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धर्म नगरी में नशे की गंगा ! कौन बने हुए है भागीरथ ??

  • रोज बड़ी मात्रा में नशा पकड़े जाने की खबरें बढ़ा रही चिंता
  • पुलिस बिना थके नशे पर कर रही हमला, फिर भी अंत नहीं आ रहा
  • जब ये नशा शहर में आया तो जिम्मेवार क्या सोये हुए थे
  • युवाओं में बढ़ रही नशे की लत, हताशा घर कर गई
  • पुलिस को जनता व जन प्रतिनिधि देंगे सहयोग, तब बनेगी बात

रितेश जोशी
ritesh joshi

RNE Special.

दो सच्ची घटनाएं, नाम बदले है बस:

लक्ष्मी अपने पति की नशे की लत के कारण बहुत परेशान थी। नशे की जरूरत ने पति के अंदर कई दुर्गुण आरोपित कर दिए थे। अक्सर वो लक्ष्मी को गालियां निकालता, पीटता। वो नोकरी करती थी, अधिकतर पैसे तो पति ही नशे के लिए ले जाता। जब नहीं मिलते तो घर का कोई सामान ले जाकर बेचता और नशा कर ही लेता।

दुखी लक्ष्मी पति को तो छोड़ नहीं सकती थी। पढ़ी लिखी थी तो उसे इस बात का गुस्सा था कि अवैध नशे के इस कारोबार को पुलिस रोकती क्यों नहीं। एक दिन उसने पति का पीछा किया और पता लगाया कि किन किन जगहों पर उनको ये नशा आसानी से मिलता है।

शहर के ऐसे 5 ठिकाने उसने पहचान लिए। सोचा, अब पुलिस को जाकर ये जानकारी दूंगी। मगर बाद में डर गई कि यदि पति को पता चल गया कि ये शिकायत पत्नी ने की है तो वो बुरी गत करेगा, मारेगा। मुंह बंद कर लिया। पति का नशा व पत्नी की प्रताड़ना का सिलसिला आज भी चल रहा है।

दूसरी घटना

महेश एक बड़ा व्यापारी था। सूखे मेवे का व्यापार करता था। अच्छी आमदनी होती थी। घर में खुशियां थी। पर उनको नजर लग गयी। नशेड़ियों ने उनको घेर लिया। शराब से शुरुआत हुई। फिर बात आगे बढ़ी। नई नशीली दवाईयां, कैप्सूल, अफीम शायद ही ऐसी कोई नशीली चीज बची हो जिसका सेवन करना महेश ने शुरू न किया हो।

नशे की लत से पहले व्यापार छूटा। फिर घर का सामान बिकना शुरू हुआ। बच्चों की स्कूल छूट गई। बाप के नशे की सजा बेटी को मिली और उसे ससुराल से निकाल दिया गया। घर में रोटी के लाले पड़ने लगे। मारपीट, गुस्सा ये सब तो कबका शुरू हो गया। महेश चल बसा। आज परिवार घोर विपदा में है।

कैसे बही इस शहर में नशे की गंगा:

बीकानेर को धर्म नगरी व छोटी काशी कहा जाता है। उस शहर में नशे की गंगा का बहना किसी अजूबे से कम नहीं। जहां हर गली – मोहल्ले में मंदिर है। अनेक मस्जिदें है। कथाओं के आयोजन चलते रहते है। पूर्ण रूपेण धार्मिक माहौल है।

मगर अब जिस तरह से रोज पुलिस छापेमारी कर नशा पकड़ रही है, उससे तो लगता है यहां नशे का जखीरा है। नशा यहां सहज में उपलब्ध है।

ये बताओ नशा आया तब कहां थे?

आबकारी विभाग का एक बड़ा महकमा है। वो भी बीकानेर में है। उसके बाद नशा यहां खूब पहुंचा है। यदि नाकेबंदी सही होती। विभाग की मुस्तैदी होती तो नशे को शहर में प्रवेश ही नहीं मिलता। जब प्रवेश ही नहीं मिलता तो बिकता भी नहीं। सहज में मिलता ही नहीं तो युवा इसकी गिरफ्त में नहीं आता। एक जगह की गलती अब पूरे शहर को परेशान कर रही है।

युवा पीढ़ी पर सबसे ज्यादा असर:

नशे का सबसे ज्यादा बुरा असर युवा पीढ़ी पर पड़ा है। यह पीढ़ी बेरोजगारी का शिकार तो है ही, तब इस बुराई की तरफ जाते उसे अधिक समय भी नहीं लगता। जब वो एक बार बुराई की तरफ चला जाता है तो फिर किसी काम के लिए बचता भी नहीं। घर अशांति से घिर जाता है। कई घरों की आज यही स्थिति है।

सहजता से ये बिकता कैसे है:

एक बात पर शहर के लोग आश्चर्य करते है कि लोगों को ये अलग अलग तरह का नशा सहजता से मिल कैसे जाता है। एक नशेड़ी युवा किसी को बता रहा था कि कुछ छोटे खोखे में चल रही दुकानें, कुछ सुनसान रास्तों, कुछ अच्छी जगहो पर यह आसानी से मिलता है। कुछ बेचने वालों के एजेंट भी घूमते रहते है। जो ग्राहक पहचानते है और पकड़ अपने नियत स्थान पर ले जाते है, वहां नशा मिलता ही नहीं अपितु नशा करने की जगह भी मिल जाती है। इनके बारे में कईयों को पता है, फिर माननीयों को पता कैसे नहीं। इसका तो एक ही कारण हो सकता है, इन नशा बेचने वालों को कोई न कोई संरक्षण तो है। कहीं न कहीं मिलीभगत तो है। कईयों पर नशे का विरोध करने वाले आरोप भी लगाते है, सच सामने कोई लाये तब पता चलेगा।

जनता ने आंदोलन भी किया था:

नशे के खिलाफ जन आंदोलन भी युवाओं की टीम ने किया। कई दिन अभियान भी चला मगर उसके बाद भी बड़ी मात्रा में नशा पकड़े जाने की खबरें भी आ रही है।

विधायक व्यास भी विरोध में:

नशे के खिलाफ बीकानेर पश्चिम के विधायक जेठानन्द व्यास विरोध में है। इस विषय मे वे पुलिस अधिकारियों व सरकार तक भी बात पहुंचा चुके है। व्यास ने नशे के विरोध के आंदोलन का भी समर्थन किया था। वे अब भी इसका कड़ा विरोध कर शहर की संस्कृति को बचाने की वकालत कर रहे है।

पुलिस को सहयोग जरूरी:

आईजी ओमप्रकाश ने व जिला पुलिस अधीक्षक ने नशे पर धावा बोला हुआ है। तभी तो इन दिनों बड़ी मात्रा में ये पकड़ा भी जा रहा है। पुलिस ने इस बुराई पर कड़ें प्रहार का संकल्प ले रखा है। वो सफलता भी हासिल कर रही है।

यदि पुलिस को जनता व जन प्रतिनिधियों का सच्चा सहयोग मिल जाये तो वो सफलता का प्रतिशत बढ़ा सकती है। सब काम उसके बस का नहीं। यदि जनता पुलिस को बताती रहे कि नशा यहां बिकता है, यहां होता है, इधर से आता है तो पुलिस की सफलता का ग्राफ ऊंचा जा सकता है। जन सहयोग मिले तो सफलता की गारंटी है।

इस मसले पर गम्भीर होना जरूरी:

जन प्रतिनिधियों, जनता, पुलिस, प्रशासन, आदि को इस मसले पर और गम्भीर होना जरूरी है। तभी इस धर्मनगरी की संस्कृति की रक्षा होगी। कई घर बर्बाद होने से बचेंगे। युवा भटकने की राह छोड़ेंगे।