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विपक्ष की भूमिका निभाने में अब तक सफल नहीं माना जा सकता कांग्रेस को, संगठन के स्तर पर पहले तालमेल की जरूरत होगी

  • अभी से नये सीमांकन के अनुसार उम्मीदवारों पर सर्वे जरूरी
  • नेताओं को दूरियां मिटानी होगी

अभिषेक आचार्य

RNE Special.

स्थानीय सरकार यानी नगर निगम के चुनावों की तारीख अभी तय नहीं है, मगर माना जा रहा है कि इस साल के अंत मे या नये साल की शुरुआत में इनके होने की प्रबल संभावना है। राजनीति रणनीति के नजरिये से देखा जाये तो ये कोई अधिक समय नहीं है।

अभी तो भाजपा सरकार ने वार्डो का सीमांकन नहीं किया है, मगर उसके प्रस्ताव तैयार हो गए है। इन प्रस्तावों में बीकानेर के भाजपा नेताओं की भूमिका रही है। उन्होंने सीमांकन के प्रस्ताव काफी हद तक पार्टी की जीत – हार के समीकरणों को देखकर बनवाए है। बाद में प्रशासन ने सबसे आपत्तियां मांगी। उस समय कांग्रेस नीतिगत रूप से कोई तैयारी किये ही कुछ आपत्तियां दे आई। अधिकारियों ने उसका क्या किया, ये किसी ने नहीं जाना। उसका प्रमाण ये है कि विरोध के लिए कांग्रेस मैदान में उतरी ही नहीं। जबकि पंचायतों के सीमांकन के विरोध में देहात अध्यक्ष बिसनाराम सियाग, पूर्व मंत्री भंवर सिंह भाटी, पूर्व मंत्री गोविंद मेघवाल आदि उतरे। इससे लगता है शहर में पार्टी ने इस पर ढंग से वर्किंग नहीं की।

संगठन पर असमंजस बड़ी वजह

कांग्रेस के संगठन को लेकर जो असमंजस है उसका बड़ा असर पड़ रहा है। दरअसल शहर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल गहलोत का कार्यकाल पूरा हो चुका, वे प्रदेश को नया अध्यक्ष बनाने के लिए भी कह चुके। पीसीसी की लेटलतीफी के कारण गहलोत ही संगठन नाव खे रहे है। कई निष्क्रिय पदाधिकारियों को हटाने का काम भी पीसीसी नहीं कर पाई है। इस कारण संगठन जिस स्तर पर सक्रिय होना चाहिए, वैसा सक्रिय नहीं है।

विधानसभा सीटें पर हार मिली है

पिछले विधानसभा चुनाव में निकाय क्षेत्र की बीकानेर पूर्व व पश्चिम की सीट कांग्रेस ने हारी है। वो भी बड़े अंतर से। लोकसभा की सीट भी भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल ने जीती, उस परिणाम में भी निगम क्षेत्र की दोनों सीटों कांग्रेस बुरी तरह से पिछड़ी थी। इस सूरत में निगम चुनाव जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।

नेताओं का भी तालमेल नहीं

बीकानेर कांग्रेस हार के बाद भी संभली नहीं है। अब भी तीव्र गुटबाजी पार्टी में हावी है। उसका भी नुकसान ही होगा। क्योंकि ये नेता संगठन से तालमेल बिठाने में नाकाम रहेंगे, यही दिखता है अभी।

जबकि अभी सर्वे होना जरूरी

दरअसल नये वार्ड सीमांकन के अनुसार पार्टी को एक मोटा मोटा सर्वे उम्मीदवारों को लेकर अभी से करना जरूरी है। एक पैनल होगा तो उम्मीदवार चुनने में आसानी होगी। एन वक्त पर यह काम हुआ तो नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलवा लेंगे और जीत की गणित गायब हो जायेगी।

कांग्रेस की राह आसान नहीं

कांग्रेस जब तक अभी से निगम चुनाव के लिए सक्रिय नहीं होगी तो चुनाव में जीत उसके लिए आसान नहीं होगी। भाजपा का एक मजबूत संगठन है, एमपी – एमएलए है। राज्य में उनकी सरकार है। उसके सामने कांग्रेस कैसे टिकेगी, यह बड़ा यक्ष प्रश्न है। अभी तो हालात कांग्रेस के लिए अच्छे नहीं लग रहे। संगठन को सक्रिय किये बिना, विपक्ष की भूमिका निभाये बिना वो कैसे मुकाबले में आयेगी, ये देखने की बात है।