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चेस चैम्पियन गुकेश की सफलता भारत को स्पोर्ट्स कैपिटल बनाने की राह प्रशस्त करेगी

  • गुकेश के माता -पिता की सोच भी देश के पैरेंट्स के लिए है अनुकरणीय

RNE Network

क्रिकेट के लिए अतिरेक का मोह रखने वाले देश में शतरंज की खबर अखबारों के फ्रंट पेज पर आना सुखद अहसास उस युवान पीढ़ी को दिलाता है जो शतरंज को निकट भविष्य में पैशन के साथ करियर बनाना चाहते है। अखबारों -टीवी चैनलों के साथ सोशल मीडिया में सबसे युवा वर्ल्ड चेस चैंपियन डोम्माराजू गुकेश की वायरल रील्स नव बदलाव का संकेत दे रही है।

डी गुकेश की कामयाबी इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक के मध्य में आई है। आज का दौर तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स का है। AI के इरा में शतरंज को सेंटर स्टेज मिल रहा है। डी गुकेश को ख़िताबी जीत पर लगभग पौने 12 करोड़ रुपए मिले है, गुकेश की तमिलनाडु स्थित ख़्यातनाम स्कूल वेल्लामल विद्यालय गुकेश को लग्ज़री कार मर्सीडीज़ बेंज गिफ्ट करेगी। तमिलनाडु सरकार चेस विश्वविजेता को 5 करोड़ का ईनाम देगी और भी पुरस्कारो की घोषणा होना संभावित है। इससे इतर एड वर्ल्ड डी गुकेश की लोकप्रियता और अचीवमेंट को कैश करना चाहेगा। एक साल के भीतर ही डी गुकेश की ब्रांड इक्विटी 30 करोड़ के पार जाने का अनुमान है। इतना ही धन और ग्लेमर आईपीएल खेलने से मिलता है,तो क्यों न चेस को भारत के नौनिहाल करियर बनाने के लिए विचार करें।

माना खेल जुनून से खेला जाता है लेकिन आर्थिक सुरक्षा के बिना कोई खेल युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय नहीं हो सकता है। आज भी भारत में क्रिकेट के अलावा दूसरे स्पोर्ट्स इसलिए ही खेले जाते है जिससे आगे जाकर या तो स्पोर्ट्स कोटे में नौकरी मिल जाए और या फिर खेल मेडल की वजह से सरकारी पद की कोई सौगात मिल जाए।


इंटरनेशनल चेस का इतिहास 138 साल पुराना है और डी गुकेश विश्वनाथन आनंद के बाद चेस वर्ल्ड चैम्पियन बनने वाले दूसरे भारतीय है। गुकेश के कारण शतरंज जैसे इनडोर गेम के लिए भी आज की यूथ में उत्सुकता बढ़ेगी,सोशल और इकोनॉमिक सिक्योरिटी के कारण हजारों युवा चेस को और भी गंभीरता से लेने का प्रण करेंगे। क्रिकेट के अलावा दूसरे स्पोर्ट्स से हमें रोल मॉडल और आइकॉन मिलेंगे, इसी से भारत आगे जाकर स्पोर्ट्स कैपिटल के रूप में पहचान बनाने में कामयाब हो पाएगा। गुकेश के 14वें राउंड तक का धैर्य देश की नव पौध को अनकही प्रेरणा देगा। तेरहवीं बाजी तक बराबरी के मुकाबले में गुकेश ने आखिरी 14वें राउंड में अपनी सांसो को थामकर धीरज और समझदारी का परिचय देकर बाजी अपने नाम कर ली, यही आज के भारत की युवा पीढ़ी का वो X फेक्टर है जिस कारण से भारतीय ग्लोबली हर फील्ड में अपना लोहा मनवा रहे है।


गुकेश की सक्सेस के पीछे उनके माता -पिता की पैरेंटिंग शैली को भी देश के लाखो -करोड़ो पैरेंट्स को समझना चाहिए। गुकेश के माता और पिता दोनों डॉक्टर है, फिर भी दोनों ने बेटे को अपनी तरह डॉक्टर बनाने के लिए दबाव नहीं डाला। गुकेश के टैलेंट और रूचि का मान रखकर उसके सपनों को जीने का साहस दिखाया। लोगबाग और फैमिली मेंबर क्या कहेंगे, इस विचार को परे रखकर गुकेश के पैरेंट्स ने सिर्फ अपने बेटे की ख़ुशी और जिद पर भरोसा किया।हरेक को गुकेश जितनी विराट सफलता लड़कपन में मिल जाए ऐसा संभव नहीं हो सकता फिर भी माता -पिता को जितना हो सके अपने बच्चे के ख़्वाब को जीवंत रखने का भरसक प्रयास तो करना ही चाहिए।



मनोज रतन व्यास के बारे में :

मनोज रतन व्यास को समान्यतया फिल्म समीक्षक, लेखक, कवि के रूप में जाना जाता है। कम लोग जानते है कि बिजनेस मैनेजमेंट के महारथी और मीडिया में प्रसून जोशी के साथ एडवरटाइजमेंट क्रिएटीविटी टीम के सदस्य रहे मनोज गहरी दृष्टि वाले खेल समीक्षक हैं। rudranewsexpress.in के पाठक Sunday Sports Talk में उनकी इसी “फील्ड से फिनिश लाइन” तक वाली समीक्षकीय दृष्टि से हो रहे हैं रूबरू।