वागड़ से वागड़ी की सांस्कृतिक भाषा के संरक्षण में एक और कृति
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डूंगरपुर जिले के सेमलिया घांटा के राधेश्याम पाटीदार ने वागड़ की लोक प्रचलित कहावतों( कैवतो) और मुहावरों(मुआवरें) को श्रमसाध्य कर संकलन "वागड़ी_कैवते" तैयार किया है। जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार भोगीलाल जी पाटीदार का पूर्ण मार्गदर्शन रहा है और वागड़ के मुहावरों का संकलन सहयोग भी। इसमें वर्णक्रम और हिंदी भावार्थ पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस संकलन के आने से वागड़ की सांस्कृतिक भाषा के संरक्षण में यह महत्वपूर्ण कृति बन गई है। जो वागड़ी भाषा में एक व्याकरण के रूप में संदर्भ पुस्तक बन गई। राधेश्याम जी और भोगीलाल जी पाटीदार के लम्बे प्रयास का यह सुफल वागड के लिए एक सुव्यवस्थित साहित्य बन गया।
मारवाड़ी, मेवाड़ी, राजस्थानी, पंजाबी, मलयालम, गुजराती ,मराठी तथा अन्य किसी भाषा में पृथक से यह संकलन शायद उपलब्ध नहीं है। वागड़ी भाषा में बनी यह किसी "भाषा की आत्मा" के रूप में मिलते ही कई वागड के साहित्य प्रेमी अति प्रसन्न है।
वागड़ी भाषा को लिपिबद्ध करने के बाद उसका हिन्दी अर्थ सरल तथा उचित रूप में करना दुःसाहस भरा कार्य था। फिर भी राधेश्याम पाटीदार ने अनेकों भाषा , जानकार, शिक्षाविद से भी सम्पर्क,कर तथा समाज में कहावत का प्रचलित अर्थ ढूंढना। रात के अंधेरे में राई ढूंढने जैसा था।
राधेश्याम पाटीदार ने विगत आठ वर्षो से अधिक समय देकर यह " सम्पूर्ण कहावते- मुहावरे" एक पुस्तक में वैज्ञानिक तरीके तथा वर्णमाला की माला में पिरोकर वागड़ी के लिए अदम्य साहस किया है।
राधेश्याम पाटीदार सेवानिवृत्त शारीरिक शिक्षक, उत्कृष्ट भाषाविद, हिन्दी भाषा ,साहित्य के अनुरागी है।
आपकी यह उत्कृष्ट साधना , श्रम साहित्य जगत की बड़ी उपलब्धि है।
राधेश्याम पाटीदार तथा इस वागड़ी धरोहर को तैयार करने में जिन विद्वतजनों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग, सहकार रहा है।
वह सभी मनीषी भी धन्यवाद के पात्र है। आपकी पुस्तक सदियों तक वागड़ी भाषा को जानने , पढ़ने, समझने तथा शोध के लिए एक दीपक की तरह मार्ग प्रशस्त करती रहेगी।