BJP : स्टार प्रचारक है वसुंधरा राजे लेकिन किसी भी सीट पर प्रचार में शामिल नहीं!
अभिषेक आचार्य
राज्य में 7 विधानसभा सीटों पर हो रहे उप चुनाव में भाजपा ने मिशन 7 तय कर अपनी पूरी शक्ति झोंक रखी है। हर सीट पर सीएम ने दो दो मंत्री उतार रखे हैं। कई विधायक, सांसद भी चुनावी समर में पार्टी की ड्यूटी कर रहे हैं। राज्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल में जो नेता हैं, वे भी घूम रहे हैं। पार्टी संगठन भी पूरी शक्ति लगाये हुए हैं। प्रदेश प्रभारी राधा मोहन व अध्यक्ष मदन राठौड़ भी प्रचार में जुटे हैं। राजेन्द्र राठौड़ व सतीश पूनिया ने पूरा दम खम लगाया हुआ है।
चुनावी परिदृश्य से एक चेहरा पूरी तरह से गायब है, जो कहीं भी नजर नहीं आ रहा। हालांकि उनका नाम स्टार प्रचारक के रूप में भी पार्टी ने शामिल किया हुआ है। जिनकी राज्य में अच्छी पकड़ भी है। नेता, विधायक, सांसद भी उनके फॉलोवर है मगर प्रचार में वो चेहरा कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा। ये चेहरा है राज्य की दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का। राजे किसी भी सीट पर प्रचार करती नहीं दिखी। ये काफी चकित करने वाली बात है। जिस पर राजनीतिक क्षेत्र में खूब चर्चा हो रही है।
राजे के लिए ये माना जाता है कि वो राज्य की भाजपा की ऐसी इकलौती नेता है जिनका हर जिले, गांव में समर्थक मिलेगा। बड़े नेता भी उनसे जुड़े हैं। झुंझनूं, सलूम्बर, खींवसर व रामगढ़ में उनकी आरम्भ से ही गहरी पैठ रही है। वे सक्रिय हों तो काफी बड़े पैमाने पर राजनीतिक समीकरण बदल सकती हैं। उनकी कमी भाजपा कार्यकर्ताओं को खल रही है, मगर वे बोल नहीं पा रहे।
उनकी सक्रियता के अनुकूल परिणाम मिलेंगे, ये पार्टी नेताओं को भी भान है। फिर भी पता नहीं क्यों वे उनको प्रचार के लिए क्यों नहीं ला रहे। ये बड़ा राजनीतिक यक्ष प्रश्न है। जिसका जवाब किसी के पास नहीं, जिनके पास है वे बोल नहीं रहे। तब सवाल ये खड़ा होता है कि क्या उनकी चुप्पी या न दिखने का चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा, राजनीति में न पड़े, ये तो संभव नहीं।
राजनीति है ही परसेप्शन का खेल। जनता या वोटर क्या परसेप्शन लेगा, ये सोचने की बात है। यदि किसी वाजिब कारण से प्रचार में नहीं है तो उसे भी स्पष्ट करना आवश्यक है राजनीति में, पार्टी को उससे फायदा ही मिलेगा। चुनाव से उनकी दूरी को बेहतरी की बात तो माना ही नहीं जा सकता।
एक बात और गौर करने लायक है। राजे के जो समर्थक सांसद व विधायक माने जाते हैं, वे भी चुनाव प्रचार के परिदृश्य में कहीं उभरे हुए नजर नहीं आ रहे। क्या पार्टी का इस पर ध्यान नहीं है। उससे होने वाले नुकसान का आंकलन नहीं?
उप चुनाव के परिणाम आने पर ही अब तो इस बात का आंकलन होगा कि राजे की गैमौजुदगी का कितना असर पड़ा। लोकसभा चुनाव के समय भी राजे केवल दुष्यंत की सीट तक सिमट गई तो राज्य में भाजपा को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। जबकि उनके नेतृत्त्व में दो बार लगातार राज्य की सभी 25 सीटें भाजपा ने जीती। राजे की उप चुनाव में अनुपस्थिति अभी की सबसे बड़ी राजनीतिक चर्चा है। जिसमे केवल कयास है, जवाब किसी के पास नहीं।