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शिक्षा में साहित्य जरूरी.. क्योंकि साहित्य जीना सिखाता है

शिक्षा में साहित्य बनाम साहित्य में शिक्षा

साहित्य क्या है?:

‘सहितस्थ भाव साहित्य’ अर्थात जिसमें सभी के हित का भाव हो, वह साहित्य है। सहित- शब्द और अर्थ का स्वभाव संयोजन है। कुल मिलाकर साहित्य शब्द का अर्थ का साथ- साथ रहना। सहित शब्द का दूसरा अर्थ हित के साथ भी है। दोनों अर्थों के आधार पर कहा गया है कि शब्द-अर्थ से युक्त हित करने वाली अर्थात् शिवत्व की भावना से ओतप्रोत, सबके लिए कल्याणकारी रचना ही साहित्य है। इस प्रकार ऐसी कोई भी रचना जो रूचिपूर्ण, सरस तथा हृदय स्पर्शी हो और किसी प्रकार से अशोभनीय, अमानवीय तथा अहितकर न हो, साहित्य की श्रेणी में आती हैं।

दरअस्ल साहित्य किसी भी भाषा में लिखित और मौखिक वह स्वरूप कहा जा सकता है जिसमें जीवन की आलोचनात्मक व्याख्या है। यह वह कला है जो लोक जीवन में मंगल का विधान करती है तथा सौंदर्य-चेतना को विकसित करती है। कुल मिलाकर साहित्य मन को शांति और शीतलता प्रदान करता है। जो जीवन कठोर वास्तविकता से परिचय कराता है। यह जीवन में प्रत्येक रस का आनंद प्रदान करता है।

शिक्षा और साहित्य में संबंधः

शिक्षा के संकुचित उद्देश्य अर्थात रोजगार प्राप्ति से इतर देखे तो पाएंगे कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास से है। उसका विकास इस प्रकार हो कि वह समस्याओं के प्रति सजग रहते हुए उसका तर्कपूर्ण समाधान के साथ जीवजगत में सभी के साथ संवेदनशील व्यवहार करते हुए जीवन की समझ सके।

शिक्षा का समाज के लिहाज से उद्देश्य समझे तो एक ज्ञानवान और तर्कशील समाज का निर्माण करना है। दरअस्ल शिक्षा को हमने स्कूल तक सीमित कर दिया है जबकि शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।

अतः हम कह सकते हैं कि शिक्षा के माध्यम से हम अपने जीवन, खुद को और अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझने का उपक्रम करते हैं। इसी तरह साहित्य मनुष्य में अपनी पहचान, जीवन मूल्यों, कल्पना और सहानुभूति की अवधारणाओं को विकसित करता है। अराजक होती आज की दुनिया में, ये कौशल बहुत मायने रखते हैं। प्रत्येक भाषा का साहित्य उस संस्कृति और परिवेश को हमारे समक्ष रखता है। इस प्रकार साहित्य हमें दुनिया, हमारी अपनी मान्यताओं और मूल्यों और दूसरों की मान्यताओं और मूल्यों के बारे में बताता है।

साहित्य को हमने केवल विषय के रूप में रखते हुए साहित्य का अध्ययन विषय विशेष तक सीमित कर दिया है। जबकि हम देखें तो शिक्षा और साहित्य दोनों हमें अपने जीवन, खुद को और अपने आस-पास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते है। इसलिए कहना गलत नहीं होगा साहित्य सभी के लिए है, चाहे आपका भविष्य का विषय या कैरियर कुछ भी हो। साहित्य का अध्ययन हमारे दिमाग को रचनात्मकता की ओर प्रेरित करता है। यह जीवन में नवाचार और परिवर्तन को प्रेरित करता है। साहित्य द्वारा हम भाषा को एक व्यावहारिक, रोजमर्रा के कार्यों के लिए बेहतर ढंग से करने के लिए प्रेरित करता है।

यह कहना गलत न होगा कि विषय या कैरियर कुछ भी हो। साहित्य अध्ययन की आवश्यकता शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो सकती है।

विद्यालयों में साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है:

विद्यार्थियों में साहित्यक अभिरुचि उत्पन्न करने एवं उनमें नेतृत्व की भावना विकसित करने तथा विद्यालय में विभिन्न साहित्यक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन हेतु ‘साहित्यक क्लब का गठन किया जा सकता है। जिससे विद्यार्थियों में साहित्य और संस्कृति के प्रति रुचि जागृत करने के लिए विद्यालयों में विज्ञान क्लब, पर्यावरण क्लब इत्यादि की तरह साहित्यक क्लब का संचालन किया जा सकता है।

साहित्यक क्लब के लक्ष्य क्या होने चाहिएः-

साहित्यक क्लब के निम्नांकित लक्ष्य रखे जा सकते हैः-

1. विद्यार्थियों में आत्मविश्वास विकसित करना

2. सामान्य ज्ञान के आधार को विकसित करना।

3. समूह में मिलकर काम करने के कौशल को विकसित करेगा।

4. सुनने, बोलने, समझने और लिखने के कौशल को विकसित करना।

5. नेतृत्व के गुण को विकसित करना।

6. तार्किक सोच और चिंतन को विकसित करने में मदद करना।

7. विभिन्न मुद्दों की आलोचनात्मक व्याख्या करना।

8. यह उत्कृष्ट संप्रेषण कौशल विकसित करना।

9. विद्यार्थियों की प्रत्युत्पन्नमति को विकसित करना।

10. विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील करना।

11. विभिन्न विषयों के स्वतंत्र पठन के प्रति अनुराग उत्पन्न करना।

किन उद्देश्यों की प्राप्ति साहित्यक क्लब के माध्यम से की जा सकती है:- साहित्यक क्लब के गठन से निम्नांकित उद्देश्य हो सकते हैः-

1. विद्यार्थी विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण करना सीखते हुए उनके समाधान तक पहुंचने की क्षमता विकसित करना।

2. विद्यार्थी समूह में कार्य करते हुए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम आने वाले “संगठन कौशल” और नेतृत्व क्षमता विकसित करना।

3. विद्यार्थियों को समूह अथवा समुदाय के समक्ष अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सक्षम होना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि उसके पास ऐसे विचार हैं जिन्हें वह दूसरों को स्वीकार कराना चाहते हैं, तो इसके लिए स्पष्ट और तार्किक रूप से अपने आप को अभिव्यक्त किया जाना जरूरी है। साहित्यक क्लब का उद्देश्य बेहतर और तार्किक अभिव्यक्ति के कौशल को और अधिक पुष्ट करना।

4. साहित्यक क्लब विद्यार्थियों को पर्यावरणीय सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और नैतिक मुद्दों के चर्चा करने का अवसर प्रदान करते हुए। प्रजातांत्रिक मूल्यों के विकास के साथ उन्हें वैश्विक परिस्थितियों को समझते हुए भावी जीवन की तैयारी के लिए प्रेरित करना।

5. साहित्यक क्लब के अन्तर्गत की जाने वाली गतिविधियां विद्यार्थियों में आत्मविश्वास पैदा करने का कार्य करते हुए उन्हें भावी जीवन के लिए तैयार करना।

6. साहित्यक क्लब विद्यार्थियो को विभिन्न पर्यावरणीय, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और नैतिक मुद्दों जागरूकता बढ़ाने के लिए और पढ़ने और स्वतंत्र शोध जैसी सकारात्मक आदतों को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
7. विद्यार्थी लिंग विभेद, जाति विभेद, प्रान्तवाद, क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों पर तार्किक ढंग से सोचते हुए उक्त के अलावा अन्य कुप्रथाओं के बारे में संवेदनशील करना।

साहित्यक क्लब के तहत क्या-क्या गतिविधियां करवाई जा सकती हैं:

1. पुस्तक चर्चा- इस गतिविधि के अन्तर्गत विद्यार्थियों को विद्यालय पुस्तकालय से अलग-अलग प्रकार की पुस्तकें इश्यू की जा सकती हैं। उन्हें समय दिया जाकर निर्धारित दिवस को वे उस किताब पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

2. लेखन कार्यशालाः शिक्षकों अथवा विद्यालय के आस-पास के साहित्यकारों की मदद से लेखन कार्यशाला आयोजित कर विद्यार्थियों को कहानी, कविता, आलेख, यात्रा वृतांत, डायरी इत्यादि लिखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

3. सर्वेक्षण व शोध कार्य विद्यार्थियों को आस-पास के क्षेत्रों के विभिन्न स्थितियों बाबत् सर्वेक्षण एवं विभिन्न प्रकार के शोध कार्य आयु व कक्षा वर्ग के अनुसार विषय आवंटित करना तथा उस सर्वेक्षण व शोध को अन्य विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करना।
4. दीवार पत्रिका का प्रकाशनः साहित्यक क्लब अपनी सुविधा के हिसाब से मासिक दीवार पत्रिका का प्रकाशन कर सकता है। जिसके अलग-अलग विषय वार विशेषांक प्रकाषित किए जा सकते हैं।

5. विद्यालय समाचार पत्र प्रकाशनः साप्ताहिक या पाक्षिक हस्तलिखित समाचार पत्र का प्रकाशन किया जा सकता है। इसमें विद्यालय से संबंधित विभिन्न समाचार, आलेख, साक्षात्कार इत्यादि विषय वस्तु के रूप में रखे जा सकते हैं।

6. विद्यालय पत्रिका प्रकाशनः-साहित्यक क्लब अन्तर्गत वर्ष में एक बार विद्यालय पत्रिका निकाली जा सकती है। विद्यालय अपने संसाधनों व व्यय के मध्य नजर इसे यह हस्तलिखित, प्रिटेंट, पीडीएफ या अन्य फार्मेंट में निकाली जा सकती है।
7. क्विज/प्रश्नोत्तरीः माह में एक बार किसी विशेष विषय यथा-साहित्य, विज्ञान, भूगोल, इतिहास इत्यादि पर आयोजित की जा सकती है। इन्हें कक्षावार या आयुवर्ग वार किया जा सकता है।

8. भाषण प्रतियोगिताः किसी समसामयिक विषय पर भाषण प्रतियोगिता रखी जा सकती है। उक्त प्रतियोगिता कक्षा वर्ग या आयु अनुसार आयोजित की जा सकती है। तद्‌नुसार ही अलग-अलग विषय का निर्धारण भी किया जाना उचित होगा।

9. वाद-विवादः समसामयिक विषयों में पक्ष-विपक्ष पर बोलने के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिताएं भी करवाई जा सकती हैं।

10. निबन्ध लेखन प्रतियोगिताः- किसी समसामयिक विषय पर निबन्ध लेखन करवाया जा सकता है।

ध्यान रखने योग्य बात यह है कि उक्त समस्त गतिविधियों में विद्यार्थियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के अवसर प्रदान किये जाने आवश्यक है। ताकि विद्यार्थियों में स्वतंत्र रूप से व समूह में कार्य करने की क्षमता विकसित हो सके।

इस प्रकार साहित्यक क्लब के गठन से विद्यार्थियों की साहित्य के प्रति रुचि बढ़ेगी जिससे वे सामान्य व्यावहारिक कौशल विकसित कर सकेंगे जो कि उनके द्वारा भविष्य में चुने जाने वाले करियर के लिए उपयुक्त होंगे। लेखन, शोध और चर्चा से प्रेरक तर्क विकसित करने, विश्लेषण करने और स्पष्ट तरीके से अपनी बात रखने के कौशल विकसित करते हुए समूह में कार्य करने व नेतृत्व जैसे उच्च कोटि के कौशलों को विकसित कर सकेंगे।



डा.प्रमोद चमोली के बारे में:

शिक्षण में नवाचार के कारण राजस्थान में अपनी खास पहचान रखने वाले डा.प्रमोद चमोली राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत रहे हैं। राजस्थान शिक्षा विभाग की प्राथमिक कक्षाओं में सतत शिक्षा कार्यक्रम के लिये स्तर ‘ए’ के पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकों के लेखक समूह के सदस्य रहे हैं। विज्ञान, पत्रिका एवं जनसंचार में डिप्लोमा कर चुके डा.चमोली ने हिन्दी साहित्य व शिक्षा में स्नातकोत्तर होने के साथ ही हिन्दी साहित्य में पीएचडी कर चुके हैं।
डॉ. चमोली का बड़ा साहित्यिक योगदान भी है। ‘सेल्फियाएं हुए हैं सब’ व्यंग्य संग्रह और ‘चेतु की चेतना’ बालकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके है। डायरी विधा पर “कुछ पढ़ते, कुछ लिखते” पुस्तक आ चुकी है। जवाहर कला केन्द्र की लघु नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम रहे हैं। बीकानेर नगर विकास न्यास के मैथिलीशरण गुप्त साहित्य सम्मान कई पुरस्कार-सम्मान उन्हें मिले हैं। rudranewsexpress.in के आग्रह पर सप्ताह में एक दिन शिक्षा और शिक्षकों पर केंद्रित व्यावहारिक, अनुसंधानपरक और तथ्यात्मक आलेख लिखने की जिम्मेदारी उठाई है।


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