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सीएम शर्मा व अध्यक्ष राठौड़ तो डोटासरा व जुली की अग्नि परीक्षा है उप चुनाव

RNE Network

राज्य की 7 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव इस बार भाजपा व कांग्रेस का नेतृत्त्व करने वाले राज्य के नेताओं की बड़ी अग्नि परीक्षा है। क्योंकि चुनाव प्रबंधन व रणनीति का सारा दारोमदार राज्य के नेताओं के ही पास है। दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेता तो महाराष्ट्र व झारखंड के विधानसभा चुनाव में व्यस्त रहेंगे। देखा जाये तो दोनों ही पार्टियों के केंद्रीय नेतृत्त्व ने राज्य नेताओं के आंकलन के लिए भी ये राजनीतिक चाल चली है।


दोनों पार्टियों के लिए उप चुनाव बड़ी चुनोती से कम नहीं है। भाजपा को न केवल अपनी सलूम्बर सीट बचानी है अपितु 2 से 3 सीटें और हथियानी है। ताकि सत्त्ताधारी दल के उप चुनाव जीतने की परंपरा का निर्वाह हो। भाजपा के राज्य के नेता पहली परीक्षा में तो असफल रहे थे। जब श्रीकरणपुर व बागीदौड़ा का उप चुनाव भाजपा हार गई थी। उसके बाद लोकसभा की भी 11 सीटें हार गई। उसी वजह से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद से सी पी जोशी की विदाई हुई।


इस बार भाजपा पिछली कहानी दोहराना नहीं चाहती। वह एक से अतिरिक्त सीटें जीतने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है। उसकी नजरें खींवसर, देवली उणियारा, झुंझनु सीटों पर ज्यादा है। यहां के लिए खास रणनीति पर सीएम व प्रदेश अध्यक्ष काम कर रहे हैं। मंत्रियों व विधायकों की पूरी फौज इन विधानसभा क्षेत्रों में उतारी है। टिकट देने में भी साहसभरा कदम उठाया है। असंतोष हुआ मगर उसे भी सरकार व संगठन ने 48 घन्टे के भीतर काफी कुछ थाम लिया।

अब चुनाव अभियान को संचालित कर अपना स्कोर करना बाकी है। हालांकि ये आसान काम नहीं है। भाजपा में भी स्थानीय स्तर पर गुटीय राजनीति कम नहीं, जिसको पार्टी कैसे साधेगी, ये देखने की बात है।


कांग्रेस के सामने तो भाजपा से ज्यादा बड़ी चुनोती है। इन सात सीटों में से दौसा, देवली उणियारा, झुंझनु व रामगढ़ सीटें उसकी है, उनको बचाना होगा। ये काम इतना आसान नहीं। क्योंकि किरोड़ीलाल मीणा को भाजपा ने साध लिया है। 3 महीनें बाद भी उनका मंत्री पद से इस्तीफा नहीं स्वीकारा। विधानसभा चुनाव के समय की गलती सुधार देवली उणियारा से उनके भाई को टिकट देकर उन्हें चुप भी कर दिया। इस सीट पर अब कांग्रेस को पसीना उतरेगा। ठीक इसी तरह दौसा में भी अब असर पड़ेगा तभी तो कांग्रेस ने मुरारीलाल मीणा की पत्नी के स्थान पर नया उम्मीदवार उतारा है। ये सीट भी कांग्रेस के लिए अब आसान नहीं रही।


झुंझनु में कांग्रेस को अल्पसंख्यकों को राजी करना होगा, क्योंकि उन्होंने टिकट के लिए प्रदर्शन कर तीखे तेवर दिखाए थे। अब वहां पिछली बार की तरह भाजपा की बगावत का लाभ भी नहीं मिलेगा। कांग्रेस व ओला परिवार के सामने किला बचाने की बड़ी चुनोती है। राह आसान नहीं। रामगढ़ में भी कांग्रेस पिछली बार की तरह आराम में नहीं है, क्योंकि भाजपा ने इस बार बगावत पर लगाम लगाई है। कांग्रेस यहां सहानुभूति के सहारे है।


इसके अलावा भी कांग्रेस के सामने समस्या है। रालोपा व आदिवासी पार्टी से उसका गठबंधन नहीं हो पाया। खींवसर व चौरासी में भी साख बचाना कांग्रेस के लिए परेशानी भरा काम है। सबसे बड़ी बात ये है कि चुनाव को संभालने का काम पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा व नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली को ही करना होगा। ये उनकी अग्नि परीक्षा है। क्योंकि पार्टी ने अशोक गहलोत व सचिन पायलट को महाराष्ट्र के अलग अलग इलाके देकर राज्य से बाहर भेज दिया है। इस कारण नतीजे डोटासरा व जुली के नेतृत्त्व की असली परीक्षा है। उनको केवल जितेंद्र सिंह व सी पी जोशी का साथ मिलेगा।


कुल मिलाकर ये चुनाव भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व अध्यक्ष मदन राठौड़ और कांग्रेस की तरफ से डोटासरा व जुली की बडी अग्नि परीक्षा है। उसी से इनका आगे का सफर तय होगा।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।