
कोलकत्ता में बंगाली में होगी नाम – पट्टिका, राजस्थानी कब जागेंगे, मान्यता को तरस रही राजस्थानी
अभिषेक आचार्य

मातृभाषा की अस्मिता के जिस मुद्दे को तमिलनाडु की सरकार ने अपने लोगों की जनभावना के अनुरूप खड़ा किया था अब वो देश के हर राज्य का मुद्दा बनता जा रहा है। हर राज्य की सरकार अपने राज्य के लोगों की मातृभाषा के पक्ष में खड़ी हो रही है। उसे इस बात का डर है कि यदि वो ऐसा नहीं करेगी तो जनता उससे नाराज हो जाएगी और सरकार को वोट मिलने में परेशानी होगी। इस कारण हर राज्य के मुखिया के स्वर मातृभाषा के लिए बदलने लग गए हैं।
तमिलनाडु ने अपनी मातृभाषा का मुद्दा खड़ा किया तो सब राज्य जागे। उनके तुरंत बाद आंध्रप्रदेश के सीएम को भी विधानसभा में अपनी मातृभाषा के पक्ष में बोलना पड़ा। तेलंगाना की जनता का दबाव बढ़ा तो वहां के सीएम को भी अपनी मातृभाषा के पक्ष में मजबूती से खड़ा होना पड़ा।कर्नाटक तो पहले से ही अपनी भाषा का पक्षधर रहा, उसने फिर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। यहां तक कि मातृभाषा को लेकर उसका महाराष्ट्र से विवाद हो गया और परिवहन की बसे चलना बंद हो गई। महाराष्ट्र कहां पीछे रहने वाला था, उसने भी अपनी मातृभाषा को लेकर कर्नाटक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। राज ठाकरे ने तो बैंकों को साफ चेतावनी दे दी कि त्रिभाषा फार्मूले के अनुसार बैंक मराठी में भी काम करे, यदि नहीं करेंगे तो आंदोलन किया जायेगा।
अब असम सरकार भी बोल गई:
मातृभाषा की अस्मिता के लिए चल रहे इस अभियान के बीच असम सरकार ने राज्य में सरकारी कार्य के लिए असमिया को अनिवार्य आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया है।राज्य के सीएम हेमंत विश्व सरमा ने कल इस आशय की घोषणा की। यह आदेश 15 अप्रैल से लागू कर दिया गया है। बराक घाटी के 3 जिलों में बंगाली और बोडो भाषा का उपयोग होगा, क्योंकि वहां के लोगों की मातृभाषा यही है।
कोलकाता नगर निगम भी पीछे नहीं:
बंगाली भाषा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से कोलकाता नगर निगम ने सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए बंगाली में नाम पट्टिका प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया है।
कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हकीम ने कहा कि उद्देश्य व्यवसाइयों को प्रतिबंधित करना नहीं बल्कि राज्य की भाषाई पहचान सार्वजनिक व वाणिज्यिक क्षेत्रों में बनाए रखना है।कब जागेगी राजस्थान की सरकार:
राजस्थानी बोलने वाले 12 करोड़ से अधिक लोगों का यही सवाल है कि इस कड़ी में असम, बंगाल, तमिलनाडू, आंध्रा, कर्नाटक, तेलंगाना की तर्ज पर राजस्थान सरकार कब जागेगी। वो कब अपने राजस्थानियों की अस्मिता को पहचान घोषणा करेगी। आखिर सरकार चलाने वाले सभी लोग भी तो राजस्थानी है, उनकी भी मातृभाषा यही है। ये बात वर्तमान नहीं पहले की सरकार व सरकारों पर भी लागू होती है।
आम राजस्थानी के मन में यही सवाल है कि क्या राज्य के 25 लोकसभा सदस्यों, 10 राज्यसभा सदस्यों व 200 विधायकों को अपनी मातृभाषा से प्रेम नहीं ? क्या उनको अपनी जनता की भावना का पता नहीं? यदि अभी मातृभाषा के मुद्दे पर पिछड़ गए और अन्य राज्यो की तरह निर्णय नहीं किया तो समय उनको कभी माफ नहीं करेगा।