सोशल मीडिया से लड़ेंगे चुनाव की जंग, प्रचार से भरमाने की कोशिश
RNE Network
राजस्थान में इस बार 7 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव है और ये चुनाव भाजपा, कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय पार्टियों आदिवासी पार्टी व रालोपा के लिए प्रतिष्ठा का बने हुए हैं। इसी कारण इन सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी शक्ति चुनाव में झोंक रखी है। ये चुनाव भाजपा व कांग्रेस के लिए इस कारण महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टियों के कई छोटे बड़े नेताओं का राजनीतिक भविष्य तय होगा। 10 महीनें की भाजपा सरकार को जहां कांग्रेस पर्ची सरकार बता रही है वहीं भाजपा की सरकार अपने 10 महीनें के कार्यकाल को विकास का बड़ा इतिहास बता रही है। अब फैसला मतदाता करेगा कि सही किसका दावा है।
पिछले 11 साल से देश में चुनावी समर का बड़ा प्लेटफॉर्म सोशल मीडिया बना हुआ है। यही वो जरिया है जिससे झूठ या सच फैलाया जाता है। उम्मीदवार की छवि बनाने या बिगाड़ने का काम होता है। मतदाता को नाजुक मुद्धों पर इमोशनल किया जाता है। ये माध्यम कारगर भी बहुत है। आजकल हरेक के हाथ में मोबाइल है और हर कोई यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप व एक्स को चलाता है। इन पर अधिकतर सेंशेसनल पोस्ट ही देखने को मिलती है। चुनाव आयोग हालांकि कड़ीं निगरानी भी करता है मगर दलों के कारीगर समर्थक कारीगिरी कर गुजरते हैं। बड़ी संख्या में पार्टियां व उम्मीदवार इस प्लेटफॉर्म के लिए लोगों को हायर भी करते हैं।
इन उप चुनावों में भी दोनों प्रमुख दलों के अलावा क्षेत्रीय दलों ने भी अभी से ही सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियां आरम्भ कर दी है। अब ये छिपाने वाली बात भी नहीं रही। भाजपा व कांग्रेस में तो सोशल मीडिया की टीमें बनी हुई है और सार्वजनिक रूप से पदाधिकारी भी नियुक्त है। यही स्थिति क्षेत्रीय दलों की भी है। चुनावी रणनीति का बड़ा हिस्सा प्रचार तो सदा से ही रहा है, अब ये काम पार्टियों की सोशल टीम ही देखती है। प्रशांत किशोर तो अब इसका जीता जागता उदाहरण है।
उप चुनावों के लिए भाजपा ने जहां एक तरफ प्रदेश कार्यालय में सोशल मीडिया संचालन के लिए अलग से टीम बना कार्य शुरू किया है वहीं सातों सीटों पर भी अलग से सोशल मीडिया की टीम बना बिठाई गई है। ये टीमें एक दूसरे से कनेक्ट है और सामग्री का आदान प्रदान कर उसे वायरल करने का काम करने लगी है। एक तरफ जहां अपनी पार्टी और उम्मीदवार की छवि बनाने का इनका काम है, वहीं दूसरी तरफ विरोधी पार्टी व उम्मीदवार की छवि बिगाड़ने का भी काम इनके जिम्मे हैं। विरोधी पार्टी व उनके नेताओं के पुराने भाषण निकालकर वायरल किये जा रहे हैं जो उनके विपरीत पड़ते हैं।
वहीं भाजपा ने पुरानी सारी परंपरा को तोड़ते हुए 7 सीटों का ही केवल रिपोर्ट कार्ड भी जारी किया है। ये पहली बार देखने मे आया है। इसके अलावा हर विधानसभा में प्रचार के लिए दो दो मंत्रियों, सांसदों व विधायकों को लगाया गया है। सीएम व प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष भी लगातार इन 7 क्षेत्रों में ही घूम रहे है।
कांग्रेस भी पीछे नहीं है। उसने भी जयपुर स्थित अपने वार रूम में सोशल मीडिया की पूरी टीम बिठाई है जो भाजपा जैसा ही काम कर रही है। इस बार भाजपा की नकल करते हुए कांग्रेस ने भी ब्लॉक व बूथवार प्रभारी बनाए हैं और ये जिम्मेवारी कुछ अच्छे कद के नेताओं को दी है। कांग्रेस ने माइक्रो लेवल पर प्रचार की तैयारी की है। जिस सीट के जिस ब्लॉक व मंडल में जिन जिन जातियों व वर्ग का बाहुल्य है, वहां वहां उसी जाति व वर्ग के नेताओं को तैनात किया गया है। भले ही दूसरे जिलों से उस जाति व वर्ग के नेताओं को वहां भेजना पड़ा है। जातियों व वर्गों को साधने की रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है।
इसके अलावा कांग्रेस ने भी हर सीट पर पूर्व मंत्रियों के अलावा अपने सांसदों, विधायकों की ड्यूटी लगाई है और वहीं कैम्प करा रहे हैं। सोशल मीडिया की एक टीम उम्मीदवारों ने भी अपनी बनाई है। जो कॉल करने के अलावा व्हाट्सएप, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर पोस्ट निरंतर डालने का काम कर रहे हैं। पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली, भंवर जितेंद्र सिंह, राहुल कस्वां, उमेदराम बेनीवाल आदि को सभी सीटों पर घुमाया जा रहा है। बड़े नेताओं की सभाओं को कराने की भी योजना बनाई गई है।
रालोपा व आदिवासी पार्टियां भी सोशल मीडिया पर पीछे नहीं है। रालोपा की तो एक बड़ी टीम पूरे समय वैसे भी सक्रिय रहती है जो अब ज्यादा सक्रिय हो गई है। आदिवासी पार्टी भी इस मामले में पीछे नहीं है।
कुल मिलाकर प्रचार, सोशल मीडिया से ही इस बार पार्टियां मतदाता को प्रभावित करने का प्रयास कर रही है। इसमें तड़का जाति व वर्ग का जरूर लगाया जा रहा है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।