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आचार्य को “भंवरमल्ल” सम्मान, सरकार से राजस्थानी को उम्मीद और बहुत कुछ

RNE Bikaner.

ऊर्जा थियेटर सोसायटी ने रंगकर्म के साथ अब साहित्य को भी जोड़ने का अनूठा काम शुरू किया है। देश का संभवतः रंगकर्मियों का ये पहला काम है। रविवार की शाम होती है। धर्म सज्जन ट्रस्ट के खुले रंगमंच के साथ का कमरा। टेबिल और कुर्सी। टेबिल पर मोमबत्तियां, लाइट चली जाये तो। नहीं तो टेबिल पर एक स्पॉट लाइट। कुर्सी पर कहानीकार। उसके सामने कहानी लिखे उसके कागज।

वो टेबिल पर झुका हुआ। सामने सुधी श्रोता। कुछ रंगकर्मी, कुछ जिम्मेदार व समझदार साहित्यकार, कुछ साहित्य अनुरागी, कुछ रंगप्रेमी। सबके मोबाइल साइलेंट मोड पर। सब सुनने को आतुर। सबकी निगाहें स्पॉट लाइट या मोमबत्ती के प्रकाश में घिरी टेबिल – कुर्सी पर। ऐसा साहित्यिक माहौल तो बमुश्किल ही देखने को मिलता है। जिस बीकानेर में इन दिनों अदब के दुकानदार छपने की होड़ में दनादन आयोजन करते फिर रहे हैं, जिसकी साहित्यिक उपादेयता को परखते भी नहीं। उस दौर में ऐसा माहौल देख लगता है कि सच में बीकानेर डॉ छगन मोहता, हरीश भादानी, डॉ नंदकिशोर आचार्य, यादवेंद्र शर्मा ‘ चन्द्र ‘, बुलाकी दास ‘ बावरा ‘, रामदेव आचार्य, मोहम्मद सदीक, अजीज आजाद, भवानी शंकर व्यास, सरल विशारद आदि की नगरी है। जिनकी परंपरा को आज भी कई रचनाकार आगे बढ़ा रहे हैं, भले ही दुकानदारों के बीच।

बीते रविवार को टेबिल के सामने कुर्सी पर बैठे थे अनिरुद्ध उमट। लाइट नहीं थी तो चार मोमबत्तियों के पूरे प्रकाश में उनका चेहरा साफ दिख रहा था। हिंदी के समर्थ कवि और कथाकार। जिनकी कहानी को किताबों में पढ़ा भर था। आज तो आज की कहानी और अनिरुद्ध उमट की जुबानी सुनने को मिल रही थी। सब श्रोता गम्भीर थे। अनिरुद्ध ने पहली कहानी पढ़ी ‘ दस्तक ‘। उत्तर आधुनिक कथा साहित्य की इस प्रतिनिधि कहानी में दस्तक दरअसल दरवाजे पर नहीं थी, एक अकेले व्यक्ति के मन व मष्तिष्क पर चिंतन की दस्तक थी। दस्तक के बहाने अकेलेपन के संत्रास, पीड़ा व यथार्थ को इस कहानी में उभारा गया था। गहरे चिंतन का प्रतिफल थी ये कहानी। सब अनिरुद्ध से उनकी जुबानी, खास शैली में उनकी कहानी सुनकर मंत्रमुग्ध थे।

दूसरी कहानी ‘ रिहर्सल ‘ पढ़ी उमट ने। ये कहानी भी गहरे दर्शन भाव की कहानी थी। जिंदगी की रिहर्सल ही तो करता है आदमी एकाकीपन में। गहरे अर्थ लिए संवाद दर्शन की एक सुखद यात्रा करा रहे थे हर श्रोता को। दोनों कहानियों का कलेवर नया, भाषा में नया प्रयोग व दर्शन की नई अनुभूतियां थी। उमट ने बिल्कुल पात्रों के अनुसार एक नाटक की तरह कहानियों की प्रस्तुति दी, जो अमिट छाप छोड़ गई। वाह। इस आयोजन के सूत्रधार वरिष्ठ रंगकर्मी अशोक जोशी ने सहजता से आयोजकों की तरफ से एक पौधा उमट को भेंट किया और कार्यक्रम समाप्त किया। इतनी सादगी, वाह। न प्रचार की चाह न खुद का शोरगुल, कमाल है। यादगार शाम। अनिरुद्ध उमट, अशोक जोशी, उपस्थित लायक श्रोता व ऊर्जा थियेटर सोसायटी की टीम का साधुवाद। बाजारवाद व खुद की मार्केटिंग से बचते हुए एक सार्थक पहल। देश का असली अदब ये जानकर बहुत खुश होगा।

डॉ आचार्य ने फिर बढ़ाया मान:

हिंदी के कवि, आलोचक, चिंतक डॉ नंदकिशोर आचार्य ने एक बार फिर अपने शहर बीकानेर का मान बढ़ाया है। उन्हें इस बार का ‘ भंवरमल्ल सिंधी स्मृति सम्मान ‘ अर्पित किया जायेगा। अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के गांधीधाम, गुजरात मे 26 से 29 दिसम्बर 2024 को आयोजित होने वाले 15वें द्विवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन ‘ अनंतम ‘ में डॉ आचार्य को ये सम्मान अर्पित होगा। गांधी दर्शन और शांति अहिंसा पर उनके विशिष्ट और मौलिक शोध पर उनको ये सम्मान दिया जा रहा है। इस विषय पर उन्होंने बड़ा काम किया है।

दरअसल अब सम्मान खुद ही डॉ आचार्य से सम्मानित होता प्रतीत होता है। डॉ आचार्य को हिंदी साहित्य, गांधी साहित्य पर अनगिनत सम्मान मिले हैं। हिंदी के इस कवि ने कविता को एक नई धारा दी है, जो कई अच्छे कवियों का मार्गदर्शन कर रही है। इनकी काव्य शैली अनूठी व अलहदा है, इस कारण हिंदी साहित्य में अलग पहचान है। आचार्य नाटककार भी है। इनके लिखे नाटक देश में अनेक स्थानों पर मंचित होते रहते हैं।

डॉ आचार्य बीकानेर की पहचान है और हर शहरवासी उनके सम्मान से गौरवान्वित होता है। आचार्य के इस सम्मान की घोषणा पर शहर के रचनाधर्मियों, रंगकर्मियों ने प्रसन्नता व्यक्त की है।

सुध ले लो सीएम साहब

राज्य में नई सरकार बने एक साल हो रहा है फिर भी इस शहर में स्थापित मातृभाषा की प्रदेश की एकमात्र ‘ राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ‘ ठप्प पड़ी है। इसमें कोई गतिविधि ही नहीं हो रही। पिछली सरकार ने डेढ़ साल के लिए अध्यक्ष बनाया तो उससे पिछली सरकार ने तो पांच साल में अध्यक्ष बनाया ही नहीं।

सुनो सीएम साहब। यदि मातृभाषा राजस्थानी की राजस्थान में ही कद्र नहीं होगी तो अन्य प्रदेश में तो होने से रही। मातृभाषा तो मां समान होती है, उसे उपेक्षित करना तो कर्त्तव्य से विमुख होना है। दुःख तो इस बात का है कि पिछली टर्म में जिनको पुरस्कार मिला, उनको बजट होने के बाद भी राशि भी नहीं भेजी जा रही। कोई काम ही नहीं हो रहा।

12 करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा राजस्थानी के प्रति मोह तो दिखाएं। इसकी अकादमी को गतिशील करें। भाषा को मान्यता के मकाम तक तो पहुंचाएं। ये सबके साथ आपका भी कर्त्तव्य है।


वजाहत व मेहता के कारण नकाब उतरे:

असगर वजाहत ने जनवादी लेखक संघ के पद को छोड़ा और नरेश मेहता ने प्रगतिशील लेखक संघ के पद को। दोनों के अपने अपने कारण, दोनों संगठनों के अपने अपने सिद्धांत। उन सब से परे एक काम अच्छा हुआ, इस बहाने कई चेहरों के नकाब उतर गये। उनके भी जो इस संगठन की भाषा जोर से बोलते थे मगर अबकी बार चुप रहे, उनके भी जो इन संगठनों के विपरीत भाषा बोलते थे जो इस बार दबे स्वर में ही बोले। केवल मुस्कुराए भर, मन में खुश हुए। कहीं हंसी व खुली बात उल्टी न पड़े, इस कारण चुप रहे। गजब है अदब की राजनीति भी।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।