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Bikaner Congress : कल्ला खेमे से बाहर गया अध्यक्ष पद, क्या फिर शुरू होगी कलह!

अल्पसंख्यक नेताओं को भी थी इस बार अध्यक्ष पद की उम्मीद

 

धीरेंद्र आचार्य

RNE Bikaner.

राजस्थान में कांग्रेस ने प्रतीक्षित जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी कर दी है। प्रदेश में 45 जिलाध्यक्ष बनाये गये हैं। इनमें बीकानेर शहर एवं देहात जिलाध्यक्ष भी शामिल है। देहात अध्यक्ष के तौर पर बिशनाराम सियाग को रिपीट किया गया है। बिशनाराम को लगातार सक्रियता और देहात क्षेत्र में जिले की सात में से पांच विधानसभा  सीटें होने के साथ ही सॉफ्ट, निर्विवाद जाट चेहरे के रूप मंे पहचान मिली है। नेता प्रतिपक्ष रहे स्व.रामेश्वर डूडी के नजदीकी बिशनाराम गुटबाजी की राजनीति में भी समन्वय से काम करने के कारण सभी गुटों में स्वीकार्य है। इसका उन्हें लाभ मिला है और एक बार फिर अध्यक्ष बनाया गया है।

मदनगोपाल मेघवाल को शहर अध्यक्ष बना चौंकाया:

बीकानेर शहर अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस ने बड़ा चौंकानेवाला प्रयोग किया है। यहां मदनगोपाल मेघवाल को कांग्रेस का शहर अध्यक्ष बनाया गया है। मदनगोपाल मेघवाल पुलिस अधिकारी थे और बीकानेर से कांग्रेस के टिकट पर अर्जुनराम मेघवाल के सामने वर्ष 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। इस चुनाव में 2 लाख 64 हजार वोटों की बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा। वे अर्जुनराम मेघवाल के मौसेरे भाई हैं और चुनाव लड़ने के बाद से लगातार कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में खाजूवाला से दावेदार थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला और गोविंदराम मेघवाल को मैदान में उतार गया जो भाजपा के डा.विश्वनाथ मेघवाल से चुनाव हार गये। इसी तरह लोकसभा चुनाव 2023 में मदनगोपाल मेघवाल फिर कांग्रेस से लोकसभा टिकट के दावेदार थे लेकिन इस बार भी पूर्वमंत्री गोविंदराम मेघवाल को पार्टी ने मैदान में उतारा। ऐसे मंे मदनगोपाल मेघवाल को पार्टी, संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही थी। शहर अध्यक्ष के तौर पर यह जिम्मेदारी देकर संगठन ने पार्टी के बाकी अध्यक्ष पद दावेदारों को ही नहीं वरन आम कार्यकर्ता को भी चौंकाया है।

एससी समीकरण साधा या सियासी कूटनीति:
 

मदनगोपाल मेघवाल को बीकानेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने अपने SC कोर वोटर को साधने की कोशिश की है। हालांकि देहात में इस वर्ग के वोटर्स की संख्या ज्यादा है इस लिहाज से देहात में कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग भी होती रही है लेकिन शहर में अध्यक्ष बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे गये हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मदनगोपाल मेघवाल को देहात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाता तो वे एक बार फिर जिले की किसी सुरक्षित विधानसभा सीट के साथ ही लोकसभा के लिए सशक्त दावेदार बन जाते। बीकानेर में रामेश्वर डूडी के निधन के बाद जिस कांग्रेस नेता का दबदबा चल रहा है उनमें पूर्वमंत्री गोविंदराम मेघवाल का नाम सबसे ऊपर आता है। ऐसे में मदनगोपाल मेघवाल का मजबूत होता दावा कहीं न कहीं गोविंदराम मेघवाल पर विपरीत असर डालता। इसी लिहाज से उन्हें शहर की राजनीति में सीमित करने के प्रयास के तौर पर भी इस निर्णय को देखा जाता है। हालांकि निवर्तमान अध्यक्ष यशपाल गहलोत को इसी पद पर रहते हुए बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया। इस विधानसभा क्षेत्र में SC के वोटर्स की संख्या काफी है। इस बीच यदि परिसीमन के बाद स्थितियां मुफीद होती है तो पार्टी मदनगोपाल मेघवाल का भी कुछ ऐसा ही उपयोग कर सकती है।

कांग्रेस को कल्ला खेमे से बाहर लाने की कोशिश:

मोटे तौर पर यह माना जाता है कि बीकानेर शहर कांग्रेस अध्यक्ष का पद लगभग 20 साल से बी.डी.कल्ला खेमे के पास है। बीते 13 साल से यशपाल गहलोत शहर कांग्रेस अध्यक्ष थे। जब वे पहली बार अध्यक्ष बने तब पूरी तरह कांग्रेस में कल्ला खेमे के कार्यकर्ता माने जाते थे। हालांकि बाद में यशपाल गहलोत ने स्वतंत्र निर्णय लेते हुए अपनी संगठनात्मक गुटनिरपेक्षता साबित की लेकिन इस बीच पश्चिम विधानसभा से यशपाल गहलोत को टिकट घोषित होने के बाद एकबारगी उनके समर्थकों और कल्ला समर्थकों में खुलकर सड़कों पर घमासान दिखी। इसके बाद से रिश्ते पहले जैसे सामान्य नहीं रह गये। गहलोत से पहले बी.डी.कल्ला के बड़े भाई, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन कल्ला लगभग 10 साल पार्टी के शहर अध्यक्ष रहे।

इस बार फिर कल्ला परिवार रहा दावेदार:

इस बार फिर शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कल्ला परिवार से मजबूत दावेदारी की गई। कांग्रेस नेता और राजीव यूथ क्लब के नाम से सहयोगी संगठन चलाने वाले अनिल कल्ला की ओर से पर्यवेक्षकों के सामने अध्यक्ष पद का दावा भी  रखा गया। इसके बावजूद हाईकमान ने लगभग साफ संकेत दे दिया था कि परिवार के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा।

मकसूद अहमद थे वैकल्पिक दावेदार:

कल्ला परिवार में से अध्यक्ष नहीं बनाने का संकेत मिलने के साथ ही खेमे के ही किसी व्यक्ति को यह पद दिलाने के प्रयास भी शुरू हुए। इनमें जो सबसे बड़ा नाम उभरकर सामने आया वह रहा हाजी मकसूद अहमद। मकसूद अहमद पार्टी के कार्यकर्ता से ब्लॉक पदाधिकारी, जिला पदाधिकारी, पीसीसी पदाधिकारी रहे हैं। इसके अलावा चुनावी राजनीति में पार्षद से होते हुए नगर निगम के मेयर तथा राजनीतिक नियुक्ति के लिहाज से यूआईटी अध्यक्ष पद तक की जिम्मेदारी निभाई है। ऐसे में शहर में अल्पसंख्यक नेता को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की पूरी संभावना नजर आ रही थी। यही वजह है कि अल्पसंख्यक नेता के तौर पर जिया उर रहमान, अब्दुल मजीद खोखर, हारुन राठौड़ सहित कई नाम भी गिनाये जा रहे थे। दूसरी ओर सुमित कोचर सरीखे वैश्य नेताओं के नाम भी सामने आए। इनमें से किसी नाम पर संगठन की एक राय नहीं बन सकी।

क्या फिर कलह होगी: गौरी अध्यक्ष बने, तब दो कांग्रेस!
 

अल्पसंख्यक नेताआंे ने तर्क दिया बीकानेर शहर कांग्रेस में अब तक नूर मोहम्मद गौरी ऐसे अल्पसंख्यक रहे जिन्हें अध्यक्ष बनाया गया। बताया जाता है कि गौरी कल्ला खेमे की पसंद में शामिल नहीं थे। ऐसे में तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेस नेता कर्णपालसिंह शेखावत को भी शहर अध्यक्ष घोषित किया गया। यह पहला मौका था जब एक ही शहर में कांग्रेस के दो अध्यक्ष मौजूद रहे। पार्टी की काफी फजीहत उस दौरान हुई।

भवानीशंकर शर्मा के कार्यकाल में हुआ बड़ा विवाद:

बीकानेर शहर कांग्रेस में जब भवानीशंकर शर्मा अध्यक्ष थे उस वक्त शहर संगठन और कल्ला गुट के बीच तकरार की चर्चाएं आम होती रही है। यह ऐसा दौर था जब कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा बीकानेर आई और एक ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसके चलते बी.डी.कल्ला को पार्टी से सस्पेंड तक कर दिया गया। उस वक्त विधानसभा का टिकट हासिल करने मंे कल्ला को काफी मशक्कत करनी पड़ी। बताया जाता है कि शहर संगठन से गये पैनल में कल्ला की जगह डा.गोपाल जोशी का नाम गया। हालांकि बाद में टिकट कल्ला को मिला। डा.गोपाल जोशी इसके दो चुनाव बाद कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये ओर शहर से बी.डी.कल्ला के खिलाफ लगातार दो चुनाव जीते।

मदन गोपाल के सामने चुनौतियां:

हालांकि मदनगोपाल मेघवाल ने अब तक के छोटे से राजनीतिक सफर में टिकट वितरण से लेकर संगठनात्मक मसलों तक परिपक्वता का परिचय दिया है। उनका लगभग सभी धड़ों के नेताओं-कार्यकर्ताओं से समान व्यवहार दिखता है और संघर्ष-प्रदर्शन से जुड़े कई मसलों का समाधान राजनीतिक सूझ-बूझ  से करते दिखे। इसके बावजूद शहर कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति उनके लिए कई चुनौतियां भी ला सकती है। इनमें ब्राह्मण बाहुल्य बीकानेर शहर में ब्राह्मण नेताओं को साधना, कांग्रेस के कोर वोटर मुसलमान को संतुष्ट रखना, ओबीसी वर्ग को जोड़े रखने जैसी चुनौतियां शामिल हैं। विपक्ष की पार्टी के नेता उन्हें जनहित के मुद्दों पर संघर्ष के लिए सड़क पर भी उतरना पड़ेगा