ओपीएस को कब तक टालेगी सरकार, विरोध की जमीन हो रही है तैयार
RNE Network
राज्य के कर्मचारी वर्ग को नई सरकार से दो बातों पर शीघ्र निर्णय की अपेक्षा थी। पहला निर्णय वो तबादलों पर चाहता था और दूसरा निर्णय वो अपनी ओल्ड पेंशन स्कीम ‘ ओपीएस ‘ पर अपने पक्ष में चाहता था। सरकार का एक साल पूरा हो गया मगर दोनों ही बातों पर कर्मचारी वर्ग की उम्मीद पूरी नहीं हुई। दो दिन पहले हुई कैबिनेट की बैठक में इन पर निर्णय आने की उम्मीद थी, मगर ऐसा नहीं हुआ। तबादलों पर चर्चा हुई और उनको अगले महीने के लिए टाल दिया गया। हालांकि इस मुद्दे पर उसकी उम्मीद अब भी कायम है। मगर ओपीएस पर सरकार की चुप्पी अब उसे व्यग्र कर रही है।
कर्मचारी जगत ने इन दोनों मुद्धों पर अब तक धैर्य रखा हुआ था। उसे भान था कि सरकार बनते ही लोकसभा के चुनाव आ गये, इस हालत में सरकार कोई निर्णय कर ही नहीं सकती थी। उसके निर्णय का चुनाव पर असर पड़ता। कांग्रेस ने ओपीएस का मुद्दा लोकसभा चुनाव प्रचार में उठाया भी, उसे लाभ भी मिला। भाजपा को इस बार के लोकसभा चुनाव में 25 में से 11 सीटें गंवानी पड़ी। जबकि पिछले दो चुनाव से वो सभी 25 सीटें जीतती आ रही थी। कर्मचारियों की नाराजगी का कुछ असर तो उस चुनाव में पड़ा ही।
कर्मचारियों को लगा कि अब सरकार ओपीएस पर शीघ्र फैसला कर लेगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। सत्ता व विपक्ष के लगभग 10 विधायकों ने इस मसले पर विधानसभा में सवाल भी लगाये हुए हैं, मगर उनके भी जवाब नहीं आये। सरकार की तरफ से कहा गया कि इस विषय में केंद्र सरकार से निर्देश मांगे गए हैं, वो मिलते ही निर्णय कर लिया जायेगा। केंद्र सरकार ने पेंशन की एक योजना यूपीएस की घोषणा कर दी। जिसे महाराष्ट्र व उत्तराखंड ने लागू भी कर दिया। राज्य सरकार ने नहीं किया। उसके पास रिपोर्ट थी कि राज्य का कर्मचारी ओपीएस से कम कुछ लेने को तैयार ही नहीं। इस पर वो लामबंद भी हो चुका है। इस कारण यूपीएस को लागू करने का जोखिम नहीं उठाया गया। सिर पर 7 विधानसभा सीटों के उप चुनाव भी थे तो सरकार कर्मचारियों के गुस्से का सामना करना नहीं चाहती थी। उसने इस मुद्दे को एक बार फिर से टाल दिया।
पिछली गहलोत सरकार ने ओपीएस की गारंटी का कानून देने का वादा कर कर्मचारियों को राह दिखाई हुई थी। वही अब नई सरकार के गले की हड्डी बन रहा है। वो किसी भी तरह का निर्णय करने से हिचक रही है। दूसरी तरफ सरकार की देरी ने विरोध की जमीन को तैयार कर दिया है। ओपीएस पर सभी कर्मचारी संगठन एकमत है और इसे न देने पर आंदोलन करने के लिए भी तैयार है। सभी संगठनों के सम्मेलनों, बैठकों में इसके प्रस्ताव पारित हो रहे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि वे ओपीएस से कम पर राजी नहीं होंगे। राज्य सरकार ने डीए, मकान भत्ता आदि की काफी रियायतें कर्मचारियों को दी है। मगर कर्मचारी ओपीएस के मुद्दे पर कोई दूसरी व्यवस्था स्वीकार करने को तैयार नहीं।
कर्मचारी संगठन निरंतर इस मुद्दे को लेकर संपर्क में है और इस बात के लिए तैयार है कि यदि सरकार ओपीएस के विरुद्ध निर्णय करे तो आंदोलन किया जाये। सरकार की इस मुद्दे पर देरी विरोध की जमीन तैयार करने का ही काम कर रही है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।