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कोचिंग संस्थानों के लिए कानून बनाना पर्याप्त नहीं, नकेल कसनी जरूरी, कानून की सख्ती लाजिमी

RNE Special.

कोचिंग कर रहे छात्रों की लगातार हो रही आत्महत्याओं ने न केवल अभिभावकों को विचलित किया है, अपितु अब तो आम आदमी को भी सोचने के लिए विवश कर दिया है। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा में भेजने के लिए माता – पिता पेट काटकर उसे कोचिंग के लिए भेजते हैं। कोटा, सीकर, जोधपुर, झुंझनु सहित अनेक जगहों पर कोचिंग संस्थानों का बाहुल्य है। बीकानेर जैसे छोटे शहर में भी कई कोचिंग सेंटर हो गए हैं।

जितने कोचिंग सेंटर बढ़े हैं उतनी ही आत्महत्याओं की घटनाएं भी बढ़ी है। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता। अधिकतर आत्महत्याओं में कारण तनाव, दबाव ही सामने आया है। जरा रुककर सोचिए, जिस परिवार का युवा व युवती जाते हैं, उस परिवार पर क्या गुजरती होगी। उसके सपने ही नहीं टूटते, पूरा परिवार बिखर जाता है। जब भी कोई कोचिंग का छात्र या छात्रा, आत्महत्या करते हैं तो खूब गुस्सा उभरता है। सरकार हर बार ये कहकर मामला शांत करती है कि इस विषय में कठोर कानून लाया जायेगा। कानून बनता भी है, मगर असर तो सिफर ही रहता है।

हाईकोर्ट भी चिंतित:

कोचिंग छात्रों की आत्महत्या को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट भी चिंतित है। उसने 2016 में स्वप्रेरणा से एक याचिका स्वीकारी और सरकार से जवाब मांगा। हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार अगले ही विधानसभा सत्र में कोचिंग संस्थानों के संचालन को लेकर एक विधेयक लायेगी। हर बार सरकारों का इसी तरह जवाब होता है और मामला शांत हो जाता है।

कानून तो पहले से है:

आत्महत्याओं की घटनाएं नई नहीं है, अरसे से हो रही है। जनता के गुस्से को शांत करने के लिए सरकारों ने दिखने में कठोर कानून भी बनाये हैं। इन कानूनों को यदि प्रशासन व पुलिस सही तरीके से लागू करवा लें कोचिंग संस्थानों से तो तनाव व दबाव छात्रों पर आ ही नहीं सकता।

मगर इन कानूनों के रहते हुए भी ये घटनाएं थम नहीं रही। उससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि कानून सही तरीके से लागू नहीं हो रहे। जब तक कोचिंग संस्थानों की नकेल नहीं कसी जाएगी तब तक वे कानून के अनुसार प्रावधान करेंगे ही नहीं। पुलिस व प्रशासन को कानून लागू कराने के लिए संख्त रवैया अपनाना पड़ेगा। वो अपनाया क्यों नहीं जाता, कौन रोकता है, ये बड़ा सवाल है। जिस का जवाब अब अभिभावकों के साथ जनता भी जानने को उत्सुक है। उसे मूल दोषी की जानकारी चाहिए।

दोहरा नामांकन:

अनेक कोचिंग संस्थान में पढ़ रहे छात्र छात्राएं शहर के किसी अन्य शिक्षण संस्थान में भी नामांकित होते हैं। इस तरह का काम अवैधानिक है, फिर धड़ल्ले से हो कैसे रहा है। सरकार या प्रशासन को क्या इसकी खबर नहीं। शिक्षा विभाग व उसके अधिकारी इस मामले में आंखें मूंदकर क्यों रखे हुए हैं। ये भी बड़ा सवाल है।

भौतिक निरीक्षण नियमित क्यों नहीं:

सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए जो कानून बनाये हुए हैं उनमें संस्थान की तरफ से दी जाने वाली सुविधाओं का उल्लेख है। उनके परिवेश, वातावरण व भवन के भी मानदंड तय है। इन सबका बारबार प्रशासन भौतिक सत्यापन क्यों नहीं करता। करे तो कई कमियां तो स्वतः दूर हो जायेगी।

संवेदनशील होना होगा सबको:

प्रशासन व शिक्षा विभाग के अधिकारियों को इस मामले में संवेदनशील होना पड़ेगा। अपनी जिम्मेवारी को सामाजिक दायित्त्व समझ पूरा करना होगा। तभी कोचिंग संस्थानों पर नकेल डाली जा सकेगी। युवाओं की आत्महत्याएं रुकेगी।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।