चालान पर ध्यान, कान पर मोबाइल नहीं दिखता ?
ट्रैफिक सिपाही का ध्यान केवल हेलमेट व चालान पर
जबकि मोबाइल पर बात बड़ा अपराध, कार्यवाही जरूरी
जानलेवा दुर्घटना की वजह बनता है मोबाइल पर बात
रितेश जोशी
RNE Special.
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार संसद में उदास होकर कहा था कि सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भारत दुनिया में अव्वल है। ये बात जब बैठक में कही जाती है तो मेरा सिर शर्म से झुक जाता है। इसी कारण मैंने हेलमेट न होने पर बड़े जुर्माने का प्रावधान किया। वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने पर भी दंड का प्रावधान किया। इन प्रावधानों के होने पर भी आप किसी भी सड़क पर खड़े हो जाइये, आपको दुपहिया या चार पहियों वाला वाहन चलाने वाले अनेक ऐसे लोग दिख जाएंगे जो साथ में मोबाइल पर भी बात करते है। इससे एक्सीडेंट का बड़ा खतरा है और हुए भी है। मगर सड़क पर खड़े ट्रैफिक पुलिसकर्मी ऐसे लोगों को कुछ नहीं कहते। उनका ध्यान तो उस चालक पर रहता है जिसने हेलमेट नहीं पहना हुआ हो। चालान हेलमेट न होने का काटते है, मोबाइल पर बात करने का नहीं।
ऐसे वाहन चालक बड़ा खतरा:
कान पर मोबाइल लगाकर दुपहिया या चार पहिया वाहन चलाते है वे खुद के लिए तो खतरा है ही, दूसरों के लिए भी खतरा बन रहते है। इस तरह की कई बार दुर्घटनाएं हुई है और इसकी संभावना हर समय बनी रहती है। लोगों में जब समझ न हो तो दंड से ही उनको समझाया जा सकता है। उन पर ट्रैफिक पुलिस को ज्यादा सख्ती बरतनी चाहिए। ये गलती युवा अधिक करते है।
ध्यान केवल चालान पर क्यों:
यदि ट्रैफिक पुलिस के चालान निकाल के अध्ययन किया जाए तो यही तथ्य सामने आयेगा, अधिकतर बिना हेलमेट के ही चालान कटे है। मोबाइल पर बात करते वाहन चलाने के चालान तो इक्का दुक्का ही दिखेंगे। इससे इस बात का पता चलता है कि इस बड़ी गलती की तरफ ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। ये चिंतनीय है। जबकि इस गलती पर अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह हेलमेट न होने से बडी गलती है।
आईजी साब, एसपी साब, दखल दें:
बीकानेर की व्यस्ततम सड़को पर भी हमको मोबाइल पर बात करते हुए वाहन चलाने वाले बड़ी संख्या में दिखेंगे। आईजी साब व एसपी साब से अनुरोध है कि इस तरह की गलती करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करे। ये उनके व अन्य नागरिकों के हित की बात है।
लोगों भी जागरूक होने जरूरी:
यह काम यदि अकेले हम पुलिस के भरोसे छोड़ेंगे तो पूरा नहीं होगा, क्योंकि बिना जन सहयोग के सफलता मिलती भी नहीं। जनता को जागरूक करने का काम ट्रैफिक पुलिस व स्वयंसेवी संस्थाओं को करना चाहिए। स्कूल, कॉलेज में इस अभियान को चला युवाओं को बताना चाहिए कि वाहन चलाते समय मोबाइल चलाना कितना खतरनाक है।