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उप चुनाव में कांग्रेस के लिए अपने बने परेशानी, कैसे थमेगा असंतोष

  • झुंझनु, देवली उणियारा में हुई परेशानी

अभिषेक आचार्य

कल उप चुनाव के लिए नामांकन का काम पूरा हो गया। विधानसभा की 7 सीटों के लिए कुल 94 लोगों ने नामांकन दाखिल किया। नाम वापसी के बाद असली संख्या सामने आयेगी। अभी तो नामांकन दाखिले में दौसा क्षेत्र सबसे आगे है। इस सीट पर सर्वाधिक 21 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। वहीं उदयपुर की सलूम्बर सीट पर सबसे कम 7 प्रत्याशी मैदान में उतरे है।


नाम वापसी के बाद असली चुनावी सूरत सामने आयेगी। भाजपा ने तो सलूम्बर, झुंझनु, रामगढ़ व देवली उणियारा में अपने असंतोष को पूरा जोर लगाकर थाम लिया। मगर कांग्रेस अब भी नहीं थाम पाई है।
देवली उणियारा सीट पर नरेश मीणा ने भी कांग्रेस का टिकट मांगा था, मगर नहीं मिला। कांग्रेस ने के सी मीणा को टिकट दिया है। इससे नाराज नरेश मीणा ने बागी के रूप में पर्चा दाखिल कर दिया है। उनके तेवर देख के नहीं लगता कि वे पार्टी से आसानी से मान जायेंगे। उनका ये कहना कि संघर्ष मेरा स्वभाव है और इस सीट पर चुनाव की स्क्रिप्ट मैं लिखूंगा। उनको मनाना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर है।

यदि नरेश मीणा इस सीट पर डटे रहे तो कांग्रेस की राह बहुत ही कठिन हो जायेगी। जबकि भाजपा ने यहां विजय बैंसला के समर्थन के लिए उपजे असंतोष को तुरंत थाम लिया। कांग्रेस कैसे उनका नामांकन वापस करायेगी, ये यक्ष प्रश्न है।
झुंझनु की सीट कांग्रेस की है और भाजपा 2008 से यहां जीत तलाश रही है। ओला परिवार का यहां वर्चस्व है। भाजपा ने भी जब यहां से बबलू चौधरी की जगह राजेन्द्र भांबू को टिकट दिया तो बगावत हो गई। बबलू ने नामांकन पत्र मंगवा लिया और चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। भाजपा ने मंत्रियों को लगा उनको आखिरकार मना संकट टाल लिया।


मगर कांग्रेस यहां अपनों के कारण ही गहरे संकट में है। इस सीट पर पहली बार मुस्लिम समुदाय ने टिकट मांगा। पीसीसी के सामने प्रदर्शन किया। मगर कांग्रेस ने टिकट ब्रजेन्द्र ओला के पुत्र अमित ओला को टिकट दे दिया। अब मुस्लिम नेता व पूर्व आईएएस अशफाक हुसैन मैदान में उतर गये हैं। ये कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल है। क्योंकि मुस्लिम तो इस सीट पर कांग्रेस का कोर वोट रहा है। इस सीट पर राजेन्द्र गुडा ने भी पर्चा भरा है। कांग्रेस के लिए अब बाधा खड़ी हो गई है। इस बाधा को आसानी में बदलना कांग्रेस के लिए बहुत ही टेढ़ी खीर है।


सलूम्बर सीट पर भी कांग्रेस अपनों के कारण फंस गई है। यहां रघुवीर मीणा टिकट के दावेदार थे मगर टिकट मिला है रेशमा मीणा को। जो एक बार बागी के रूप में रघुवीर मीणा के सामने 2018 के चुनाव में लड़ चुकी है। उनके कारण ही रघुवीर चुनाव हारे। वे लड़ तो नहीं रहे, मगर उनके नामांकन से दूर रहे। उनको राजी करना अब कांग्रेस के लिए मुश्किल काम है।
कुल मिलाकर कांग्रेस को अपनों ने ही उलझा दिया है। जबकि भाजपा ने बागियों को मना लिया है। कांग्रेस के लिए अपने बागियों को मनाना टेढ़ी खीर है। यदि डेमेज कंट्रोल नहीं हुआ तो कांग्रेस मुश्किल में रहेगी, वो भी उन सीटों पर उसकी खुद की है।