होते हैं। यानी इस समय हम लिखित भाषा को सीखने और समझने की शुरूआत कर रहे होते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती है कि पढ़ना सीखने और समझने की नींव है। या इसे ज्ञान का प्रवेश द्वारा भी कह सकते हैं। इसलिए विद्यालय में नए आने वाले बच्चे के लिए भाषा को सही मायने में सीखना अति-आवश्यक हो जाता है।
ज्ञान का सक्रिय अन्वेषण है सीखनाः
पढ़ना सीखने की नींव और ज्ञान का प्रवेश द्वार है तो फिर सीखना क्या है? सीखना पढ़ने से अधिक एक व्यापक है। यह पढ़ने से अधिक सक्रिय प्रक्रिया है। सीखना केवल जानकारियों को स्मृति में रखना भर ही नहीं है। यह इससे इतर यह संशलेषित अवधारणाओं के विश्लेषणोपरांत उन्हें अपने ढंग से रख पाना यानी उनके प्रति एक व्यापक अंतर्दृष्टि विकसित करना है। सीखने के दौरान विषय वस्तु के साथ एक सक्रिय जुड़ाव बनता है जो नए कौशल हासिल करने, अपने ज्ञान के आधार का विस्तार करने और आलोचनात्मक सोच क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम बनाता है। समझना यहाँ यह भी जरूरी हो जाता है कि सीखना केवल पढ़ने के साथ ही होता है क्या? इसका उत्तर है नहीं। प्रत्येक व्यक्ति जीवन पर्यन्त सीखता रहता है। सीखना एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया और इसके लिए साधन पढ़ना, सुनना, देखना, निजी अनुभव और चर्चा या कोई गतिविधि हो सकती है। यानी सीखना केवल औपचारिक शिक्षा का ही भाग नहीं वरन् जीवन में सतत्च लने वाली प्रक्रिया है। औपचारिक शिक्षा के माध्यम से सीखने की प्रक्रिया अधिक पुख्ता होती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पढ़ना यदि ज्ञान का प्रवेश द्वार है। सीखना ज्ञान का सक्रिय अन्वेषण है।
सीखे हुए का अनुप्रयोग है समझ:
सीखना जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है तो फिर समझ क्या है? जब हम कहते है कि अमुक व्यक्ति समझदार है तो हम यह व्यक्त अपने क्षेत्र में उपलब्ध ज्ञान के उच्चतम स्तर पर है। इससे अर्थ यह है कि उसने केवल ज्ञान के उच्चतम स्तर को संचित ही नहीं किया वरन् वह उसका अनुप्रयोग अपने और समाज के लिए कर रहा है। यानी वह सीखने की प्रक्रिया पूर्ण करने उपरांत अपने पास संचित ज्ञान के माध्यम से व्यापक आलोचनात्मक चिंतन कर सकता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यदि सीखना ज्ञान की सक्रिय अन्वेषण है तो समझना सीखने उपरांत प्राप्त ज्ञान का अनुप्रयोग करना है। किसी में किसी विषय की समझ विकसित हो गई है इसका मतलब है कि वह सूचना का संश्लेषण, उसका अर्थ निकालने और अर्थ का निर्माण करने में सक्षम है। समझना दरअस्ल किसी विषय के अंतर्निहित सिद्धांतों, संबंधों और निहितार्थों को जानने की क्षमता है। इसके लिए आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण और विभिन्न संदर्भों में ज्ञान को लागू करने की क्षमता की आवश्यकता होती है। समझ व्यक्तियों को सूचना की व्याख्या और मूल्यांकन करने, समस्याओं को हल करने और सूचित निर्णय लेने की अनुमति देती है। समझना सक्रिय और परिवर्तनकारी प्रक्रिया है जो गहन समझ और ज्ञान को वास्तविक जीवन की स्थितियों में स्थानांतरित करने की क्षमता को सक्षम बनाती है।
एक दूसरे से अन्तर्ग्रन्थित है पढ़ना, सीखना और समझना:
पढ़ना, सीखना और समझना आपस एक दूसरे से अन्तर्ग्रन्थित हैं। शिक्षा जो कि ज्ञान प्राप्ति का औपचरिक साधन है। पढ़ना, सीखना और समझना ज्ञान प्राप्ति की इस प्रक्रिया के क्रमबद्ध चरण हैं। पढ़ने की प्रक्रिया से ज्ञान की खोज शुरू होती है तो सीखने की प्रक्रिया में ज्ञान के साथ सक्रिय रूप से जुड़ता तादात्मय स्थापित करती है और समझ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का सर्वोच्च स्तर है। जो कि सीखे गए का अनुप्रयोग करते हुए आलोचनात्म चिंतन का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षक और अभिभावक ज्ञान प्राप्ति के इन चरणों की पहचान कर उनका पोषण कर अपने विद्यार्थियों या बच्चों में शिक्षा की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है और आजीवन सीखने को बढ़ावा दे सकते हैं। शिक्षक अपने विद्यार्थियों में पढ़ने के कौशल को सही मायने में विकसित करते हुए सीखने की प्रक्रिया को सशक्त बना सकते हैं, जिससे उनके विद्यार्थी सक्रिय रूप से सीखते हुए अपनी समझ विकसित कर सकें परिणमस्वरूप वे अर्जित ज्ञान की गहरी समझ और सार्थक अनुप्रयोग में सक्षम हो सकें।
क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसा कर पा रही हैः
भारत में अब तक जारी शिक्षा की समस्त नीतियाँ और दस्तावेज सीखना और समझना को शिक्षा के लक्ष्यों में सिद्वान्त रूप में सम्मिलित रहते हैं। लगभग प्रत्येक नीति और दस्तावेज शिक्षा को रटन्त प्रक्रिया से दूर ले जाने की सिफारिश करती है। परन्तु क्या हम अपनी शिक्षा को रटन्त से दूर कर सीखने और समझ विकसित करने की दिशा में बढ़ा पाएं है? यह यक्ष प्रश्न आज भी हमारे समक्ष खड़ा है। हमारी शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी एक समस्या है सीखे गए का मूल्यांकन करने की है। इसके लिए हमने परीक्षा व्यवस्था बनाई है। मूल्यांकन की यह परीक्षा व्यवस्था और शिक्षा को परीक्षा पास करने का उपकरण मानने का हमारा माईन्डसेट और रोजगार हेतु डिग्री की आवश्यकता आदि व्यवस्थाओं के चलते हमारी शिक्षा में से सीखना और समझ विकसित करना हासिए पर चला जाता है। क्योंकि परीक्षा के तीन घंटो में यदि विद्यार्थी पुस्तक में लिखा उत्तर नहीं लिखेगा तो वह असफल होगा। इन्हीं परीक्षाओं के चलते नई शिक्षा नीति में यही पुनः दोहराया गया है। इसे कुछ आस भी बंधी है। उम्मीद है नई शिक्षा नीति के प्रावधान कागज से उत्तर कर विद्यालयों तक पहुँच बनाकर विद्यार्थियों में सीखने और समझ विकसित करने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होंगे।
डा.प्रमोद चमोली के बारे में:
शिक्षण में नवाचार के कारण राजस्थान में अपनी खास पहचान रखने वाले डा.प्रमोद चमोली राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग की प्राथमिक कक्षाओं में सतत शिक्षा कार्यक्रम के लिये स्तर ‘ए’ के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों के लेखक समूह के सदस्य रहे हैं। विज्ञान, पत्रिका एवं जनसंचार में डिप्लोमा कर चुके डा.चमोली ने हिन्दी साहित्य व शिक्षा में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर चुके हैं।
डॉ. चमोली का बड़ा साहित्यिक योगदान भी है। ‘सेल्फियाएं हुए हैं सब’ व्यंग्य संग्रह और ‘चेतु की चेतना’ बालकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। डायरी विधा पर “कुछ पढ़ते, कुछ लिखते” पुस्तक आ चुकी है। जवाहर कला केन्द्र की लघु नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम रहे हैं। बीकानेर नगर विकास न्यास के मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान कई पुरस्कार-सम्मान उन्हें मिले हैं। rudranewsexpress.in के आग्रह पर सप्ताह में एक दिन शिक्षा और शिक्षकों पर केंद्रित व्यावहारिक, अनुसंधानपरक और तथ्यात्मक आलेख लिखने की जिम्मेदारी उठाई है।
राधास्वामी सत्संग भवन के सामने, गली नं.-2, अम्बेडकर कॉलौनी, पुरानी शिवबाड़ी रोड, बीकानेर 334003, मो. 9414031050