
अब बीकानेर मांगे सिटी बस, यातायात का विस्तार, निरंतर फैलते बीकानेर में परिवहन हुआ महंगा
- अब सिटी बस बनी बीकानेर की बड़ी जरूरत
- संभागीय मुख्यालय है, फिर भी लोग आधुनिक सुविधाओं से वंचित
- लोगों को देना पड़ रहा यातायात के लिए अधिक किराया
रितेश जोशी
RNE Network.
बीकानेर राज्य गठन के साथ ही बना एक प्रमुख संभाग मुख्यालय है। मगर देखा जाये तो जिस तेजी से जयपुर, जोधपुर, कोटा, अजमेर संभाग मुख्यालयों का विकास हुआ उस दृष्टि से तो बीकानेर बेहद पिछड़ गया। यहां विकास इन संभागों की तुलना में नगण्य हुआ।
अन्य सभी विकास कार्यो में तो पिछड़ा ही है बीकानेर, मगर सबसे अधिक पिछड़ा है नगरीय यातायात में। यहां आज भी शहर में परिवहन के लिए निजी वाहन के अलावा केवल टैक्सी का साधन ही रह गया। जो अब नागरिकों को बहुत महंगा भी पड़ने लगा है। यहां से वहां जाना हो तो कम से कम अब 100 रुपये की चपत आदमी को लगती है। ज्यादा लंबी दूरी हो तो फिर यह राशि डेढ़ या दुगुनी हो जाती है।
पुराने यातायात के साधन रहे नहीं:
एक समय मे बीकानेर में यातायात के साधन के रूप में निजी तौर पर लोग साइकिल काम में लेते थे। इसके अलावा तांगे ही सवारी ले जाने का काम करते थे। अब ये दोनों ही साधन लगभग नहीं रहे।
घोड़े के बिना तांगा चलता नहीं और इसे पालना महंगा हो गया। तब ये सवारी तो अब रही ही नहीं। साइकिल का स्थान दुपहिया वाहनों ने ले लिया, जिनका ईंधन महंगा हो गया। पहले गिनती की टैक्सियां होती थी, अब वे ही दिखाई देती है। पेट्रोल व डीजल के दाम बढ़ने से इनका किराया भी बढ़ गया।
शहर भी अब विस्तार पा गया:
शहर भी अब छोटा नहीं रहा। पहले परकोटे के भीतर व बाहर, इतना भर था शहर। अब तो एक तरफ जयपुर रोड़, एक तरफ करमीसर, एक तरफ गंगाशहर – भीनासर, नई नई कॉलोनियां। विस्तार कर गया है बीकानेर।
परिवहन के साधन नहीं बढ़े:
शहर ने यदि विस्तार किया तो उसके अनुसार यातायात के साधन भी बढ़ने चाहिए थे, मगर वे नहीं बढ़े। इस तरफ न तो जन प्रतिनिधियों ने ध्यान दिया और न ही प्रशासन ने। जनता केवल सहती रही।
मानक पूरे, फिर भी सुविधा नहीं:
जनसंख्या और क्षेत्रफल के मानक पूरे हुए तो जनता ने यहां सिटी बस की मांग अन्य संभाग मुख्यालयों की तरह उठाई। मगर दो दशक से वो मांग ही बनी हुई है। उस पर निर्णय नहीं हुआ। यातायात सलाहकार समिति भी बनती है। उसमें हर बार सिटी बस की मांग उठती है। जनता को उसे शुरू करने का सब्ज बाग दिखाया जाता है। होता कुछ नहीं।
नेताओं, प्रशासन की बेरुखी:
नेताओं, प्रशासन की बेरुखी के कारण ये सुविधा बीकानेर को आज तक नहीं मिल सकी है। यह कहकर टाल दिया जाता है कि सिटी बस घाटे का सौदा है। ये बहाना सही नहीं। यदि स्कूल, अस्पताल से आय नहीं तो क्या इनको बंद कर दिया जाये। सिटी बस के मामले में भी यही है, जनता के हित की बात है। लोकतंत्रीय सरकार के यही तो दायित्त्व है। सब काम लाभ हानि की ताकड़ी से नहीं तोले जाते।