भाजपा व कांग्रेस को विरासत बचाने में आयेगा जोर, भाजपा करना चाहती है कमाल
RNE Bikaner
राज्य में विधानसभा की 7 सीटों पर उप चुनाव को लेकर भाजपा, कांग्रेस व अन्य दल अब जोर शोर से लग गए हैं। सभी ने बिसात बिछानी आरम्भ कर दी है। भाजपा कमाल करने की कोशिश में है तो कांग्रेस हरियाणा की हार के बाद अपनी सीटों को बचाने के लिए रणनीति बनाने में लगी हुई है। इन दोनों दलों के लिए क्षेत्रीय दल व बागी चुनोती बने हुए हैं। इस कारण दोनों की राह आसान नहीं।
10 महीनें पहले जब विधानसभा के चुनाव हुए तब भाजपा ने इन 7 में से केवल सलूम्बर की सीट जीती थी। कांग्रेस के पास दौसा, देवली उणियारा, झुंझनु व रामगढ़ की सीटें आई थी। चौरासी व खींवसर में दोनों दलों को आदिवासी पार्टी व रालोपा से करारी हार मिली थी। जो दोनों दलों को अब भी साल रही है। इस दर्द को इस उप चुनाव में मिटा पाना दोनों जानते हैं मुश्किल है, मगर फिर भी जोर शोर से लगे हुए हैं।
खींवसर व चौरासी में चुनोती
भाजपा व कांग्रेस के लिए नागौर की खींवसर व बांसवाड़ा की चौरासी सीटें लंबे समय से चुनोती बनी हुई है। खींवसर की सीट परिसीमन के बाद बनी थी और 16 साल से इस सीट पर रालोपा व हनुमान बेनीवाल का कब्जा है। यहां 2019 में उप चुनाव भी हुआ, वो भी रालोपा ने ही जीता। 10 महीनें पहले हुए विधानसभा चुनाव में रालोपा को ये सीट जीतने में पसीना आ गया था। भाजपा व कांग्रेस के यहां उम्मीदवार थे। भाजपा कम अंतर से ये चुनाव हारी। इस बार फिर पहले के उम्मीदवार रेवंतराम डांगा को उतारा है और पूरा जोर लगा रही है। ज्योति मिर्धा, रिछपाल मिर्धा अब भाजपा में है और इस सीट पर रालोपा को हराना अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है।
ठीक इसी तरह बांसवाड़ा की चौरासी सीट भी भाजपा व कांग्रेस के लिए बड़ी चुनोती है। 2018 में यहां से बीटीपी के टिकट पर राजकुमार रोत जीते। पिछले चुनाव में वे बीएपी के टिकट पर जीत गये। उनके सांसद बनने से ये सीट रिक्त हुई। भाजपा यहां आखिरी बार 2013 मे व कांग्रेस 2008 में जीती थी। इस बार भी दोनों दलों की राह बिल्कुल आसान नहीं।
कांग्रेस के लिए दौसा, रामगढ़, उणियारा सीटें प्रतिष्ठा:
दौसा, रामगढ़ व देवली उणियारा सीटें कांग्रेस की है और ये सीटें पार्टी की प्रतिष्ठा से जुड़ी है। यहां पार्टी जीत की हैट्रिक लगाना चाहती है। जबकि भाजपा अपनी खोई हुई इन सीटों को वापस पाना चाहती है। इन तीनों सीटों पर भाजपा 2013 में अंतिम बार जीती थी। इस बार वो अपनी वापसी का जोर लगा रही है।
झुंझनु सीट भाजपा के लिए मुसीबत:
भाजपा के लिए सबसे अधिक चिंता की सीट झुंझनु है। इस सीट पर उसे अंतिम जीत 2003 में मिली थी। उसके बाद से वो ये सीट जीतने को तरस रही है। ओला परिवार का इस सीट पर वर्चस्व है। ब्रजेन्द्र ओला के सांसद बनने से ये सीट रिक्त हुई। यहां भाजपा के लिए बागी ही सदा चुनोती रहते हैं। इस बार भी वही स्थिति है। मगर इस बार कांग्रेस के सामने भी मुस्लिमों ने संकट खड़ा कर दिया है। वे टिकट की मांग कर रहे हैं।
ये सीट भाजपा के लिए तो परेशानी वाली है ही, कांग्रेस के लिए भी इस बार आसान नहीं। इसी तरह सलूम्बर सीट कांग्रेस के लिए चुनोती है। इस सीट पर वो अंतिम बार 2008 मे जीती थी। भाजपा तीन चुनाव लगातार जीती है और इस बार भी विरासत बचाने में जुटी है।
कुल मिलाकर उप चुनाव की सीटों पर भाजपा व कांग्रेस को अपनी विरासत बचाते हुए नया कुछ करने की चुनोती है। जो आसान नहीं। रालोपा को भी साख बचाने की चुनोती है।
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।