{"vars":{"id": "127470:4976"}}

उर्दू अदब की बातें: फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता और जाँन गिलक्रिस्ट यानि उर्दू सहित भारतीय भाषाओं का मरकज

 

इमरोज़ नदीम 

RNE Special.

( आज से हम साहित्य का ये नया कॉलम ' उर्दू अदब की बातें ' शुरु कर रहे है। इस कॉलम को लिख रहे है युवा रचनाकार इमरोज नदीम। इस कॉलम में हम उर्दू अदब के अनछुए पहलुओं को पाठकों के सामने लाने की कोशिश करेंगे। ये कॉलम केवल उर्दू ही नहीं अपितु पूरी अदबी दुनिया के लिए नया और जानकारी परक होगा। इस साप्ताहिक कॉलम पर अपनी राय रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस ( RNE ) को जरूर दें। अपनी राय व्हाट्सएप मैसेज कर 9672869385 पर दे सकते है। -- संपादक 

अदब से वास्ता रखने वाले इस नाम से वाबस्ता ज़रूर होगे  क्योंकि इसका तज़किरा उर्दू और तारीख़ (इतिहास ) की  किताबों में हमें कसरत से मिलता है और यह स्कूल और कॉलेज के निसाब ( सिलेबस ) में शामिल हैं ।फोर्ट विलियम कॉलेज के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और बहुत कुछ लिखा जाना अब भी बाकी है । फोर्ट विलियम कॉलेज जो फोर्ट विलियम के करीब बनाया गया था । आज फोर्ट विलियम तो मौजूद है लेकिन अफसोस है कि कभी ज़बान ओ अदब का मरकज रहा फोर्ट विलियम कॉलेज आज अपने वजूद में नहीं है । वो आज अब तारीख़ का एक हिस्सा बन कर रह गया । फोर्ट विलियम कॉलेज को 1854 में ही ब्रिटिश हुकूमत ने बाजाब्ता तौर पर तहलील ( भंग ) कर दिया था । लेकिन इसका तारीख़ी मवाद (सामान ) दस्तावेज़ इंडियन नेशन आर्काइव में दस्तयाब है जो कि हिंदी और उर्दू अदब की तरक्की की  अहम बुनियाद थी । एक तारीख़ी कॉलेज जिसे तामीर अंग्रेजों ने करवाया लेकिन उसकी तारीख़ तहरीर हिन्दुस्तानी थी । अपनी शानदार तारीख़ होने के बावजूद फोर्ट विलियम कॉलेज आज अपने वजूद में नहीं है । 

लेकिन इससे फोर्ट विलियम कॉलेज की अहमियत कम हो जाए ऐसा मुमकिन नहीं  क्योंकि यहां ज़बानो अदब के लिए किए गए कामों ने मुस्तकबिल की बुनियाद रखी । आगरचे अंग्रेजों ने उसे अपनी खुदगर्जाना वजूहात की बिनाह पर तामीर किया था । मेरा ऐसा मानना है कि वे दानिस्ता या नादानिस्ता तौर पर तारीख़ के एक काबिले ज़िक्र काम में  हिस्सा बने । इसका आगाज़ ऐसे हुआ कि जब अंग्रेज  तिजारत के लिए हिंदुस्तान आए तो उन्हें हिंदुस्तानियों से राब्ता करने में काफी मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा था । सबसे बड़ा मसला  ज़बान का था  । क्योंकि दोनों तरफ की जबान मुख्तलिफ़ थी । हिंदुस्तान में कहावत है कि यहां हर कोस पर ज़बान बदल जाती है, लहज़ा बदल जाता है । हिंदुस्तान में एक और मसला था कि जब हिंदुस्तान  मुगलिया हुकूमत के हाथों मुताहिद था तो यहां रियासतों में फिजूल के आपसी झगड़े मौजूद थे । फिरंगियों को इस बात का एहसास हुआ  और  फिरंगी जो हिंदुस्तान में तिजारत  करने के मकसद से आए थे ने  हिंदुस्तानियों के दरमियान लड़ाई झगड़े का एक मौका देखा । चुनांचें उन्होंने बिला ताख़ीर इस मुहिम को मुकम्मल करने के लिए कोशिश शुरू कर दी। और ज़बान की सब से बड़ी रुकावट को दूर करने के लिए अंग्रेजों ने दो कॉलेज तामीर करवाए  । एक देहली में, देहली कॉलेज जहां हिंदुस्तानियों को अंग्रेजी सिखाई जाती थी और दूसरा था फोर्ट विलियम कॉलेज जहां अंग्रेजी अफसरों को हिन्दुस्तानी ज़बान सिखाई जाती थी ।  फोर्ट विलियम कॉलेज (Fort William College) जो कोलकाता में  स्थित है  मशरीकी उलूम और जबानो के मुताआले का मरकज था ।इसकी बुनियाद 10 जुलाई सन् 1800 को उस वक़्त के गवर्नर जनरल  ने रखी थी। इस इदारे में संस्कृत, अरबी, फारसी, बंगला, हिन्दी, उर्दू  के हजारों किताबों का तर्जुमा(अनुवाद )हुआ। हिंदुस्तान के कुछ लोगों ने इस फोर्ट विलियम कॉलेज को भारत में ज़बान की बुनियाद पर भारत के लोगों को तकसीम करने का खेल खेलने का अड्डा माना था । लेकिन फोर्ट विलियम कॉलेज हिंदुस्तान में आने वाले ब्रिटिश नौजवानों  को हिंदुस्तान की ज्ञान मीमांसा, व्याकरण, संस्कृति,   धार्मिक एवं प्रशासनिक ज्ञान से रु ब रु करवाने का एक बड़ा मरकज था। अगर फोर्ट विलियम की बात की जाए और जॉन गिलक्रिस्ट की बात ना की जाए यह तो नाइंसाफी होगी ।

इस कॉलेज ने हिन्दी अदब , ब्रजभाषा अदब, संस्कृत अदब की तरक्की की बुनियाद रखीं । 
 

फोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी ज़बान ओ अदब का डिपार्टमेंट जाँन गिलक्रिस्ट (1759 - 1841) के डायरेक्शन हिदायत में बाखूबी चलाया गया । वह उर्दू, अरबी एवं संस्कृत के भी आलिम थे । उन्होंने कई अहम किताबें तहरीर की  जैसे इंगलिश-हिन्दुस्तानी डिक्शनरी, हिन्दुस्तानी ग्रामर, दि ओरिएंटल लिंग्विस्ट इस नाम दो किताबें बिलतरतीब 1796 और 1798 में शाया करवाया। चार्ल्स आयर फोर्ट विलियम के प्रथम प्रेसीडेंट थे।जॉन गिलक्रिस्ट एक माहिर लिसानीयात यानी भाषाविद और ईस्ट इंडिया कंपनी के मुलाजिम  थे, जिन्होंने 1801 में फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदुस्तानी शोबा के सरबराह के तौर पर काम किया। उनके डायरेक्शन में, कॉलेज ने उर्दू लिखने का एक सादा अंदाज तैयार किया जो ब्रिटिश अफसरों के लिए काबिल फहम था । यह जाँन गिलक्रिस्ट ही थे जिन्होंने 
कॉलेज में अदीबों की एक टीम को इकट्ठा किया गया, जिन्होंने उर्दू और हिंदी अदब के लिए मयारी नसर तखलीक करके  उन ज़बानो को जदीद दौर में दाखिल होने दिया ।
अगरचे यहां बहुत से अदीबों ने अपनी सलाहियतों का मुज़ाहरा किया है लेकिन अगर हम अदबी नुक्ता नज़र से एक बेहतरीन तसनीफ देखे तो वो मीर अम्मन की बागो बहार होगी जिसे सबसे ज्यादा फ़रोग हासिल हुआ । बागो बहार एक मशहूर उर्दू कहानी है जो मीर अम्मन ने फोर्ट विलियम कॉलेज से वाबस्तगी के दौरान लिखी थी । ये एक मशहूर फारसी कहानी " किस्सा चार दरवेश " का एक अहम हिंदुस्तानी तर्जुमा है  । बागो बहार (जिसका अनुवाद उन्होंने किस्सा हातिम ताई के नाम से किया)। इसमें आज़ाद बख्त नाम के शहजादे की कहानी है जो चार दरवेश के तजुर्बात बयां करता है । ये अपनी जबान की वजह से बहुत मशहूर हुई । क्योंकि मीर अम्मन की जॉन गिलक्रिस्ट की हिदायत थी कि किताब में तर्जुमा आसान लफ्जों में हो ।  इसलिए मीर अम्मन ने अरबी - फारसी की बजाए हिंदुस्तानी (दिल्ली की ज़बान ) बोल चाल वाली ज़बान का इस्तेमाल किया । मीर अमन ने इस तर्जुमे में अरबी और फारसी अल्फ़ाज़ से गुरेज करते हुए सादा बोल चाल की ज़बान इस्तेमाल की । जिसकी वजह से यह किताब बहुत मकबूल हुई ।  बागो बहार आज तक ज़िन्दा है और शानदार नसरी अंदाज की वजह से  बहुत मकबूल हुई  ।

फोर्ट विलियम कॉलेज उर्दू और खड़ी बोली हिंदी की तरक्की में इसका अहम किरदार रहा 
 

1800 में कलकत्ता ( अब कोलकाता ) में कायम होने वाले फोर्ट विलियम कॉलेज को उर्दू और हिंदी ज़बान ओ अदब और ग्रामर की तरक्की में एक हम संगमेल समझा जाता था इससे पहले उर्दू और हिंदी अदब  ज्यादातर शेरों शायरी, काव्य (कविता, दोहे, 'चौपाइयां, भक्ति-साहित्य) तक ही महदूद था। इस वक़्त हिंदी पर अवधी और ब्रज का गलबा था । 
 

फोर्ट विलियम कॉलेज के स्कॉलर जैसे लल्लू लाल, सदल मिश्र, इंशाअल्लाह खां ने खड़ी बोली हिंदी को अदबी जबान के तौर पर कायम करना शुरू किया । फोर्ट विलियम कॉलेज का बुनियादी मकसद

ब्रिटिश अफसर को हिंदी , उर्दू और दीगर हिंदुस्तानी ज़बाने सीखना था
 

फोर्ट विलियम कॉलेज में काम करने वाले कुछ अहम अदीब थे जॉन गिलक्रिस्ट, लल्लू लाल, सदल मिश्र, मदन मोहन तर्कालंकार और मीर अम्मन। इन अदीबों ने खड़ी बोली हिंदी और उर्दू नसर ( गद्य ) की तरक्की में अहम किरदार अदा किया , जिसमें ग्रामर , लुगत (शब्दकोशों ) की तखलीक और मुख्तलिफ कहानियों व नसरी ग्रंथों का तखलीक शामिल है।

जॉन गिलक्रिस्ट: हिंदुस्तानी शोबा के सदर थे, और उन्होंने अपनी किताबी के जरिए  हिंदुस्तानी जबानो के मुताआला और मेयारी बनाने में मदद की। 

लल्लू लाल:उन्हें हिंदी खड़ी बोली  गद्य का जनक माना जाता है और उन्होंने प्रेमसागर जैसी किताबों की तहरीर की। 

सदल मिश्र:इन्होंने हिंदी  गद्य को खड़ा करने में मदद की और नासिकेतोपाख्यान की रचना की। 

हैदर बख्श हैदरी: कॉलेज से जुड़े हुए थे और उन्होंने आराइशे महफिल जैसे ग्रंथों का तर्जुमा किया। 

मदन मोहन तर्कालंकार:यह बंगाली कवि थे और अपनी कृति बसभदत्ता के लिए जाने जाते थे