डोटासरा- रंधावा के बयानों से लगता है, कांग्रेस में भीतर बहुत कुछ, तेजी से बदल रहा
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
राजस्थान कांग्रेस की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत मिलने लग गये है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा व पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा के पिछले दिनों के बयानों से तो यही प्रतीत होता है। इन दिनों लोकसभा चुनाव की तैयारी के सिलसिले में रंधावा व डोटासरा नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के साथ राज्य के दौरे पर निकले हुए हैं। उम्मीदवारों के लिए हर लोकसभा सीट पर फीडबैक ले रहे हैं। डोटासरा इन मीटिंगों में खुलकर बैटिंग कर रहे हैं और उनके बयान खूब वायरल हो रहे हैं। इन बयानों को केवल फटकारे कहकर टाल देना सही नहीं है। बयानों के पीछे भाव पूरी तरह से राजनीतिक है और गंभीर वृत्ति के है।डोटासरा ने मंच से भाषण देते हुए कहा है अनेक जगहों पर कि कुछ हमारी भी गलती थी जिसके कारण हम सरकार में दुबारा नहीं आये। ये सामान्य बयान नहीं है, अपरोक्ष रूप से गलती के लिए पूर्व सीएम की तरफ ईशारा है। फिर वो ये भी कहते हैं कि दो महीने बाद तो मोरिया बुला देना। ये आग्रह इसलिए है क्योंकि लोकसभा चुनाव में कमान उनके पास ही है। खुद के नेतृत्त्व में कमाल दिखाकर वे राज्य कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बनना चाहते हैं। जाट पॉलिटिक्स की कुछ कुछ धूरी तो वे बन ही गये हैं। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में उनको ही इलेक्शन कमेटी का चेयरमैन बनाया है और गहलोत व पायलट को केंद्र की राजनीति में सक्रिय कर दिया गया है।डोटासरा जो एक समय मे पूरी तरह गहलोत के साथ थे और अध्यक्ष के नाते उनकी ही भाषा बोलते थे। पायलट से एक निश्चित दूरी बनाकर भी रखते थे। मगर अब वे हर जगह उन्हें वरिष्ठ नेता बोलते हैं और जमकर तारीफ भी करते हैं। युवा कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में तो उन्होंने जमकर पायलट की तारीफ की। पायलट भी अब बोलते समय डोटासरा को लेकर सॉफ्ट है। बयानों से इन सब बातों को पढ़ा जा सकता है, भाव समझे जा सकते हैं।
कांग्रेस प्रभारी रंधावा भी कुछ कुछ बदले नजर आते हैं। उन्होंने भी इन बैठकों में भाषण देते हुए कहा कि मैं सरकार रिपीट नहीं करा पाया, हमारी कमी है। डोटासरा व पायलट के साथ साथ हरीश चौधरी को भी वे अब पहले से अधिक महत्त्व देने लगे हैं। इन सब बयानों, बदलावों आदि को देखकर लगता है कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर बहुत कुछ तेजी से बदल रहा है। नये नेतृत्त्व पर वर्किंग शुरू हो गई है। पूर्व सीएम अशोक गहलोत भी राज्य की राजनीति में कम दिखाई देते हैं। वहीं सचिन जरूर राज्य की राजनीति में भी उतने सक्रिय दिखते हैं जितने सक्रिय छत्तीसगढ़ में सक्रिय दिखते हैं। जानकारों का मानना है कि राजस्थान कांग्रेस के भविष्य को लेकर नई स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है, बस समय का इंतजार है।