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पर्यावरण : बच्चों! ये जो आस-पास है ना, इसमें अच्छे को सहेजना-बढ़ाना है, खराब को हटाना है!

आलेख

प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन ::जीवन जीने की पद्धति

डॉ. प्रमोद कुमार चमोली

पर्यावरण अध्ययन क्या हैः

सामान्यतः पर्यावरण अध्ययन को परिस्थितकी विज्ञान से जोड़कर देखा जाता है। इसे पर्यावरण शिक्षा मान लिया जाता है। इसे प्राकृतिक जगत की घटनाओं को समझने व उसके प्रति सरोकारो से जुड़ा मान लिया जाता है। यह सही है कि कोई भी व्यक्ति अपने आस-पास से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। हमारे आस-पास का समस्त भौतिक, जैविक और सामाजिक वातावरण हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमें प्रभावित करता है। यही सभी कारक मिलकर हमारा परिवेश बनाते हैं।

हम अपने परिवेश को जानते हैं, समझते हैं और उसमें अन्तःक्रिया करते हैं। इन्हीं सभी बातों को यदि हम पढ़ने-पढ़ाने के अर्थों में लें तो यही पर्यावरण अध्ययन का सरल रूप हो सकता है। सरल शब्दों में कहें तो अपने आस-पास की छानबीन, जाँच-पड़ताल ही पर्यावरण अध्ययन है। या यूँ कहें कि अपने परिवेश को जानना समझना ही पर्यावरण अध्ययन है।

यहाँ पर जिस पर्यावरण अध्ययन की हम चर्चा करना चाहते हैं वह प्राथमिक कक्षाओं का विषय है। जो पिछले कुछ दशकों से ही प्रचलन में आया है। पर्यावरण अध्ययन कई मायनों में पर्यावरण शिक्षा से भिन्न है। प्राथमिक कक्षाओं में विषय के रूप पर्यावरण अध्ययन बच्चें में अपने आस-पास यानी उसका प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण के प्रति बनी समझ को परिमार्जित कर पुख्ता किया जाता है।

पर्यावरण अध्ययन विषय का स्वरूपः

पर्यावरण अध्ययन की विषय वस्तु कैसी हो तथा किस तरह से जीवन जीने की पद्धति सहजता से बच्चों मे पोषित कर सके। हमारे परिवेश में भौतिक घटक (हवा, पानी, मिट्टी, धूप, वर्षा), जैविक घटक (मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़ पौधे) तथा सामाजिक घटक (रिश्ते-नाते,समाज, रीति-रिवाज, परम्ंपराएँ) में अन्तःक्रियाएँ चलती रहती हैं। इन्हीं अन्तःक्रियाओं के प्रति समझ भावी जीवन की तैयारी है। इसे विकसित कर सके ऐसी पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु होनी चाहिए । पर्यावरण अध्ययन की विषय वस्तु में जहाँ एक ओर हम प्रकृति के विभिन्न घटकों के प्रति समझ बनाने वालेे तत्वों को शामिल कर सकते है वहीं दूसरी ओर उसके चारों और के समाजिक पर्यावरण की समझ बनाने वाले तत्वों को सम्मिलित किया जाता है।

केवल एक विषय नहीं कई विषयों का समावेशन है:

विषय के रूप में हम देखे तो हमारे परिवेश के इन दो घटकों – प्राकृतिक एवं सामाजिक का अध्ययन क्रमशः विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। अपने परिवेश की समझ को ओर पुख्ता बनाने हेतु इतिहास और भूगोल की समझ की जरूरत से इन्कार नहीं किया जा सकता। अपने आसपास के प्रति समझ बनाने के लिए सौन्दर्यात्मक अनुभूति के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। अतः कला शिक्षा का अघ्ययन भी समचीनी लगता है। साथ ही स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण साधन की अनदेखी कर बच्चों से अपने आसपास के प्रति समझ बनाने की अपेक्षा करना बेमानी सा लगता इसलिए स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा विषय का अध्ययन भी करवाना होगा। ऐसे में इतने विषयों का अलग अलग अध्ययन प्राथमिक कक्षाओं में करवाना हो तो बच्चे का बस्ता बच्चे से भारी होना लाजमी सा लगता है।

पर्यावरण अध्ययन विषय के उद्देश्यः

पर्यावरण अध्ययन का उद्देश्य बच्चे में उन क्षमताओं को विकसित करना है जिससे वह अपने आस-पास के समस्त भौतिक, और जैविक परिवेश के प्रति अपनी समझ को विकसित कर सके। वह अपने आस-पास के सामाजिक वातावरण को समझ सके। अपने परिवेश की सामाजिक ,सांस्कृतिक विभिन्नताओं और जटिलताओं को समझ सके। पर्यावरण के प्रति जागरूक हो सके। इन सभी अमूर्त से लगने वाले उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बच्चों मे अवलोकन करना, संकलन करना, वर्गीकरण करना, प्रयोग करना, मापन करना, अनुमान लगाना, चर्चा करना, चिंतन करना, और निष्कर्ष निकालना, जैसी क्षमताओं को विकसित करने जैसे मूर्त उद्देश्यों लिए जा सकते है।

उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विषय के रूप में पाठ्यक्रम कैसा हो?:

पर्यावरण अध्ययन के ये उद्देश्य व उन से जुड़े सरोकार यूँ तो देखने में बड़े ही सरल से प्रतीत होते हैं। वास्तविकता के धरातल पर ये इतने सरल नहीं है। ऐसा करने के लिए आवश्यक है कि अधिगम को एकीकृत परिपेक्ष्य में लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसा तब ही संभव हो सकता है जब घटक विषय एकीकृत रूप में हो। यानी पर्यावरण के अध्ययन के पाठ्यक्रम का विकास इस रूप में हो कि इसमे सम्मिलित सभी विषय शिक्षा के बालकेन्द्रित स्वरूप की रक्षा करते हुए ऐसे सांझे स्वरूप में इस प्रकार रखें जिसमें विभिन्न संकल्पनाओं और कौशलों के मध्य अंत और अंतर सम्बन्ध हों। सरल शब्दों में कहें तो घटक विषयों का सीमरहित समेकन हो।

एकीकृत स्वरूप या सीमा रहित समेकन की चुनौतियाँः

सामान्यतः किसी भी विषय का बनाने के लिए पाठ्यक्रम बनाने के लिए उस विषय के विशेषज्ञों के साथ चर्चा करके बनाया जा सकता है। लेकिन पर्यावरण अध्ययन विषय का पाठ्यक्रम बनाने के लिए इसके अलग – अलग घटक विषयों के विशेषज्ञों से चर्चा करनी होगी। जो उस विषय की मूल स्वरूप की रक्षा के आग्रह से रूढिगत होंगे। ऐसे में इन विषयों को समेकित कर पाठ्यक्रम बनाने को कहा जाए तो क्या होगा ? पाठ्यक्रम इन घटक विषयों के पाठों की सूची से अधिक कुछ भी नहीं होगा। जिसमे हर विषय अपने अनुशासन और अपनी पद्धति के साथ खड़ा रहेगा। अलग-अलग विषय ,उनके अलग-अलग अनुशासन और इन सभी विषयों के प्रति समझ बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार की क्षमताओं के विकास की आवश्यकता है। इस स्थिति पर चिंतन करें तो पर्यावरण अध्ययन ऐसे विषय के रूप में उभरता है। जिसमें विभिन्न विषयों से संबंधित असम्बद्ध जानकारियां भरी हो। ऐसे में बच्चा क्या खण्ड-खण्ड में बंटे विषय के प्रति समझ नहीं बना पाएगा।

आखिर कैसे हो सीमारहित समेकन?:

पर्यावरण अध्ययन विषय ऐसा होना चाहिए जो कि उपर्युक्त परिस्थितियों को हतोत्साहित करे। ऐसा करने के लिए आवश्यक है कि इसमें घटक विषयों को सीमारहित समेकन हो। तभी हम पर्यावरण अध्ययन के उद्देश्यों की प्राप्ती कर सकते है। इसके लिए आवश्यक है कि विषय थीमेटिक एप्रोच पर कार्य करें। थीम के माध्यम से बहुविषयकता को एकीकृत रूप में साथ साथ रखा जा सकता है। दरअस्ल ‘थीम’ को साधारण अर्थो में समझे तो यह है कि एक विशेष प्रकार थीम इस प्रकार हो जो कि एक जैसा सा हो का अहसास देती है। पाठ्यक्रम में यह कमोबेश अपने उसी अर्थ को चरितार्थ करते हुए विषयों को एक जैसा सा यानी एकीकृत स्वरूप में रखते हुए सीखने और सिखाने का एक नया तरीके को रखता है। एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा कक्षा 3 से 5 तक पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम को एकीकृत स्वरूप प्रदान करने के लिए छः विषय क्षेत्रों (थीम) परिवार और मित्र (संबंध, कार्य, एवं खेल, जानवर, पौधे) , भोजन, आवास, जल, यात्रा, और कुछ करना व बनाना की थीम निर्धारित की गई है। उदाहरण के रूप में समझे तो जैसे जल थीम है तो इसमें आस-पास उपलब्ध जल, आस-पास के जल संस्कृति, जल की पूजा, जल की आवश्यकता, जल की कमी इत्यादि उपविषय रखकर एकीकृत एप्रोच बनती है।

कैसे करवाया जाए अध्ययनः

इस विषय हेतु कक्षा-कक्ष में ऐसा वातावरण बनाया जाए जो ज्ञान के निर्माण को प्रोत्साहित करें। बच्चों के अनुभवों को बराबर तरजीह देते हुए उन्हें संवाद बनाने के लिए प्रोत्साहित करे ताकि वह अपने आप को अभिव्यक्त करने का कौशल सीख सके। पर्यावरण अध्ययन में ज्ञान निर्माण की परिस्थितियाँ कक्षा-कक्ष के साथ-साथ कक्षा से बाहर भी हैं। पर्यावरण अध्ययन विषय ओर अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह बच्चों की विद्यालयी दुनिया को उनकी बाहरी दुनिया से जोड़ता है। ऐसा तब ही संभव होगा जब हमें उन्हें उनके परिवेश के अनुभवों को कक्षा में साझा करने के अवसर पैदा करेंगे। ऐसा करने के लिए हमें उन्हें बाहरी चीजों के समक्ष ले जाना पड़े ऐसे अवसरों को प्रोत्साहित करना होगा।

पर्यावरण अध्ययन के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए हमें शिक्षण की अपेक्षा अधिगम का माहौल बनाना आवश्यक है। इसके लिए हमें स्थानीय, सक्रिय क्रियाकलापों, परियोजनाओं, फील्ड विजिट, व अन्यान्य नवाचारी उपायों को अपनाना होगा। तभी पर्यावरण अध्ययन जीवन से जुड़ पाएगा और अपने प्रेक्षण, पहचान और वर्गीकरण करने के कौशल विकसित करना।

कैसे है यह विषय जीवन जीने की पद्धतिः

इस प्रकार प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन विषय के माध्यम से हम प्राकृतिक और सामाजिक परिवेशों के अन्तर्संम्बन्धों पर जोर देते हुए बच्चों में पर्यावरण की समग्र तथा समेकित समझ विकसित करते हैं। जिससे बच्चा अनेक सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनता है। यदि इस विषय को उसकी भावना के अनुरूप सिखाया जाए तो बच्चा भिन्नता और बहुलता के लिए आदर भाव विकसित ़कर पाएगा। इस प्रकार वह अपने जीवन में विभिन्न वातावरणों यथा-प्राकृतिक, सामाजिक और भौतिक के प्रति समझ बनाते हुए इन सभी के बीच सामंजस्य स्थापित कर पाएगा। वास्तव में एक सफल जीवन वही माना जाएगा जब कोई तमाम अन्य वातावरणों से सामंजस्य स्थापित करते हुए अन्य जीवों-अजीवों के अस्तित्व की रक्षा करते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा करे। अतः इस मायने में समझे तो प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों में इस तरह की समझ बनाने का कार्य पर्यावरण अध्ययन विषय बखुबी कर सकता है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि पर्यावरण अध्ययन जीवन जीने की पद्धति से को सिखाने का ही तो प्रयास है।

डा.प्रमोद चमोली के बारे में:

शिक्षण में नवाचार के कारण राजस्थान में अपनी खास पहचान रखने वाले डा.प्रमोद चमोली राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग की प्राथमिक कक्षाओं में सतत शिक्षा कार्यक्रम के लिये स्तर ‘ए’ के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों के लेखक समूह के सदस्य रहे हैं। विज्ञान, पत्रिका एवं जनसंचार में डिप्लोमा कर चुके डा.चमोली ने हिन्दी साहित्य व शिक्षा में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर चुके हैं।
डॉ. चमोली का बड़ा साहित्यिक योगदान भी है। ‘सेल्फियाएं हुए हैं सब’ व्यंग्य संग्रह और ‘चेतु की चेतना’ बालकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। डायरी विधा पर “कुछ पढ़ते, कुछ लिखते” पुस्तक आ चुकी है। जवाहर कला केन्द्र की लघु नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम रहे हैं। बीकानेर नगर विकास न्यास के मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान कई पुरस्कार-सम्मान उन्हें मिले हैं। rudranewsexpress.in के आग्रह पर सप्ताह में एक दिन शिक्षा और शिक्षकों पर केंद्रित व्यावहारिक, अनुसंधानपरक और तथ्यात्मक आलेख लिखने की जिम्मेदारी उठाई है।


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