{"vars":{"id": "127470:4976"}}

साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने जन कवि शंकरदान सामौर को मान दिया

लोक भारती, बोबासर ने बीकानेर को आयोजन के लिए चुन सम्मान दिया
डॉ अर्जुनदेव चारण ने मायड़ भाषा राजस्थानी की अलख को प्रज्ज्वलित रखा, दूरदर्शी सोच
पहली बार गीता सामौर ने राजस्थानी महिला लेखन की विरोल की
 

मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.


साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और लोक भारती, बोबासर ने 18 - 19 अगस्त को बीकानेर में मायड़ भाषा के दो महत्ती व ऐतिहासिक आयोजन किये। राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के इन आयोजनों से पूरे प्रदेश की साहित्यिक गतिविधियों को एक गति मिली है। 
 

पहला आयोजन था ' श्री शंकरदान सामौर स्मृति समारोह '। आजादी के संघर्ष के इस जन कवि की 201 वीं जयंती पर यह आयोजन इस वजह से उल्लेखनीय रहा, क्योंकि 1857 की क्रांति के सूत्रपात में इस राजस्थानी कवि की बड़ी भूमिका मानी जाती है। उस पर अब तक बहुत कम काम हुआ था। पहली बार उनके व्यक्तित्त्व व कृत्तित्व पर शोधपरक कार्यक्रम होना राजस्थानी साहित्य के लिए बड़ी घटना है।
 

दूसरा आयोजन भी साहित्य अकादमी, नई दिल्ली व लोक भारती बोबासर का संयुक्त आयोजन ' व्याख्यान ' का था। 21 वीं सदी के महिला लेखन पर पहली बार वृहद स्तर पर आलोचनात्मक काम हुआ। मूल्यांकन हुआ। ये व्याख्यान था कवि, आलोचक डॉ गीता सामौर का।
 

बीकाणे के कवि सामौर को मान:
 

स्व शंकरदान सामौर बीकानेर संभाग व उस समय की बीकानेर रियासत के कवि थे। जिन्होंने कवि व एक्टिविस्ट की भूमिका साथ साथ निभाई। उन्होंने 1857 की क्रांति की नींव रखी। वे अंग्रेजों और तत्कालीन राजशाही के खिलाफ खड़े हुए। संघर्ष के इस कवि चितेरे को यहां की जनता ने जन कवि के रूप में मान दिया। उन्होंने किसान, मजदूर, मजलूम की बात की और बेबाकी से उन पर काव्य सृजन किया। उसे साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने मान दिया, उसका आभार। 

अकादमी इस आयोजन को लेकर कितनी गंभीर थी कि अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव खुद इस आयोजन में भागीदारी के लिए आये। शंकरदान सामौर पर विस्तृत संभाषण उनका रहा। 
 

लोक भारती ने स्थान सही चुना:
 

लोक भारती, बोबासर को भी स्थान चयन के लिए बधाई दी जानी चाहिए। वे चाहते तो इस आयोजन को चूरू, सालासर या बोबासर में कर सकते थे मगर उन्होंने यह आयोजन बीकानेर में किया। संभाग मुख्यालय है वर्तमान में बीकानेर तो रियासत काल मे भी बीकानेर मुख्यालय था। यहां से आयोजन की गूंज पूरे राजस्थान में हुई जो इस आयोजन का ध्येय था।

डॉ चारण का भागीरथी प्रयास:
 

राजस्थानी के कट्टर हिमायती कवि, आलोचक, नाटककार व साहित्य अकादमी, नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ अर्जुन देव चारण का मायड़ भाषा की अलख प्रज्ज्वलित रखने का यह प्रयास बेहद सफल रहा। उन्होंने उस जन कवि पर आयोजन की रूपरेखा बनाई जिसने देश की आजादी के संघर्ष में तो भूमिका निभाई ही, साथ मे राजस्थानी साहित्य को भी समृद्ध किया।
 

दूरदृष्टि रख डॉ चारण ने इस आयोजन में युवा सहित तीन पीढ़ियों की भागीदारी कराई ताकि मायड़ भाषा की अलग आगामी 50 साल तक जलती रहे। इस महत्ती आयोजन का पूरा श्रेय किसी एक को दिया जाए तो वे डॉ अर्जुन देव चारण है। इस आयोजन की पूरी परिकल्पना व क्रियान्वयन उनका ही है। 
 

आयोजन में इनकी रही भागीदारी:
 

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ अर्जुन देव चारण, के श्रीनिवास राव, डॉ एस पी व्यास, दीपिका विजयवर्गीय, भंवर सिंह सामौर, लक्ष्मी कांत व्यास, मधु आचार्य ' आशावादी ', गजेसिंह राजपुरोहित, पृथ्वीराज रतनू, बुलाकी शर्मा, मंजुला बारहठ, अंकिता सिंह, हेमराज, गोविंद, राजेन्द्र जोशी, गौरीशंकर प्रजापत, नगेन्द्र नारायण किराड़ू, रेणुका व्यास नीलम, डॉ संजू श्रीमाली की भागीदारी रही।
 

ये रही उपलब्धियां:
 

  1. अकादमी सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा और डॉ अर्जुन देव चारण से आग्रह किया कि शंकरदान सामौर का मोनोग्राफ राजस्थानी में तो आ गया, इसे हिंदी और अंग्रेजी में भी छापा जाये। अकादमी ये काम करने को तैयार है। ये बड़ी घोषणा थी।
     
  2. राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक व इस आयोजन के सूत्रधार डॉ अर्जुन देव चारण ने कहा कि इस आयोजन में पढ़े गये शोध पत्रों व अन्य संभाषणों की एक पुस्तक निकाली जायेगी। क्योंकि स्व सामौर पर कम सामग्री उपलब्ध है। ये पुस्तक शोधार्थियों, साहित्यकारों के लिए उपयोगी होगी।

  3. डॉ अर्जुन देव चारण के निर्देश व गजेसिंह राजपुरोहित के सुझाव पर मासिक राजस्थानी पत्रिका ' जागती जोत ' का स्व शंकरदान सामौर पर विशेषांक निकालने की घोषणा पत्रिका के संपादक मधु आचार्य ' आशावादी ' ने की।
     

व्याख्यान का दूसरा महत्ती आयोजन:
 

इस दो दिन के सेमिनार के अंतिम दिन ' 21 वीं सदी का राजस्थानी महिला लेखन ' विषयक व्याख्यान कवि, आलोचक डॉ गीता सामौर का हुआ। जिसमें महिला लेखन की दशा और दिशा पर विस्तृत जानकारी, समीक्षा के साथ गीता सामौर ने दी।