गहलोत की योजनाओं, जिलों के गठन को आखिर टाल ही लिया सरकार ने, उप चुनाव का डर
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राज्य की भजनलाल शर्मा सरकार ने उप चुनाव की छांव में आखिरकार गहलोत सरकार के निर्णयों को टाल ही लिया। उप चुनाव में विपरीत असर न पड़े, इस कारण पिछली सरकार के किसी भी निर्णय से छेड़छाड़ नहीं की गई है। भाजपा सरकार को इस बात का अंदाजा था कि जिस किसी भी योजना को बंद किया जायेगा, उसे कांग्रेस उप चुनाव में मुद्दा बना लेगी। वैसे भी 7 सीटों में से भाजपा के पास अभी केवल एक सीट है और वो अधिक सीट जीतना चाहती है। इस कारण लगातार बैठकों के बाद भी पिछली सरकार के निर्णयों पर फैसला टालती रही और अब तय है कि उप चुनाव होने के बाद ही वो इन पर निर्णय करेगी ताकि वोटर पर प्रतिकूल असर न पड़ें।
अशोक गहलोत सरकार ने अपने अंतिम 6 महीनें के कार्यकाल में ताबड़तोड़ घोषणाएं की ताकि चुनाव में फायदा मिल सके। बिजली फ्री, पानी फ्री, ओपीएस, समाजों को जमीन आवंटन, कई समाजों के बोर्ड, नये संभाग, नये जिले आदि की घोषणाएं हुई। चुनाव में फिर भी जीत नहीं मिली। तब नई सरकार बनते ही ये घोषणाएं उसके लिए बड़ी चुनोती बन गई। इस सूरत में भाजपा की भजनलाल सरकार ने आनन फानन में मंत्रियों की सब कमेटी बना 6 महीनें की घोषणाओं की समीक्षा का ऐलान कर दिया।
अब सरकार बने 10 महीनें से अधिक हो गए मगर इस मामले में कुछ भी निर्णय नहीं किया जा सका है। गहलोत सरकार के अंतिम 6 महीनें की घोषणाओं की समीक्षा के लिए स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की अध्यक्षता में कैबिनेट की सब कमेटी बनी और उसकी 7 से अधिक बैठकें हो गई। कई विभागों पर बात भी हो गई मगर कोई भी निर्णय नहीं किया जा सका है। अब भी कमेटी का कहना है कि 2-3 बैठकें और होगी तब जाकर काम पूरा होगा। क्योंकि सरकार अभी यदि फ्री की योजनाओं को बंद करती तो उप चुनाव में प्रतिकूल असर पड़ता। सुविधाओं का त्याग आसान नहीं होता, वोटर गुस्से का इजहार जरूर करता।
ठीक इसी तरह ओपीएस को लेकर भी सरकार चुप है। केंद्र सरकार यूपीएस लाई मगर राज्य सरकार उसे लागू करने को लेकर कुछ नहीं बोली। कर्मचारी संगठन लामबंद है और कह चुके हैं कि उन्हें ओपीएस से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं। इस सूरत में सरकार उनको नाराज करने का जोखिम उठा ही नहीं सकती। उप चुनाव पर उसका बुरा असर पड़ता तो इस डर के कारण अब तक राज्य सरकार ने मौन साध रखा है। कर्मचारी वर्ग के नाराज होने से सरकार का जरूरी कामकाज भी ठप्प हो सकता है, इस कारण वो बोल नहीं रही। उप चुनाव होने के बाद हो सकता है इस पर वो कोई नीतिगत निर्णय ले।
गहलोत सरकार ने जाते जाते 3 नये संभाग व 19 जिले बना दिये। उनकी समीक्षा के लिए ललित के पंवार कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट भी दे दी। मगर मंत्रियों की सब कमेटी उस पर भी निर्णय नहीं दे सकी है जबकि उसकी 6 से अधिक बैठकें हो चुकी है। अब तो इस सब कमेटी के संयोजक को भी बदल दिया गया है। अब मदन दिलावर को इस सब कमेटी का नेतृत्त्व दिया गया है। कुल मिलाकर इस मसले को फिलहाल सरकार टालने के ही मूड में है। सीएम ने खुद हस्तक्षेप किया और निर्णय को लंबित कराया। ये निर्णय भी उप चुनाव को देखते हुए लंबित किया गया है।
उप चुनाव की छांव में एक और मामला सरकार ने अटकाया है। ये मामला है राजनीतिक नियुक्तियों का। आनन फानन में स्वायत्त शासन विभाग ने नियुक्तियां की मगर कार्यकर्ता नाराज न हो इस कारण 24 घन्टे में ही नियुक्तियों का आदेश वापस ले लिया गया। कुल मिलाकर उप चुनाव के कारण हर निर्णय राज्य सरकार लंबित कर चुकी। अब तो चुनाव होने के बाद ही इन सब पर सरकार निर्णय करेगी।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।