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संविदाकर्मियों को बजट से आस, क्या सरकार उनको करेगी नियमित, या फिर रहेंगे खाली हाथ

RNE Special.

राज्य विधानसभा का बजट सत्र 31 जनवरी से आरम्भ हो रहा है। ये सरकार का बजट सत्र है। भजनलाल सरकार इस बार अपने टर्म का दूसरा बजट पेश करेगी। इस बजट से पहले सीएम ने एक पोर्टल के जरिये आम लोगों से भी बजट पर उनके सुझाव मांगे ताकि जन अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर बजट को तैयार किया जाये। इसके अलावा अलग अलग वर्गों जैसे युवा, व्यापारी, किसान, महिलाओं, कर्मचारियों आदि से भी खुद सीएम चर्चा कर रहे हैं ताकि उनकी अपेक्षाओं पर भी बजट में काम हो सके। अधिकारियों को भी इस बार निर्देश दिया गया है कि वे भी संभाग स्तर पर बजट के लिए लोगों से सुझाव लें और सरकार तक पहुंचे और उनका उपयोग हो सके।

जनता से बजट के लिए जो सुझाव आये उनकी संख्या 1.32 लाख से भी ज्यादा थी। जनता की यह जागरूकता स्तुत्य है। बजट को लेकर सरकार सुझाव मांगे अच्छी बात, लोग उसमें सक्रिय भागीदारी निभाये ये और भी अच्छी बात। जनता की तरफ से जो सुझाव आये वो भिन्न तरह के थे। जैसे रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, नई भर्तियों में पारदर्शिता आदि। एक सुझाव जो सबसे अधिक संख्या में आया वो था संविदाकर्मियों को नियमित करने का। इससे हजारों परिवार जुड़े हैं, जाहिर है इस पर ज्यादा ध्यान रहना ही था।

संविदाकर्मियों पर जोर इसलिए:

जब राज्य में पिछली से पिछली बार वसुंधरा राजे की सरकार थी तब से ये मुद्दा जीवंत है। क्योंकि उस समय भाजपा ने संविदाकर्मियों को नियमित करने का चुनावी वादा किया और ये बात अपने घोषणा पत्र में शामिल की। सरकार बन गयी तो संविदाकर्मियों ने सरकार के सामने अपनी मांग रखी। सरकार ने इस मसले पर मंत्रियों की एक समिति भी बना दी। समिति की बैठकें होती रही। निर्णय नहीं हुआ। सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया। चुनाव आ गये। चुनाव में कांग्रेस ने नियमित करने का वादा कर लिया। वो भी कार्यकाल पूरा होने तक पूरा नहीं हुआ। वेतन बढ़ाकर संविदाकर्मियों को खुश करने की कोशिश की जाती रही। अब फिर भाजपा की सरकार आ गई, संविदाकर्मियों की मांग वहीं की वहीं है।

एक काम, अलग अलग वेतन:

नियमित राज्य कर्मचारी व संविदाकर्मी एक जैसा काम करते हैं। एक जैसी उनकी जिम्मेदारी है फिर भी वेतन अलग अलग है। ये भेदभाव माना जा रहा है। संविदाकर्मियों के अभाव में सरकारी काम भी पूरा होना असंभव है। इनकी जरूरत सरकार महसूस कर रही है। फिर इनको नियमित क्यों नहीं किया जाता।

एक काम होने के बाद भी दोनों के वेतन में भेदभाव क्यों है। जाहिर है इससे संविदाकर्मी के मन में हीन भावना भी आना स्वाभाविक है। आती भी है ये भावना। उसी भावना को वे गुस्से के रूप में अभिव्यक्त भी करते हैं, मगर उनकी सुनवाई नहीं हो पाती।

परिवारों को बड़ी आस:

संविदाकर्मियों के साथ उनके परिवारों को इस बात की उम्मीद है कि उनका बेटा, भाई, पति, पिता एक दिन तो नियमित होगा और फिर उसे अच्छा वेतन मिलेगा। वे भी पूरे मनोयोग से सरकार से प्रार्थना की गुहार करते है। अनेक बार तो इन संविदाकर्मियों के परिवारों ने भी उनको नियमित करने के लिए अनेक जिलों में धरने प्रदर्शन किए हैं। सरकारें फिर भी मौन रही है।

इस बजट से आस:

इस बजट से संविदाकर्मियों को आस है कि सरकार उनको नियमित करेगी। कर्मचारी व कर्मचारी के बीच के भेदभाव को समाप्त करेगी। क्योंकि संविदाकर्मी के रूप में काम करते हुए उन्हें वर्षों हो गए हैं। इस सरकार में इस मसले पर कुछ सुगबुगाहट सुनने के बाद ही संविदाकर्मियों की आस जागी है। अब ये तो वक़्त बतायेगा कि इनकी आस पूरी होती है इस बजट से या निराशा ही हाथ लगती है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।